In Depth: क्यों इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ रहे हैं छात्र, चौंकाने वाले हैं आंकड़े
बीते 5 बरस में हर साल 15 लाख से ज्यादा छात्रों नें देश के इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिला लिया लेकिन उनमें से नौकरी सिर्फ 3 साढ़े 3 लाख को ही मिल पायी. औसत निकालें तो 5 साल में 90 लाख छात्रों ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की जिनमें से करीब 17 लाख को नौकरी मिली यानी सिर्फ 18.7 फीसदी.
नई दिल्ली: ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है जब B.E या B.TECH की डिग्री को सम्मान से देखा जाता था. इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिले के लिए मार मची रहती थी लेकिन अब हालत ये है कि बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो रहे हैं. एबीपी न्यूज़ की पड़ताल में पता चला है कि कई ऐसे इंजीनियरिंग कॉलेज हैं जो अब केवल ढांचा रह गया है.
इसकी बानगी रोहतक के आर एन इंजीनियरिंग कॉलेज में देखने को मिली. जहां लाइब्रेरी में किताबें भरी पड़ी है, लैब है, कंप्यूटर हैं, इक्विपमेंट हैं पर ये सब धूल खा रहे हैं. क्योंकि इस इंजीनियरिंग कॉलेज में न टीचर था न छात्र. आर एन इंजीनियरिंग कॉलेज का कैंपस करीब डेढ़ लाख स्कॉयर फिट में फैला है. दो साल पहले तक इस कैंपस में छात्र आते थे, इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते थे, डिग्री लेते थे लेकिन जब वो डिग्री ही किसी काम की नहीं रही तो छात्र क्यों आएंगे?
क्यों इंजीनियरिंग को ना कह रहे हैं छात्र? खुद कॉलेज के डायरेक्टर का कहना है कि जब इंजीनियरिंग के छात्रों को 5 से 10 हजार की नौकरी मिलेगी तो वो इंजीनियरिंग की पढ़ाई क्यों करेंगे? रोहतक की तरह ही हिसार में भी कई इंजीनियरिंग कॉलेजों की यही हाल मिला. तो ये हालत क्यों हैं, आखिर क्या वजह है कि पहले जिस इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए छात्रों में जबरदस्त क्रेज था, हर माता-पिता का ये सपना होता था कि उनका बच्चा किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला पा जाएगा, उसी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले अब नौकरी के लिए मारे मारे फिर रहे हैं.
बिहार के सासाराम के रहने वाले विकास पांडे का दर्द सुनेंगे तो आपको यकीन नहीं होगा कि इंजीनियरिंग के छात्र किस मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. विकास का कहना है कि मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद उन्हें जनरेटर में डीजल भरने की नौकरी मिली. इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले ज्यादातर छात्रों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में देश में इंजीनियरिंग कॉलेजों की ऐसी बाढ़ आयी कि बी-टेक करने वाले छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी लेकिन उस अनुपात में बाजार में नौकरियां नहीं आयी. नतीजा हुआ की पढ़ाई महंगी हुई और अच्छे वेतन वाली नौकरियां कम होती गईं. नौकरियां कम होने की वजह से ही अब छात्रों का इंजीनियरिंग को लेकर रुझान खत्म हो रहा है और इसी वजह से इंजीनियरिंग कॉलेजों का क्रेज भी खत्म होता जा रहा है.
क्यों बंद हो रहे हैं इंजीनियरिंग कॉलेज? घटते जॉब की वजह है कि इंजीनियरिंग की सीटें भी घट रही हैं. इस साल देश भर में इंजीनियरिंग की एक लाख 36 हजार सीटें कम हो सकती हैं. यानि देश में छात्रों को इंजीनियरिंग की डिग्री देने वाले संस्थानों की रुचि अब न तो इंजीनियरिंग की पढ़ाई है और न ही बेरोजगारों की फौज तले कोई छात्र अब इंजीनियरिंग की डिग्री उस तरह चाहता है जैसे पांच बरस पहले चाहता था. इस सिलसिले को आंकड़ों में समझिए. 5 सालों में देशभर में इंजीनियरिंग की डिग्री बांटने वाले कुल 146 कॉलेज बंद हो चुके हैं. और अब 83 और कॉलेजों ने ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन यानी AICTE के पास दरख्वास्त डाली है कि वो अपने इंजीनियरिंग कॉलेज बंद करना चाहते हैं.
इतना ही नहीं 494 कॉलेजों ने अपने कुछ ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट इंजीनियरिंग कोर्स खत्म करने के लिए कहा है. 639 इंजीनियरिंग कॉलेजों ने करीब 62 हजार सीटें कम करने की अर्जी डाली है. इस तरह से जुलाई से शुरू होने वाले नए सत्र में पूरे देश में इंजीनियरिंग की करीब 1 लाख 36 हजार सीटें कम हो सकती हैं. सवाल है कि ये नौबत क्यों आ रही है ? उच्च शिक्षा के सचिव आर सुब्रमण्यम का कहना है कि वही कॉलेज बंद हो रहे हैं जहां पढ़ाई का स्तर अच्छा नहीं है.
दरअसल, हर साल औसतन 15 लाख छात्रों को इंजीनियरिंग की डिग्री मिलती है. जबकि अमेरिका में ये औसत 1 लाख से भी कम है. लेकिन वो डिग्री किसी काम की तब होगी जब छात्रों को नौकरी मिलेगी. रोजगार पैदा करने के नाम पर बड़े बड़े दावे करने वाली सरकार को इन आंकड़ों को गौर से देखना चाहिए.
बीते 5 बरस में हर साल 15 लाख से ज्यादा छात्रों नें देश के इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिला लिया लेकिन उनमें से नौकरी सिर्फ 3 साढ़े 3 लाख को ही मिल पायी. औसत निकालें तो 5 साल में 90 लाख छात्रों ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की जिनमें से करीब 17 लाख को नौकरी मिली यानी सिर्फ 18.7 फीसदी. इसका सीधा मतलब ये हुआ की इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले करीब 80 फीसदी छात्रों को अपने क्षेत्र में नौकरी ही नहीं मिली.
AICTE की 2017 की रिपोर्ट कहती है कि लगभग 60 फीसदी इंजीनियर बेरोजगार रहते हैं यानी उन्हें कोई काम नहीं मिलता. देश के शिक्षा राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह इसके लिए इंजीनियरिंग कॉलेजों के करिकुलम को जिम्मेदार बता रहे हैं. उन्होंने कहा, ''हमारे इंजीनियरिंग छात्रों का करिकुलम रेलिवेंट नहीं था. ज्यादातर पास होने के बाद नौकरी नहीं मिल रही थी, भारत सरकार ने इसी साल टेक्निकल कोर्स के लिए मॉडल करिकुलम जारी किया है. सबको ये लागू करने के लिए कहा गया है.''
तो अगर पढ़ाई में ही खोट था तो फिर साल दर साल लाखों छात्रों का भविष्य खराब क्यों किया गया और इस वजह से बेरोजगारी की कगार पर पहुंचे पढ़े-लिखे इंजीनियरों की हालत का जिम्मेदार कौन होगा?