दशकों पुरानी है अमेरिका-ईरान के बीच की तनातनी, ओबामा कार्यकाल में आई थी कमी
साल 1953 में दोनों देशों के बीच दुश्मनी की शुरूआत हुई. इसका मुख्य कारण था- तेल. तेल को लेकर दोनों देशों के बीच आई कटुता अभी तक कम होने के बजाय लगातार बढ़ रही है.
नई दिल्लीः अमेरिकी हमले में ईरान के कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत के बाद अब दोनों देश युद्ध की दहलीज पर खड़े हैं. इस बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर कहा है कि अगर ईरान हमला करता है तो वह और घातक हमला करेगा. ट्रंप ने कहा कि हमले के लिए ईरान के 52 जगहों को हमने चुन रखा है. वहीं ईरान ने मस्जिद पर लाल झंडा फहराकर युद्ध और बदले का एलान कर दिया है. शिया परंपरा के मुताबिक मस्जिद पर लाल झंडा युद्ध का प्रतीक और बदला लेने का प्रतीक होता है.
दरअसल, कई दशकों से एक दूसरे के दुश्मन अमेरिका और ईरान की दुश्मनी नए दशक की शुरूआत में और ज्यादा बढ़ गई है. परसों अमेरिका ने ईरान के कमांडर कासिम सुलेमानी को बगदाद में एयर स्ट्राइक में मौत के घाट उतार दिया था.
ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर क्यों दोनों देश युद्ध के मुहाने पर पहुंच गए हैं. ऐसा नहीं कि दोनों देशों के बीच पहली बार तनातनी देखने को मिला हो. अमेरिका और ईरान के बीच छह दशकों से भी ज्यादा समय से तनातनी चली आ रही है.
पहली घटनाक्रम
साल 1953 में दोनों देशों के बीच दुश्मनी की शुरूआत हुई. अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने ब्रिटेन के साथ मिलकर ईरान में तख्तापलट करवा दिया. निर्वाचित प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसाद्दिक को कुर्सी से हटाकर ईरान की सत्ता शाह रजा पहलवी के हाथों में सौंप दी गई.
इसका मुख्य कारण था- तेल. मोसाद्दिक तेल के उद्योग का राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे. मोसाद्दिक के कदम से अमेरिका को काफी फायदा पहुंचता. यही कारण है कि अमेरिका ने यह कदम उठाया.
दूसरी घटनाक्रम
साल 1979 में ईरान में एक नया नेता उभरा जिसका नाम था आयतोल्लाह रुहोल्लाह ख़ुमैनी. आयतोल्लाह पश्चिमीकरण और अमेरिका पर निर्भरता के खिलाफ सख्त था. शाह पहलवी उनके निशाने पर थे.
धीरे-धीरे शाह पहलवी के खिलाफ जनता के बीच असंतोष फैलने लगा. इस असंतोष को खुमैनी ने अपना नेतृत्व प्रदान किया. जनता के बीच असंतोष इतना बढ़ गया कि शाह को ईरान छोड़ना पड़ा. खुमैनी के विद्रोह के कारण एक बार फिर अमेरिका और ईरान के बीच दूरियां बढ़ गई.
दूतावास संकट
साल 1979 में ईरान और अमेरिका के राजनयिक संबंध खत्म हो चुके थे. तेहरान में ईरानी छात्रों ने अमेरिकी दूतावास को अपने कब्जे में ले लिया था. 52 अमेरिकी नागरिकों को 440 से ज्यादा दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया था.
ओबामा की पहल
साल 2015 में बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो दोनों देशों के बीच संबंधो की कड़वाहट कम हुई. ओबामा के राष्ट्रपति रहते दोनों देशों के संबंध थोड़ा सुधरने लगे थे. अमेरिका-ईरान के बीच परमाणु समझौता हुआ, जिसमें ईरान ने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने की बात की.
इसके बदले अमेरिका ने उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में थोड़ी ढील दी. लेकिन, जैसे ही ट्रंप ने राष्ट्रपति बने इस समझौते को रद्द कर दिया. जिसका परिणाम यह हुआ कि दोनों देशों के बीच दुश्मनी फिर शुरू हो गई.
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