NSE-co Location Scam: मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर संजय पांडे (Sanjay Pandey) कथित नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) को-लोकेशन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूछताछ के लिए मंगलवार को ऑटो रिक्शा (Auto Rickshaw) में सवार होकर दिल्ली में प्रवर्तन निदेशालय (ED) के समक्ष पेश हुए. अधिकारियों ने बताया कि एजेंसी ने धनशोधन निवारण अधिनियम (PMLA) की आपराधिक धाराओं के तहत उनका बयान दर्ज किया. मुंबई के पुलिस आयुक्त (Mumbai Police Commissioner) के रूप में एक मार्च से शुरू हुए अपने चार महीने के कार्यकाल से पहले उन्होंने महाराष्ट्र (Maharashtra) के कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (Director General Of Police) के रूप में कार्य किया था.


साल 1986 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (India Police Service) के अधिकारी पांडे 30 जून को सेवानिवृत्त (Retired) हुए थे. पांडे आज सुबह 11.20 बजे ऑटो रिक्शा में ईडी के दफ्तर पहुंचे थे. जहां मीडिया उनसे मामले से जुड़े सवाल पूछने के लिए सुबह से खड़ी थी. पांडे से ईडी के अधिकारियों ने ढाई घंटे के करीब पूछताछ की. जिसके बाद दो बजे के करीब उन्हें लन्च करने के लिए ब्रेक दिया गया. इस दौरान ईडी ने पांडे के बयान दर्ज किए. 


इस मामले में की गई पूछताछ


पांडे से ईडी की पूछताछ आईसेक सिक्योरिटीज प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी के कामकाज और गतिविधियों से संबंधित है. कुछ अन्य फर्म में से एक आईसेक सिक्योरिटीज प्राइवेट लिमिटेड ने एनएसई का तब सुरक्षा ऑडिट किया था, जब कथित तौर पर को-लोकेशन संबंधी अनियमितताएं हुई थीं. कंपनी को मार्च 2001 में पांडे द्वारा शामिल किया गया था और उन्होंने मई 2006 में इसके निदेशक का पद छोड़ दिया था तथा उनके बेटे एवं मां ने कंपनी का कार्यभार संभाल लिया था.


एजेंसी इस मामले में एनएसई की पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी चित्रा रामकृष्ण का बयान पहले ही दर्ज कर चुकी है. रामकृष्ण तिहाड़ जेल में बंद हैं. उन्हें और समूह के पूर्व संचालन अधिकारी आनंद सुब्रमण्यम को एनएसई को-लोकेशन घोटाला मामले में मार्च में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने गिरफ्तार किया था. ईडी ने उनके खिलाफ धनशोधन के आरोपों संबंधी सीबीआई की शिकायत का संज्ञान लिया था. आयकर विभाग एनएसई में अनियमितताओं के इन आरोपों की जांच करने वाली तीसरी एजेंसी है.


भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने 2015 में को-लोकेशन मामले की जांच तब शुरू की थी, जब इसे एक 'व्हिसल-ब्लोअर' द्वारा प्रकाश में लाया गया था. 'व्हिसल ब्लोअर' ने आरोप लगाया था कि कुछ ब्रोकर को को-लोकेशन सुविधा, अर्ली लॉग इन और 'डार्क फाइबर' के जरिए तरजीही पहुंच मिल रही है, जो किसी ट्रेडर को एक्सचेंज के डेटा फीड तक तेजी से पहुंच की अनुमति दे सकता है.


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