जम्मूः जम्मू कश्मीर पुलिस के डीएसपी आतंकियों के साथ पकडे जाने की खबर से राज्य पुलिस में सेवाएं दे चुके अधिकारी आहत हैं. पुलिस के पूर्व डीआईजी इसरार खान का दावा है कि कुछ अधिकारी मैडल और पैसे के लिए ऐसा करते हैं. जम्मू कश्मीर पुलिस से डीआईजी के पद से रिटायर हुए इसरार खान के मुताबिक जब वो इस तरह की खबरें पढ़ते हैं तो बहुत दुख होता है. वो दावा करते हैं कि जम्मू-कश्मीर पुलिस पिछले 30 सालों से आतंकियों के खिलाफ काम कर रही है.
इसरार खान के मुताबिक उन्हें देवेंद्र सिंह और उन जैसे कई और अफसरों को देख कर दुख होता है, जो पैसे और मेडल के लिए अपने देश के साथ विश्वासघात करते हैं, अपनी फोर्स के साथ विश्वासघात करते हैं. उनके मुताबिक जम्मू-कश्मीर पुलिस ने जितना भी अच्छा काम आतंकवाद के खिलाफ किया है आरोपी अफसर ने उसे मिट्टी में मिला कर रख दिया है.
'शुरू से इस अफसर का किरदार संदिग्ध'
पूर्व डीआईजी मानते है कि आज सारे लोग जम्मू कश्मीर पुलिस की तरफ उंगलियां उठा कर देख रहे हैं. उनके मुताबिक वो शुरू से इस अफसर का किरदार संदिग्ध था. उनके मुताबिक इस अधिकारी के खिलाफ जबरन वसूली के कई मामले सामने आए थे जिनमें जांच भी हुई लेकिन उस समय के अधिकारियों ने शायद इस बात पर गौर नहीं किया.
इसरार खान मानते हैं कि गिरफ्तार ऑफिसर को जिन लोगों ने भी मेडल दिए उन्हें यह देखना चाहिए था कि इसका किरदार कैसा है. अगर इस अफसर के खिलाफ जबरन वसूली के मामले थे तो इसको मेडल कैसे दिया गया.
'जांच के लिए NIA को मिलनी चाहिए छूट'
उनके मुताबिक जिस अधिकारी को राष्ट्रपति का सम्मान मिलता है सबसे पहले उसके सारे वरिष्ठ अधिकारी उसके नाम पर मुहर लगाते हैं उसके बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीजी उसके नाम की सहमति जताते हैं जिसके बाद उस पर गृह मंत्रालय अपना फैसला लेता है. गृह मंत्रालय में सभी एजेंसी अफसर के रिकॉर्ड को खंगालती है जिसके बाद उसे राष्ट्रपति का अवार्ड मिलता है.
उनके मुताबिक अब जब सरकार ने इस पूरे मामले को निकाला है तो इसमें नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी को खुली छूट दी जानी चाहिए ताकि वह इस अधिकारी के साथ-साथ हिज्बुल मुजाहिदीन के सारे रिकॉर्ड खंगाले. इस जांच के दायरे में पुलवामा में हुए आतंकी हमले को भी खंगालना चाहिए कि कैसे इतना आरडीएक्स कश्मीर पहुंचा.