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सिर दर्द से लेकर दिल के दर्द तक, महंगी हुईं ये जरूरी दवाएं, जानें कौन तय करता है कीमत?

एक तरफ जहां आम आदमी के लिए घर चलाना काफी मुश्किल हो गया है. वहीं दूसरी तरफ दवाओं के दाम इतने ज्यादा बढ़ रहे हैं कि गरीब और आम लोगों के लिए इलाज कराना भी मुश्किल हो जाएगा.

अप्रैल महीने की शुरुआत के साथ ही आम आदमी पर महंगाई का बोझ बढ़ गया है. एक अप्रैल 2023 से भारत में जरूरी दवाओं सहित 384 दवाइयों की कीमत को बढ़ा दिया गया है. अब देश के सभी राज्यों में पेनकिलर, एंटीबायोटिक, एंटी-इन्फेक्टिव और कार्डियक की दवाएं पिछली कीमत से 12 प्रतिशत ज्यादा में बेची जाएगी. 

ऐसे में एक तरफ जहां आम आदमी के लिए घर चलाना काफी मुश्किल हो गया है. वहीं दूसरी तरफ दवाईयों के दाम इतने ज्यादा बढ़ रहे हैं कि गरीब और आम लोगों के लिए इलाज कराना भी मुश्किल हो जाएगा. और ऐसा भी नहीं है कि दवाओं की कीमत में बढ़त काफी सालों बाद हुई हो. ये लगातार दूसरा साल है, जब शेड्यूल्ड दवाओं की कीमत में बढ़त नॉन-शेड्यूल्ड दवाओं की तुलना में ज्यादा हुई है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर दवाओं की कीमत इतनी जल्दी क्यों बढ़ जाती है और इसकी कीमत कैसे तय की जाती है?

आखिर शेड्यूल्ड और नॉन-शेड्यूल्ड दवाएं क्या होती है

शेड्यूल दवाएं- ये वो महत्वपूर्ण दवाएं हैं, जिसे कितनी कीमत में बेचना है इसपर सरकार का नियंत्रण होता है. इन दवाओं में पैरासिटामोल, पेनकिलर, एंटी-बायोटिक जैसी जरूरी दवाइयां आती हैं. शेड्यूल दवाओं को एसेंशियल ड्रग्स भी कहा जाता है. 

नॉन-शेड्यूल्ड दवाएं- इस कैटेगरी में वो दवाइयां आती है जिस पर सरकार का किसी भी तरह का कोई नियंत्रण नहीं होता. इसका मतलब ये नहीं हो जाता कि दवा कपंनिया कभी भी इनकी कीमत बढ़ा या घटा सकता है. नॉन शेड्यूल्ड दवाओं की कीमत में हर साल 10 प्रतिशत तक बढ़त का ही प्रावधान है.

पिछले 3 सालों में शेडयूल्ड दवाइयों के दाम में कितना हुआ इजाफा 

TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 3-4 सालों में शेड्यूल्ड दवाओं की कीमत में 15-20 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. दवाओं की कीमत बढ़ने का ये सिलसिला कोरोना महामारी के बाद शुरू हुआ.  पिछले कुछ सालों में जरूरी दवाओं की कीमतों में 15-20 फीसदी तक का इजाफा हुआ है. 

कैसे बढ़ती है बाजार में दवाओं की कीमत

किसी भी चीज का दाम तभी बढ़ता है जब उसकी मांग ज्यादा हो. बाजार में भी दवाइयों की कीमत उसकी मांग के अनुसार ही बढ़ती है. आसान भाषा में समझ तो जिस दवा की मांग ज्यादा होती है कंपनी उसकी प्राइस बढ़ा देती हैं. वहीं जब कोई दवा ज्यादा बिक रहा हो तो कंपनियों की तरफ से दवा का एक नया बैच जारी किया जाता है और वह भी बढ़े हुए दाम के साथ.

आखिर दवाओं के दाम क्यों बढ़ाए गए

दिल्ली के केमिस्ट प्रभात सिंह ने एबीपी को बताया, 'दवाओं को बनाने के लिए जिस कच्चे माल की जरूरत पड़ती है उसकी कीमत बढ़ रही  है जिसके कारण दवाओं की कीमतों को भी बढ़ाना पड़ रहा है. यह माल विदेश से आता है. 

बता दें कि दवाइयों को बनाने के लिए विदेश से आने वाला कच्चा माल या एक्टिव फार्मास्यूटिक इंग्रेडिएंट्स महंगा हो गया है. सिर्फ कच्चा माल ही नहीं बल्कि इनकी पैकेजिंग और किराये के दाम भी बढ़े हैं.

दवाइयों की कीमत कितनी बढ़ेगी कौन तय करता है

भारत में किसी भी ड्रग्स की कीमत तय करने का काम नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) करती है. यह अथॉरिटी हर साल होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) के आधार दवाओं के दाम में बदलाव कर सकती है. 

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) का काम भारत में बनने वाली दवाओं की कीमत तय करने के साथ साथ उन पर नियंत्रण रखना और उपलब्धता बनाये रखना भी है. बाजार में दवाओं की खुदरा कीमत दवा (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 2013 के आधार पर राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण द्वारा तय की जाती है. जिन दवाओं की सूची दवा (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 2013 में दी गयी है उनकी कीमतें NPPA तय करती है. इसके अलावा जो दवाएं सूची में शामिल नहीं हैं उन पर भी NPPA निगरानी रखता है.

दवाओं के महंगे होने का असर किस पर पड़ेगा, क्या है हल

दिल्ली के केमिस्ट प्रभात सिंह का कहना है कि ये तो हम सबको पता है कि दवाएं महंगी होती है तो सबसे पहले वो लोग प्रभावित होते हैं जो कम से कम महीने का 5-6 हजार दवाइयों में खर्च करता हो. उनके लिए एक तरीका ये है कि वह जेनेरिक दवाइयों का इस्तेमाल करें जो सस्ती होती है. उन्होंने कहा कि अगर डॉक्टर लोगों को जेनेरिक दवाएं लिखने लगे तो ये मरीज के लिए फायदे का सौदा होगा.

क्या होती है जेनरिक दवाइयां

जेनरिक दवाइयां: आमतौर पर यह वह दवाइयां होती है जिनका कोई ब्रांड नेम नहीं होता. ऐसी दवाइयां अपने सॉल्ट के नाम से ही मार्केट में जानी-पहचानी जाती है. आपको जानकर हैरानी होगी कि इन दवाओं के कोई प्रचार प्रसार नहीं किया जाता लेकिन इसका असर ब्रांडेड दवाइयों जैसा ही होता है. 

कितनी कम होते है कीमत: जेनेरिक दवाओं के कीमत की बात करें तो यह ब्रांडेड दवाओं से 10 से 20 प्रतिशत तक सस्ती होती हैं. ब्रांडेड दवाओं के महंगे होने का एक कारण ये भी है कि इनके विज्ञापन से लेकर पैकेजिंग तक पर काफी पैसा खर्च करती हैं. जबकि जेनेरिक दवाइयों की कीमत सरकार तय करती है और इसके प्रचार-प्रसार पर ज्यादा खर्च भी नहीं होता. 

कहां मिलती है: आम दवाओं की तरह ही यह किसी भी मेडिकल स्टोर पर मिल जाती है. इसके अलावा जन औषधि केंद्र से भी आप इन दवाइयां को खरीद सकते हैं.  

जेनरिक दवाइयों के बारे में जागरूक करने के लिए सरकार क्या कर रही है 

देश की जनता को जेनरिक ड्रग्स के बारे में बताने के लिए केंद्र की तरफ से जन औषधि अभियान की शुरुआत की गई थी. इस अभियान का लक्ष्य लोगों तक इन दवाओं की जानकारी पहुंचाना था. इस अभियान में लोगों को बताया गया कि ये दवाइयां क्वालिटी में किसी ब्रांडेड दवा के कम नहीं है और काफी सस्ती भी है. 

ऑनलाइन दवाएं खरीदने का भी ट्रेंड बढ़ा, कितना सुरक्षित 

बीते कुछ सालों में ऑनलाइन ऑर्डर करने का ट्रेंड काफी बढ़ गया है. घर के छोटे-मोटे सामानों से लेकर दवाइयों तक हर चीजें एक बटन दबाने के आपके पास आ जाती है. यही कारण है कि मार्केट में ऐसी कई ऐप्स आ गई है, जो आपके घर तक दवाइयां पहुंचाने का काम करती हैं.  

कोविड के दौरान खासतौर इन एप्स का इस्तेमाल खूब किया गया. इसमें कोई शक नहीं कि ऑनलाइन फार्मेसी और मेडिकेशन ने हमारी जिंदगी को काफी आसान बना दिया है. लेकिन हाल ही में ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने ऑनलाइन दवा बेचने वाली अवैध ऑनलाइन फार्मेसी को कारण बताओ नोटिस जारी किया था. 

ऑनलाइन दवाइयां लेने से पहले किन चीजों का ख्याल रखना सबसे ज्यादा जरूरी है. 

1. दवाई का नाम ठीक से पढ़ें: ऐसी बहुत सारी दवाइयां हैं जिनके नाम लगभग एक जैसे होते हैं. सिर्फ एक दो शब्द का फर्क होता है ऐसे में दवा ऑनलाइन खरीदते वक्त इन नामों को ध्यान से पढ़ें. इसके साथ ही कितने mg की दवा लेनी है इसका भी ख्याल रखना बेहद जरूरी है.  

2. विश्वसनीय साइट्स का ही इस्तेमाल करें: ऑनलाइन दवा ऑर्डर करने से पहले ध्यान रखना चाहिए कि जिस वेबसाइट या एप से ऑर्डर किया जा रहा है वह कितनी विश्वसनीय है. कई बार ऑनलाइन ऑर्डर करने वाले फ्रॉड का भी शिकार हो जाते हैं. ऑनलाइन मेडिसिन ऐप के कुछ नाम नेटमेड, वन एमजी, फार्म इजी, अपोलो 24x7, प्रैक्टो, मेडलाइफ, मेडग्रीन, ट्रूमेड्स, मार्ट, इंडिया मार्ट हैं.

3. अवैध दवा से दूर रहें: ऑनलाइन दवाएं ऑर्डर करने से पहले ध्यान रखें कि वह दवाएं कानून द्वारा प्रतिबंधित तो नहीं है. 

4. दवा की एक्सपायरी चेक करें: दवाई की डिलीवरी हो जाने पर उसकी एक्सपायरी डेट चेक करना सबसे जरूरी है. कभी भी एक्सपायरी दवाएं खाने का जोखिम न उठाएं.

विपक्ष ने साधा केंद्र सरकार पर जमकर निशाना

दवाओं की बढ़ी कीमत और महंगाई पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा, 'हम तो यह कहेंगे कि महंगाई चरम सीमा पर है, बेरोजगारी चरम सीमा पर है और यह सब भारतीय जनता पार्टी की देन है. जब से भारतीय जनता पार्टी आई है तब से ना केवल हर चीज महंगी हुई है, बल्कि दवाइयों पर भी महंगाई बढ़ गई है.' 

अखिलेश यादव ने कहा, 'भारतीय जनता पार्टी यह नहीं बताना चाहती कि 1 अप्रैल से दवाइयां महंगी हो गई, इलाज महंगा हो गया और लोगों को इलाज नहीं मिल रहा. दवाइयां अस्पताल में नहीं है. जब से बीजेपी की सरकार आई है, कैंसर ज्यादा हो गया है, हार्ट अटैक ज्यादा हो गया है, लोगों को डायबिटीज ज्यादा हो गई. यह राजनीतिक कारण तो है ही और आर्थिक कारण डिमांड सप्लाई का मामला है.' 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वायनाड से पूर्व लोकसभा सांसद राहुल गांधी ने कहा, ' देश को चला रही अक्षम सरकार गरीबों पर महंगाई का बोझ डाल रही है.' उन्होंने आरोप लगाया कि, 'केंद्र सरकार तानाशाही के बल पर गरीबों को निशाना बना रही है और उन पर अनावश्यक वित्तीय बोझ डाल रही है.'

फैसले का असर किस पर पड़ेगा?

एक प्राइवेट कंपनी में काम कर रहे रमेश सिंह ने एबीपी से कहा कि मेरे परिवार में 6 लोग हैं जिसमें दो (माता-पिता) की उम्र लगभग 60 साल है. उन्होंने कहा कि मेरे घर में हर महीने 4-5 हजार की दवाइयां आती ही आती है. ऐसे में दवाइयों की बढ़ती कीमत मेरे घर के बजट को पूरी तरह खराब कर सकता है. 

रश्मि कौर जो दिल्ली में पिछले 3 साल से रह रही है. उन्होंने कहा कि हर साल दवाइंयो का दाम बढ़ जाने से लोगों के इलाज पर असर पड़ेगा.

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