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शरद पवार के इन शातिर दांवों को राजनीति विज्ञान के विद्वान भी न समझ पाए

सोमवार यानी 27 फरवरी को देवेंद्र फडणवीस ने अपने एक बयान में खुलासा किया कि इस पूरे खेल की स्क्रिप्ट राजनीति के चाणक्य और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने लिखी थी.

नवंबर, 2019 की सुबह सात बजे, महाराष्ट्र के राजभवन में शपथ ग्रहण समारोह हुआ और किसी को इस बात की कानों कान खबर नहीं हुई. शपथ लेने वालों में बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार शामिल थे. इस बड़े उलटफेर के बाद सभी को लगा कि एनसीपी ने बीजेपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बना ली है. लेकिन कोई नहीं जानता था कि राजनीति के धुरंधर शरद पवार के एक इशारे से पूरी बाजी ही पलट जाएगी.

हाल ही में महाराष्ट्र बीजेपी के कद्दावर नेता देवेंद्र फडणवीस ने अपने एक बयान में खुलासा किया कि इस पूरे खेल की स्क्रिप्ट राजनीति के चाणक्य और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने लिखी थी.

उन्होंने बताया कि साल 2019 में महाराष्ट्र में एनसीपी चीफ शरद पवार के भतीजे अजित पवार की बगावत, उनका देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर सरकार बनाना, खुद उपमुख्यमंत्री और फडणवीस को मुख्यमंत्री बनना, फिर इस्तीफा देना और उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री बनाना, सब कुछ स्क्रिप्टेड था.

उनके इस बयान के साथ ही सूबे की सियासत में एक बार फिर हलचल मच गई है. 

शरद पवार ने इस दावे पर क्या कहा 

एनसीपी चीफ शरद पवार ने फडणवीस के इस दावे पर कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने उनके भतीजे और एनसीपी के नेता अजित पवार के साथ सरकार बनाई थी. इसका फायदा ये हुआ की इस फैसले से साल 2019 में महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन खत्म हो गया. 

पवार का इस तरह का बयान देना राजनीतिक चतुराई से भरा है, लेकिन इससे एक बात तो जरूर समझ आता है कि उनको सबकुछ पता था.

साल 2019 में क्या हुआ था?

साल 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 105 सीटों पर जीत दर्ज की थी, इस चुनाव के नतीजे 24 अक्टूबर, 2019 को घोषित किए गए थे. वहीं बीजेपी के साथ गठबंधन में रही शिवसेना ने 56 सीट अपने नाम किया था. उस वक्त बीजेपी और शिवसेना की गठबंधन के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीट थे लेकिन इसके बाद भी दोनों सहयोगी दलों के बीच मुख्यमंत्री का पद किसे मिलेगा इस पर विवाद शुरू हो गया. 

इस विवाद के परिणामस्वरूप शिवसेना ने कांग्रेस और राकांपा के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए बातचीत शुरू कर दी. वहीं राज्य का सीएम कौन बनेगा इसपर कोई नतीजा नहीं निकलने पर राज्यपाल ने चुनाव परिणाम आने के 19वें दिन राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी और केंद्र सरकार ने 12 नवंबर को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया.

किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जाने से वह कितना लंबा खिंच सकता है. इसे शरद पवार बखूबी समझते थे. इसलिए पवार ने कांग्रेस, शिवसेना और राकंपा की महाविकास अघाड़ी का गठन होने और इन तीनों के बीच सत्ता की शर्तें निर्धारित होने तक राष्ट्रपति शासन हटाने का ऐसा तरीका निकाला जिसके बारे में किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी. 

बीजेपी ने विकल्प तलाशना शुरू किया

दरअसल, शिवसेना से बात नहीं बन पाने पर बीजेपी ने भी विकल्प तलाशना शुरू कर दिया था. उस वक्त एनसीपी के अजीत पवार ने दावा किया कि उनके साथ 40-50 विधायक हैं और गठबंधन के लिए बीजेपी तुरंत तैयार हो गई. रातभर चक्र घूमे.  अगली सुबह राष्ट्रपति शासन उठा लिया गया. 

राज्यपाल ने सुबह लगभग सात बजे फडणवीस-अजीत को शपथ दिला दी. लेकिन, अजीत पवार 15 विधायकों से ज़्यादा नहीं जुटा पाए. परिणाम स्वरूप यह सरकार भी 80 घंटे में गिर गई और अजीत पवार एक बार फिर अपने चाचा यानी शरद पवार के पास लौट आए.

इस बीच शिवसेना ने कांग्रेस और राकांपा के साथ गठबंधन कर सत्ता में आने की बातचीत जारी रखी और शरद पवार ने घोषणा किया कि सबकी सहमति के साथ उद्धव ठाकरे को नई सरकार का नेतृत्व करने के लिए चुना लिया गया है. उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली और राज्य के सीएम बन गए. बाद में साल 2022 में शिवसेना दो भागों में बंट गई और बीजेपी के सहयोग से एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने और देवेंद्र फडणवीस के उपमुख्यमंत्री. 

शरद पवार को लेकर ये कहावत मशहूर 

सियासी गलियारे में शरद पवार को लेकर चर्चा रहती है कि जब उन्हें दिल्ली जाना होता है तो अहमदाबाद का टिकट कटाते हैं और कोलकाता की फ्लाइट पकड़ते हैं. आसान भाषा में समझे तो राजनीति में उनका अगला कदम क्या होगा इसके बारे में किसी को पता नहीं होता. 

क्यों महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य हैं पवार

महाराष्ट्र पॉलिटिक्स में मराठा क्षत्रप शरद गोविंद राव पवार ऐसे नेता हैं जिन्होंने पिछले पचास साल से लगातार यहां की राजनीति में अपनी अहमियत बरकरार रखी है. नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार की शख्सियत इतनी बड़ी है कि कहा जाता है कि महाराष्ट्र की पूरी राजनीति उनके इर्द गिर्द घूमती है. इससे फर्क नहीं पड़ता कि वो सत्ता में हैं या नहीं पवार की पावर पॉलिटिक्स हर पार्टी समझती है.

जब पवार ने किया सबको हैरान

1. पीएम मोदी से मिले और उद्धव को समर्थन दे दिया: साल था 2019. महाराष्ट्र चुनाव के बाद शिवसेना ने बीजेपी से बगावत कर दी. किसी भी पार्टी के पास सरकार बनाने के लिए पूर्ण बहुमत नहीं थी. इसी बीच शरद पवार दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले. 

सियासी अटकलें तेज हो गई कि एनसीपी और बीजेपी मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाएगी. केंद्र में भी एनसीपी बीजेपी की सहयोगी बन सकती है. मगर, पवार तो पवार थे.

मुलाकात के बाद बाहर आए और पत्रकारों से कहा कि किसानों के मुद्दे पर मिलने गया था. मैं सोनिया गांधी के साथ मिलकर शिवसेना को सपोर्ट करूंगा. शिवसेना को मुख्यमंत्री का पद मिलेगा. पवार के बयान से दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र तक सियासी हलचल मच गई. 

2. महाराष्ट्र में जब बचा ली बीजेपी की सरकार: साल था 2014. महाराष्ट्र चुनाव के बाद बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. पार्टी को 122 सीटों पर जीत मिली, लेकिन सरकार बनाने से चूक गई. शिवसेना पहले से खफा थी और सरकार को समर्थन देने से इनकार कर दिया.

बीजेपी ने देवेंद्र फडणवीस के नाम को आगे किया और सरकार बना ली. विश्वासमत से पहले शरद पवार ने बीजेपी को बाहर से समर्थन देने का ऐलान कर दिया. पवार की पार्टी के पास उस वक्त 41 सीटें थी. शरद पवार के इस दांव से शिवसेना उस वक्त बीजेपी से ज्यादा मोलभाव नहीं कर पाई. 

3. अब उद्धव को भी नहीं समझ आ रहा पवार का दांव: मुख्यमंत्री बनने की चाहत में उद्धव ठाकरे ने एनसीपी और कांग्रेस से गठबंधन तो कर लिया, लेकिन पिछले 4 साल में महाराष्ट्र की सियासत काफी बदल गई है. शिवसेना का विभाजन हो गया है. उद्धव हाथ से पार्टी और सरकार दोनों जा चुकी है. 

कोकण, ठाणे और मुंबई के करीब 56 सीटों पर शिवसेना और एनसीपी के बीच लड़ाई होती थी, अब उद्धव एनसीपी के साथ हैं. ऐसे में कितनी सीटें मिलेगी, यह उद्धव को भी नहीं समझ आ रहा है. दूसरी ओर बीएमसी का चुनाव भी है. उद्धव यहां भी मोलभाव की स्थिति में नहीं है. पवार के एक त्याग वाले दांव से उद्धव चित हो चुके हैं.

जब पीएम बनने से चूके पवार

साल था 1991. राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए बहुमत मिल चुका था. सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया. इसके बाद नामों को लेकर अटकलें तेज होने लगी.

कांग्रेस में उस वक्त दो गुट सबसे ज्यादा हावी था. उत्तर भारत गुट और महाराष्ट्र गुट. उत्तर भारत गुट में नेता थे- अर्जुन सिंह, शंकर दयाल शर्मा, मोतीलाल बोरा और अहमद पटेल.

महाराष्ट्र गुट में यशवंत राव चव्हाण, विलास राव देशमुख और शरद पवार का नाम था. इसी बीच एक अंग्रेजी अखबार ने खबर छापी कि शरद पवार प्रधानमंत्री बन सकते हैं. खबर छपते ही कांग्रेस का उत्तर भारत गुट सक्रिय हो गया.

पहले शंकर दयाल शर्मा के नाम का प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन शर्मा प्रधानमंत्री बनने से खुद इनकार कर दिए. इसके बाद दक्षिण भारत से आने वाले पीवी नरसिम्हा राव के नाम का प्रस्ताव रखा गया. पवार इसी तरह रेस से बाहर हो गए और प्रधानमंत्री बनने से चूक गए.

कैसा रहा उनका राजनीतिक सफर 

पिछले पचास साल से महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी धाक जमाए शरद पवार इसी राज्य में तीन बार मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले चुके हैं. इसके अलावा मनमोहन सिंह की कैबिनेट में साल 2004 से 2014 तक वह कृषि मंत्री भी रहे. पवार केंद्र में रक्षा मंत्री के तौर पर भी काम कर चुके हैं. 

राजनीति में अपनी चाल का लेकर मशहूप शरद पवार का राजनीतिक और व्यवहारिक आचरण भी काफी अच्छा रहा है. यही कारण है कि उनके रिश्ते सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक, सबसे हमेशा अच्छे रहे हैं. साल 2017 में उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मानित सिविलियन पुरस्कार से भी 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया जा चुका है. उस वक्त मोदी सरकार सत्ता में थी. 

27 साल की उम्र में बने थे विधायक

शरद पवार ने राजनीति में कदम रखने के बाद से ही सूझबूझ से आगे बढ़ना शुरू किया था. यही कारण है कि महज 27 साल की उम्र में ही वो एमएलए चुने गए थे. इसके बाद शरद पवार ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वह लगातार बुलंदियों को छूते रहे.

इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी से बगावत कर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दिया था और साल 1978 में जनता पार्टी के साथ मिलकर उन्होंने महाराष्ट्र में सरकार का गठन किया और राज्य के सीएम भी बने. साल 1980 में जब इंदिरा की सरकार वापस आई तो शरद पवार की सरकार बर्खास्त कर दी गई. लेकिन साल 1983 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट का गठन कर प्रदेश की राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ बरकरार रखी.

उस साल हुए  लोकसभा चुनाव में शरद ने पहली बार बारामती से चुनाव जीता था. हालांकि 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 54 सीटों पर अपनी जीत दर्ज की और एक बार फिर  प्रदेश की राजनीति में उनकी वापसी हुई. शरद पवार ने लोकसभा से इस्तीफा दिया और विधानसभा में विपक्ष का नेतृत्व किया. 

साल 1987 में एक बार फिर वह कांग्रेस में वापस आ गए और राजीव गांधी के नेतृत्व में आस्था जता कर उनके करीब हो गए. शरद पवार को साल 1988 में शंकर राव चव्हाण की जगह सीएम की कुर्सी मिली जबकि चव्हाण को साल 1988 में केंद्र में वित्त मंत्री बनाया गया.

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