नई दिल्ली: वित्त मंत्रालय ने कहा है कि वह पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल में देश और विदेश में भारतीयों के कालेधन पर तीन रिपोर्टों की समीक्षा कर रहा है. यूपीए सरकार के कार्यकाल में ये रपटें तैयार कराई गई थीं. इन्हें तीन साल पहले सौंपा जा चुका है.

सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में मंत्रालय ने कहा कि इन रपटों के निष्कर्षों को आरटीआई कानून के तहत ‘खुलासे से छूट’ है और अभी उनकी समीक्षा की जा रही है. अभी इन रपटों को संसद के पास नहीं भेजा गया है.

दिल्ली के नेशनल इंस्टिट्यूट आफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी), नेशनल काउंसिल आफ एप्लायड इकनामिक रिसर्च (एनसीएईआर) के अलावा फरीदाबाद के नेशनल इंस्टिट्यूट आफ फाइनेंशियल मैनेजमेंट (एनआईएफएम) ने यह रपटें तैयार की हैं. एनआईपीएफपी, एनसीएईआर और एनआईएफएम की रपटें सरकार को क्रमश: 30 दिसंबर, 2013, 18 जुलाई, 2014 और 21 अगस्त, 2014 को मिली हैं. मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार मई 2014 में सत्ता में आई थी. वित्त मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा कि आरटीआई कानून, 2005 की धारा 8 (1) (सी) के तहत इस सूचना का खुलासा न करने की छूट है. तीनों संस्थानों से मिली रपटों की सरकार समीक्षा कर रही है. इन रपटों को सरकार के जवाब के साथ अभी तक वित्त पर स्थायी समिति के जरिये संसद में नहीं रखा गया है.

ये रपटें संसद की वित्त पर स्थायी समिति को पहले ही सौंपी जा चुकी हैं. अभी तक देश और विदेश में कालेधन के बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है.

अमेरिकी शोध संस्थान ग्लोबल फाइनेंशियल इंटिग्रिटी (जीएफआई) के हालिया अध्ययन के अनुसार 2005 से 2014 के दौरान भारत में 770 अरब डॉलर का कालाधन आया. वहीं इस अवधि में देश से बाहर 165 अरब डॉलर का कालाधन गया.