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जानिए क्यों सबसे ज्यादा गर्म साल रहा 2020, क्या ये एक चेतावनी है?

कोपर्निकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के वरिष्ठ वैज्ञानिक फ्रेजा वम्बर्ग ने कहा कि 2020 के रिकॉर्ड के अनुसार, पिछले छह वर्षों में सभी सबसे गर्म रहे हैं. डॉ.वम्बर्ग के मुताबिक, ‘यह याद दिलाता है कि तापमान बदल रहा है और अगर हम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती नहीं करते हैं तो इसका बदलना ऐसे ही जारी रहेगा.’

साल 2016 को रिकॉर्ड में सबसे ज्यादा गर्म वर्ष माना गया था, वहीं यूरोपीय जलवायु शोधकर्ताओं ने घोषणा की है कि वैश्विक तापमान में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से निरंतर वृद्धि जारी है. इस वजह से साल 2020 भी सबसे ज्यादा गर्म वर्ष रहा है. इस साल दुनिया भर में भयंकर गर्मी पड़ी,  जंगलों में आग की घटनाएं भी देखने को मिली वहीं कई पर्यावरणीय आपदाएं भी साल 2020 में हुई. सितंबर महीने में दुनिया पर ला नीना का प्रभाव भी शुरू हो गया था. ला-नीना कूलिंग इफेक्ट के लिए जाना जाता है. लेकिन साल 2020 में ला-नीना का कूलिंग इफेक्ट भी गर्मी को तोड़ने के लिए पर्याप्त नहीं रहा.

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती की जानी चाहिए

कोपर्निकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के वरिष्ठ वैज्ञानिक फ्रेजा वम्बर्ग ने कहा कि 2020 के रिकॉर्ड के अनुसार, पिछले छह वर्षों में सभी सबसे गर्म रहे हैं. डॉ.वम्बर्ग के मुताबिक, ‘यह याद दिलाता है कि तापमान बदल रहा है और अगर हम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती नहीं करते हैं तो इसका बदलना ऐसे ही जारी रहेगा.’

यूरोपीय संघ के एक कार्यक्रम कोपर्निकस के अनुसार, औद्योगिकीकरण से होने वाले उत्सर्जन के बढ़ने से पहले, 2020 में वैश्विक औसत तापमान 1825 से 1900 तक औसत तापमान 1.25 डिग्री सेल्सियस (लगभग 2.25 डिग्री फ़ारेनहाइट) गर्म था.  2020 का औसत तापमान 2016 के औसत तामपान से थोड़ा ही कम था.

कुछ क्षेत्रों में गर्मी ने तोड़ दिया रिकॉर्ड

कुछ क्षेत्रों में तो गर्मी ने रिकॉर्ड ही तोड़ दिया. 2020 लगातार दूसरे वर्ष, यूरोप का अब तक का सबसे गर्म वर्ष था. वहीं 2020 और 2019 के बीच तापमान में थोड़ा सा ही अंतर था. 2020 में 0.4 डिग्री सेल्सियस, या लगभग तीन-चौथाई फ़ारेनहाइट, गर्म था. वहीं उत्तरी अमेरिका में तापमान औसत से ऊपर था. वार्मिंग ने व्यापक सूखे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसने संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकांश पश्चिमी आधे हिस्से को प्रभावित किया और कैलिफोर्निया और कोलोराडो के जंगलों में तो आग ही भड़क गई.

आर्कटिक काफी तेजी से हो रहा है गर्म

आर्कटिक कहीं अधिक तेजी से गर्म हो रहा है. आर्कटिक के कुछ हिस्सों में औसत तापमान 1981 से 2010 तक बेसलाइन औसत से 6 डिग्री सेल्सियस अधिक था. इसके विपरीत, यूरोप पिछले साल इसी आधार रेखा से 1.6 डिग्री सेल्सियस अधिक था. आर्कटिक में और विशेष रूप से साइबेरिया के कुछ हिस्सों में, वर्ष के अधिकांश समय में असामान्य रूप से गर्म स्थिति बनी रही. गर्मी  की वजह से पेड-पौधे सूख गए.

2020 और 2016 समान रूप से गर्म रहे

वहीं कैलिफोर्निया में एक स्वतंत्र शोध समूह बर्कले अर्थ के एक शोध वैज्ञानिक ज़ेके हॉसफादर ने कहा कि वैश्विक तापमान पर ला नीना का सबसे बड़ा प्रभाव प्रशांत में चरम स्थिति के कई महीनों बाद आता है. वह कहते है कि " निश्चित रूप से ला नीना का पिछले कुछ महीनों में कुछ ठंडा प्रभाव दिखा है यह संभवत: 2021 के तापमान पर बड़ा प्रभाव डालने वाला है." डॉ. हॉसफादर कहते है कि 2020 और 2016 समान रूप से गर्म रहे है , इसका मतलब यह है कि पिछले पांच वर्षों में ग्लोबल वार्मिंग का संचयी प्रभाव पड़ा है जो अल नीनो के समान है.

2020 के वैश्विक तापमान का विश्लेषण किया जाएगा जारी

बता दें कि बर्कले अर्थ इस महीने के अंत में 2020 के वैश्विक तापमान का अपना विश्लेषण जारी करेगा, जैसा कि राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन और नासा करेगा. तीन विश्लेषण एक समान दृष्टिकोण लेते हैं, अनिवार्य रूप से दुनिया भर में हजारों तापमान मापों का संकलन करते हैं.

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