नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से जुड़े ट्रस्ट की घोषणा कर दी है. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र नाम के इस ट्रस्ट के एलान की खास बातों में से एक यह भी है कि अयोध्या में 1993 में अधिग्रहित पूरी 67.7 एकड़ जमीन इस ट्रस्ट को दी जाएगी. इसमें विवाद का हिस्सा रही जमीन के साथ आसपास की भी जमीन शामिल है.


दरअसल, अयोध्या में तीन गुंबद वाला विवादित बाबरी ढांचा कुल 0.313 एकड़ क्षेत्र में ही था, लेकिन मस्जिद के भीतरी और बाहरी परिसर को मिलाकर कुल 2.77 एकड़ जमीन पर विवाद था. भीतरी परिसर में जहां तीन गुंबद वाली इमारत थी वहीं बाहरी परिसर में राम चबूतरा, सीता रसोई जैसे निर्माण थे. जिन पर हिंदुओं का कब्जा था.


90 के दशक की शुरुआत में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद जोर पकड़ता चला गया. जिसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया. 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचे को गिरा दिया गया.


इसके बाद जनवरी 1993 में केंद्र सरकार ने संसद से ‘एक्वीजिशन ऑफ सर्टेन एरिया ऑफ अयोध्या एक्ट’ पारित करके 67.7 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया. इसमें कोट रामचंद्र, जलवनपुर और अवध खास की जमीन शामिल थी. इसके पीछे केंद्र सरकार की मंशा यह थी कि विवादित परिसर के आसपास भी इस तरह की धार्मिक गतिविधियां या निर्माण शुरू हो जाए. जिससे भविष्य में विवाद को बढ़ावा मिले.



पिछले साल 9 नवंबर को दिए ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन रामलला पक्ष को देने का आदेश दिया. कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा कि पूरे मामले में मुस्लिम पक्ष को भी बहुत कुछ झेलना पड़ा है. इसलिए, उसकी भरपाई के लिए उसे भी 5 एकड़ की वैकल्पिक जमीन दी जाए. कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा था कि सरकार यह तय करे कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को वैकल्पिक जमीन 67.7 एकड़ की अधिग्रहित जमीन में से देनी है या उसके बाहर अयोध्या में ही किसी और उचित जगह पर.


अब सरकार ने एलान किया है कि अयोध्या में कोर्ट के आदेश के मुताबिक सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन दी जाएगी, लेकिन 1993 में अधिगृहित की गई पूरी जमीन राम तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को ही दी जाएगी. सरकार ने इसके पीछे का मकसद यह बताया है कि इससे मंदिर के साथ ही वहां बड़ी संख्या में आने जाने वाले श्रद्धालुओं के सुविधा के लिए दूसरे निर्माण करने में भी सहूलियत होगी.


दरअसल, अयोध्या में जो जो जमीन अधिगृहित की गई थी, उसमें से 42 एकड़ पहले राम जन्मभूमि न्यास के पास थी. इस जमीन में कई मंदिर और दूसरी धार्मिक इमारतें थीं. बाकी ज्यादातर जमीन में भी आवासीय मकान और एक मुस्लिम कब्रगाह है. अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले सरकार ने एक अर्जी दायर कर विवादित इमारत की 0.313 एकड़ जमीन छोड़कर बाकी 67.4 एकड़ जमीन उसके मूल मालिकों को लौटाने की मंशा जताई थी. अगर कोर्ट इस अर्जी को मान लेता तो राम जन्मभूमि न्यास की 42 एकड़ जमीन में धार्मिक इमारतों का निर्माण शुरू हो सकता था. हालांकि, इस अर्जी पर सुनवाई की नौबत ही नहीं आई.