कार्बन ब्लैक उत्पादक एप्सिलॉन कार्बन ने कैथोड क्षेत्र में कदम रखने की योजना के तहत 1,200 करोड़ रुपये के निवेश से दुनिया का पहला पॉलिमेटेलिक नॉड्यूल संयंत्र स्थापित करने की घोषणा की है. इस संयंत्र के लिए नॉड्यूल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए एप्सिलॉन ने एक अमेरिकी कंपनी के साथ करार भी किया है. एप्सिलॉन ने मंगलवार को नैस्डेक में सूचीबद्ध ‘द मेटल्स कंपनी’(टीएमसी) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.
लिथियम आयन बैटरियों के लिए कैथोड बनाने में कच्चे माल के तौर पर नॉड्यूल का इस्तेमाल होता है. गहरे समुद्र की तलहटी में कई धातुओं से भरपूर नॉड्यूल पाए जाते हैं. एप्सिलॉन के प्रवर्तक एवं प्रबंध निदेशक विक्रम हांडा ने कहा कि इस करार के तहत टीएमसी 10 लाख टन नॉड्यूल की आपूर्ति करेगी. इससे प्रस्तावित संयंत्र में 30,000 टन कैथोड बनाए जाएंगे जो वर्ष 2025 तक 25 गीगावॉट की क्षमता पैदा कर सकते हैं.
गहरे समुद्र में पाया जाता है नॉड्यूल
करार की शर्तों के मुताबिक, दोनों ही कंपनियां गहरे समुद्र में पाए जाने वाले नॉड्यूल के प्रसंस्करण का वाणिज्यिक संयंत्र स्थापित करने की व्यवहार्यता का अध्ययन भी कराएंगी. हांडा ने कहा कि दोनों कंपनियां 1,200 करोड़ रुपये के शुरुआती निवेश से दुनिया का पहला वाणिज्यिक पॉलिमेटेलिक नॉड्यूल प्रसंस्करण संयंत्र मिलकर स्थापित करेंगी. इसके लिए समूचा निवेश एप्सिलॉन कार्बन ही करेगी.
हांडा ने पीटीआई-भाषा से कहा कि प्रस्तावित संयंत्र को लेकर कई राज्यों के साथ बात चल रही है और जल्द ही संयंत्र की जगह के बारे में कोई फैसला होने की उम्मीद है. उन्होंने इस वित्त वर्ष के अंत तक संयंत्र का निर्माण शुरू होने और 2025 तक संचालन शुरू होने की उम्मीद जताई है.
कैथोड की घरेलू मांग है शून्य
हालांकि, घरेलू स्तर पर किसी भी कंपनी के लिथियम-आयन बैटरी उत्पादन में शामिल नहीं होने से कैथोड की घरेलू मांग शून्य ही है लेकिन वर्ष 2030 तक इसका बाजार बढ़कर एक लाख टन हो जाने की संभावना है. इस मौके पर टीएमसी के चेयरमैन एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) गेरार्ड बैरन ने कहा कि भारत सरकार कम लागत वाली एवं पर्यावरणानुकूल अर्थव्यवस्था के विकास के लिए प्रयासरत है और पॉलिमेटेलिक नॉड्यूल संकलन व्यवस्था के विकास से यह झलकता भी है.
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