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महाराष्ट्र की राजनीति में ED का 'खौफ', निशाने पर NCP और शिवसेना

अब तक ईडी सरकार में शामिल एनसीपी और शिवसेना के नेताओं के खिलाफ की कार्रवाई कर रही थी, लेकिन मार्च 2022 में ईडी के हाथ उद्धव ठाकरे के घर तक पहुंच गए. उद्धव के करीबी रिश्तेदार ईडी के शिकंजे में आ गए.

महाराष्ट्र की राजनीति के कई किरदार हैं और ये किरदार सिर्फ राजनीतिक पार्टी या उनके नेता ही नहीं बल्कि इनमें एक केंद्रीय एजेंसी कभी शुमार है. ये एजेंसी है एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ED) जिसने राज्य के कई दिग्गज नेताओं को जेल की हवा खिलाई है और कइयों की नींद उड़ा रखी है. महाराष्ट्र वो राज्य है जहां हाल के सालों में ईडी ने सबसे ज्यादा मामले राजनेताओं के खिलाफ दर्ज किए हैं. आज जानेंगे कि किस तरह से ईडी राज्य के राजनीतिक घटनाक्रमों के केंद्र में है.

महाराष्ट्र में ईडी के निशाने पर सबसे पहले जो सबसे बड़ा नाम आया वो था एनसीपी के नेता और महाराष्ट्र सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री रहे छगन भुजबल का. भुजबल पर आरोप लगा कि उन्होंने दिल्ली में महाराष्ट्र सदन के पुनर्निर्माण के ठेकों में घोटाला किया और उससे अर्जित की गई कमाई को विदेश में ठिकाने लगाया. इस मामले में उनके भतीजे समीर भुजबल को भी गिरफ्तार किया गया. करीब 2 साल जेल में रहने के बाद चाचा भतीजा को जमानत मिली.

साल 2021 में एक और एनसीपी के दिग्गज नेता और महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया. देशमुख पर ट्रांसफर पोस्टिंग से अर्जित कमाई से मनी लॉन्ड्रिंग करने का आरोप है. साल 2022 में ईडी की गिरफ्त में आने वाले सबसे ताजा राजनेता बने एनसीपी के प्रवक्ता और महाराष्ट्र सरकार में अल्पसंख्यक विकास मंत्री नवाब मलिक. उनपर दाऊद गिरोह से संपत्ति की खरीद फरोख्त और मनी लांड्रिंग का आरोप है.

अब तक एनसीपी के तीन मंत्री ईडी के मार्फत जेल की हवा खा चुके हैं, लेकिन ईडी के निशाने पर सिर्फ एनसीपी ही नहीं हैं. महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार का प्रमुख घटक दल शिवसेना भी है. हालांकि अब तक शिवसेना का कोई नेता गिरफ्तार तो नहीं हुआ है लेकिन ईडी की कार्रवाई ने शिवसेना नेताओं की नींद उड़ा रखी है. 

ईडी की गिरफ्त में आने वाले सबसे पहले शिवसेना नेताओं में से थे ठाणे से विधायक प्रताप सरनाइक. सरनाइक के खिलाफ भी मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया गया है. सुप्रीम कोर्ट से वक्त रहते राहत मिल जाने की वजह से सरनाइक की गिरफ्तारी टल गई, लेकिन इस कार्रवाई से सरनाइक इतने घबरा गए कि उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक खत लिख डाला. 

खत के जरिए उन्होंने सलाह दी कि बीजेपी के साथ रिश्ते सुधार लेने चाहिए और उनके साथ सरकार बना लेनी चाहिए. प्रताप सरनाइक के बाद ईडी ने उद्धव ठाकरे के खास मंत्री अनिल परब और शिवसेना विधायक रविंद्र वाईकर को भी सम्मन भेज कर पूछताछ के लिए बुलाया.

अब तक ईडी सरकार में शामिल एनसीपी और शिवसेना के नेताओं के खिलाफ की कार्रवाई कर रही थी, लेकिन मार्च 2022 में ईडी के हाथ उद्धव ठाकरे के घर तक पहुंच गए. उद्धव के करीबी रिश्तेदार ईडी के शिकंजे में आ गए.

22 मार्च को ईडी ने ठाणे में उद्धव ठाकरे की पत्नी के भाई श्रीधर पाटणकर के खिलाफ कार्रवाई की. 2017 के एक मामले में उनकी करीब साढ़े 6 करोड़ रुपए की संपत्ति जिनमें कई सारे फ्लैट्स थे उन्हें जप्त कर लिया. ईडी के शिकंजे में एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे भी फंस चुके हैं. कई लोगों का मानना है कि ईडी के दफ्तर में हाजिरी लगाने के बाद से राज ठाकरे की सियासी सोच बदल गई, जो राज ठाकरे पहले बीजेपी का विरोध करते थे वे बीजेपी को लेकर नरम पड़ गए.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त तो राज ठाकरे ने मोदी के खिलाफ खुली मुहीम ही छेड दी, जो लाव रे तो वीडियो नाम से चर्चित हुई. उनकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव तो नहीं लड़ा लेकिन राज्य में घूम घूम कर उन्होने मोदी के खिलाफ सभाएं लीं जिनमें मोदी के पुराने बयानों के वीडियो दिखाये गये और ये बताने की कोशिश की गयी कि मोदी की कथनी और करनी में कितना अंतर है. उसके बाद राज ठाकरे को ईडी का समन आ गया. ईडी के दफ्तर में राज ठाकरे को 9 घंटे तक बिठा कर रखा गया. उसके बाद अक्टूबर 2019 में विधानसभा के चुनाव आये. उन चुनावों में राज ठाकरे ने ये कहकर सबको चौंका दिया कि वे सत्ता हासिल करने के लिये चुनाव नहीं लड रहे. वे तो विपक्ष में बैठने के लिये चुनाव लड रहे हैं.

सियासी हलकों में लोगों ने इस बात पर गौर किया कि राज ठाकरे ने बीजेपी को टार्गेट करना बंद कर दिया है. इसके बाद उन्होंने जनवरी 2020 में हिंदुत्व को अपना लिया. एनसीपी नेता छगन भुजबल के मुताबिक राज ठाकरे के बदले सुर, ईडी दफ्तर में मिली दीक्षा का कमाल है.

बहरहाल महाराष्ट्र में ईडी की कार्यवाई के इस सत्र को केंद्र की बीजेपी सरकार बनाम महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा है. सियासी हलकों में माना जा रहा है कि ठाकरे सरकार भी बीजेपी नेताओं पर शिकंजा कसने के लिए अपने अधीन काम करने वाली महाराष्ट्र पुलिस का सहारा ले रही है लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पा रही.

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