Tamil Nadu: तमिलनाडु के पूर्व डीजीपी राजेश दास को यौन उत्पीड़न मामले में सजा सुनाई गई है. इसके खिलाफ वह खुद ही अदालत में अपना केस लड़ रहे हैं. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत ने गुरुवार (1 फरवरी) को यौन उत्पीड़न मामले में दास की तरफ से दायर की गई अपील की सुनवाई को शुक्रवार तक स्थगित कर दिया. इस दौरान अदालत में एक बेहद ही दिलचस्प मामला देखने को मिला, जब राजेश दास ने खुद ही अपना केस लड़ने की इजाजत देने की मांग की. 


न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, गुरुवार को जब राजेश दास की अपील पर सुनवाई हो रही थी, तो उस वक्त अदालत में दास की तरफ से कोई भी वकील अदालत में मौजूद नहीं था. ऐसे में उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि उन्हें अपने मामले में बहस करने की इजाजत दी जाए. मामले की सुनवाई कर रहीं जस्टिस पूर्णिमा ने दास के इस अनुरोध को मंजूरी दी, जिसके बाद वह कोर्ट में खुद का केस लड़ते हुए देखे गए. उनके केस की सुनवाई विल्लुपुरम में हो रही है. 


करियर पर काला दाग लगाने से बनाया गया केस: राजेश दास


सुनवाई के दौरान राजेश दास ने तर्क दिया कि यौन उत्पीड़न का ये मामला उनके करियर पर काला दाग लगाने के इरादे से बनाया गया था. उन्होंने कहा, 'इस मामले के पीछे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का हाथ है और शिकायतकर्ता के समर्थन में एकतरफा जांच की गई है.' 


अदालत ने बुधवार को उन्हें चेतावनी दी थी कि अगर गुरुवार को भी बहस के लिए वकील अदालत में आने में विफल रहते हैं, तो सरकारी अभियोजक नियुक्त किया जाएगा. अदालत ने कहा था कि दास जानबूझकर मामले को खींच रहे हैं और वकील अदालत के साथ सहयोग नहीं कर रहे हैं.


क्या है पूरा मामला? 


तमिलनाडु के पूर्व डीजीपी पर 2021 में एक महिला एसपी के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप है. इस मामले में विल्लुपुरम मुख्य आपराधिक न्यायिक न्यायालय ने जून 2023 में राजेश दास को तीन साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई. इसके बाद दास ने सजा को चुनौती देते हुए जिला प्रधान सत्र न्यायालय में अपील दायर की. हालांकि, उनके वकील अपील मामले में बहस के लिए समय मांगते रहे, जबकि सरकार की दलीलें पूरी हो चुकी हैं. 


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