नई दिल्ली: विदेशी सांसदों के कश्मीर दौरे पर राजनीति गर्म है. इस दौरे को लेकर विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार से सवाल पूछ रही है कि जब भारतीय सांसदों को कश्मीर नहीं जाने दिया जा रहा है तो विदेशी को जाने की अनुमति क्यों दी गई? यही नहीं विपक्ष का यह भी कहना है कि सरकार ने कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण कर दिया है. वहीं सत्तारूढ़ बीजेपी का कहना है कि किसी भी सांसद को कश्मीर जाने से नहीं रोका गया. इस वार-पलटवार के बीच एक नाम की खूब चर्चा हो रही है. यह नाम है माडी शर्मा. खुलासा हुआ है कि सभी 27 यूरोपीय सांसदों को माडी शर्मा के एनजीओ ने न्योता भेजा था. माडी शर्मा ने ही सांसदों को पीएम से मिलवाने का प्रस्ताव दिया था.
माडी शर्मा कौन हैं?
माडी शर्मा वूमंस इकोनॉमिक एंड सोशल थिंक टैंक (WESTT) नाम के एनजीओ की प्रमुख हैं. शर्मा बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में रहनेवाली भारतीय मूल की ब्रिटिश नागरिक हैं. माडी शर्मा के ट्विटर हैंडल पर दी जानकारी में ये खुद को 'सोशल कैपिटलिस्ट: इंटरनैशनल बिजनेस ब्रोकर, एजुकेशनल आंत्रप्रेन्योर ऐंड स्पीकर' बताती हैं. दावा है कि माडी शर्मा ने ही यूरोपियन यूनियन के 30 सांसदों को चिट्ठी लिखकर पीएम मोदी, एनएसए अजीत डोभाल से मिलवाने और कश्मीर ले जाने का न्योता दिया था.
माडी शर्मा माडी ग्रुप के बैनर तले कई कंपनियों को चलाती हैं जिसमें से एक WESTT है. जिसके हवाले से यूरोपीय सांसदों को भारत आने का न्योता भेजा था. एबीपी न्यूज़ को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, माडी को इस काम के लिए सरकार की तरफ से संपर्क साधा गया था. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर माडी शर्मा महत्वपूर्ण मुद्दों पर जागरुकता पैदा करने के लिए इस तरह के कई कार्यक्रमों का आयोजन करती रहती हैं. माडी शर्मा ने नई दिल्ली टाइम्स के लिए कई लेख भी लिखे हैं. हाल ही में कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद माडी ने 'WHY DEMOLISHING ARTICLE 370 IS BOTH A VICTORY AND A CHALLENGE FOR KASHMIRI WOMEN' शीर्षक से एक लेख भी लिखा था जिसकी बड़ी चर्चा हुई थी.
यही नहीं, माडी को संपर्क किए जाने के पीछे भी वजह ये थी कि माडी शर्मा यूरोपीय यूनियन के कंस्ट्रक्टिव बॉडी, यूरोपियन इकॉनोमिक एंड सोशल कमेटी की सदस्य हैं. लिहाजा वो यूरोपीय सांसद के सांसदों से सीधे तौर पर जुड़ी हुई हैं और इसी वजह से यूरोपीय संसद के तमाम सांसदों को न्योता भेज उन्हें भारत आने का काम वो कर सकती थीं.
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सूत्रों के मुताबिक, माडी के कश्मीर पर लिखे लेख में अनुच्छेद 370 को हटाने का पाकिस्तान के आंतकवाद से निपटने और राज्य के विकास के लिए उठाया गया सकारात्मक कदम बताया था. उससे सरकार को लगा कि ऐसे वक्त पर जब की तमाम अंतरराष्ट्रीय मीडिया कश्मीर को लेकर भारत पर सवाल उठा रही है और पाकिस्तान मुहीम चला रहा है, माडी शर्मा के जरिए यूरोपीय सांसदों का कश्मीर दौरा कराके इस मुहीम को पस्त किया जा सकता है.
यही वजह है कि कुछ हफ्ता पहले ही माडी से संपर्क साधा गया था. जिसके बाद चीजें तय हुई और माडी ने यूरोपीय यूनियन के सांसदों को न्योते भेजे थे. लिहाजा ये बात बिल्कुल स्पष्ट है कि इस दौरे को लेकर जो कुछ भी हुआ वो सरकार की अपनी रणनीति थी और सरकार की सहमति से ही माडी शर्मा ने पूरा दौरा आयोजित करवाया.
कांग्रेस और ओवैसी ने उठाए सवाल?
जब आज एनजीओ के संबंध में प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूरोपीय यूनियन के सांसदों से सवाल पूछा गया तो सांसदों ने कुछ साफ-साफ जवाब नहीं दिए. कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने भी गैर आधिकारिक यूरोपीय यूनियन प्रतिनिधिमंडल और एनजीओ को लेकर सवाल खड़े किए.
उन्होंने ट्वीट किया, “ये यूरोपीय यूनियन के सांसद जो जम्मू-कश्मीर का दौरा कर रहे हैं- उनके परिचय काफी दिलचस्प हैं और कौन इस रहस्यमयी एनजीओ WESTT को संचालित करता है, जो कि उनके दौरे और मेजबानी को फंडिंग कर रहा है. कोई अंदाजा है?” एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने पूछा कि यूरोपीय सांसदों का खर्च किसने गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय ने उठाया? ये नहीं बताया गया.
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