नई दिल्ली : प्रकृतिवादी एवं कुत्तों के लिए काम करने वाले एस. थेयोडोर भास्करन का कहना है कि भारत में कुत्तों की जैसी दुर्दशा आज है, वैसी पहले कभी नहीं रही.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के दो बार ट्रस्टी रह चुके भास्करन ने एजेंसी को दिए साक्षात्कार में कहा, 'भारत में कुत्तों की आज जैसी बुरी हालत पहले कभी नहीं रही.'
सड़कों पर भटक रहे हैं, बीमारी फैला रहे हैं
उनका कहना है कि 'तीन करोड़ कुत्ते देश में ऐसे हैं, जिनका कोई मालिक नहीं है. जो सड़कों पर भटक रहे हैं, बीमारी फैला रहे हैं और गंदगी खाकर जीवित हैं. सभी किसी भी तरह के टीकाकरण से अपरिचित हैं और सबसे घातक बीमारियों में से एक, रैबीज के संवाहक हैं.'
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इसका वैज्ञानिक समाधान खोजना होगा
उन्होंने कहा, 'अपने टनों मल से संक्रामक रोगों को फैलाने के साथ-साथ यह ट्रैफिक जाम के भी कारण बन रहे हैं. हमें मसले को भावुकता की नजर से देखने के बजाए इसका वैज्ञानिक समाधान खोजना होगा. करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद पशु जन्म नियंत्रण योजना पूरी तरह से असफल साबित हुई है.'
कुत्तों के कई मालिक अपनी जिम्मेदारियां नहीं समझते
उन्होंने ब्रिटेन जैसे देशों का जिक्र किया जहां कुत्तों के लिए तय मानदंड हैं. उन्होंने कहा कि इन देशों में एक भी आवारा कुत्ता नहीं मिलेगा. उन्होंने कहा, 'भारत में कुत्तों के कई मालिक अपनी जिम्मेदारियां नहीं समझते. वे कुत्तों को बांधकर रखते हैं जो कि क्रूरता है. कुछ लोग अपार्टमेंट में बड़ा कुत्ता रखते हैं.'
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कुत्तों में से अधिकांश अनुशासित नहीं होते
उनके अनुसार 'इस तरह के कुत्तों में से अधिकांश अनुशासित नहीं होते. मालिकों को कोई फर्क नहीं पड़ता कि पड़ोसी इनसे परेशान हो रहे हैं.' भास्करन की किताब 'द बुक आफ इंडियन डॉग्स' को शायद बीते 50 सालों में भारतीय कुत्तों की नस्लों पर लिखी गई सबसे सारगर्भित किताब कहा जा सकता है.
पशु अधिकार आंदोलन दिशा से भटक गया है
किताब के लेखक का मानना है कि भारत में पशु अधिकार आंदोलन दिशा से भटक गया है. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि भारत में पशु अधिकार आंदोलन भटक गया है. अमेरिका में, जहां इसकी शुरुआत हुई, यह मांसाहार के खिलाफ नहीं रहा. वहां वे पशुवध के वैज्ञानिक तरीकों की वकालत करते हैं. लेकिन, भारत में इस आंदोलन के लोग शाकाहार की नसीहत देते हैं. यह बेहद राजनीतिक रुख है.'
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घुड़दौड़ या मंदिरों के हाथियों पर ध्यान नहीं देते
भास्करन ने कहा, "प्रयोगशालाओं में इस्तेमाल से पशुओं को बचाने जैसे मामले में इन लोगों (पशु अधिकार समर्थकों) ने कुछ अच्छे काम किए हैं. लेकिन, कुल मिलाकर इनकी सोच बहुत चयनात्मक है. यह घुड़दौड़ या मंदिरों के हाथियों पर ध्यान नहीं देते. यह भारी धनराशि खर्च करते हैं और जल्लीकट्टू पर निशाना साधते हैं. पशु अधिकार समर्थक अदालतों के पक्षी बनकर रह गए हैं.'
देश में पशुओं के लिए कई क्लीनिक खुल रहे हैं
उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि देश में पशुओं के लिए कई क्लीनिक खुल रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह अच्छी बात है. समस्या कुत्तों के जिम्मेदार मालिकों के न होने की है. केनल क्लब आफ इंडिया इस दिशा में काम कर रहा है.
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