Exclusive: सभी नियमों का पालन कर यूपीए से भी सस्ते में हुई राफेल डील: सूत्र
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार से राफेल सौदे को लेकर तीन सवाल पूछे हैं. एबीपी न्यूज़ को सरकार में मौजूद सूत्रों से राहुल गांधी के तीनों सवालों का जवाब मिला है.
नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल डील को बड़ा मुद्दा बना दिया है. राफेल सौदे को लेकर सरकार गोपनीयता का हवाला दे रही है. वहीं राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार से राफेल सौदे को लेकर तीन सवाल पूछे हैं. एबीपी न्यूज़ को सरकार में मौजूद सूत्रों से राहुल गांधी के तीनों सवालों का जवाब मिला है. इस जवाब में सबसे अहम बात यह है कि सरकार के सूत्रों के मुताबिक राफेल की डील यूपीए में की गयी डील से सस्ती है. यूपीए की डील में पुरानी पीढ़ी के विमान थे. जबकि मोदी सरकार की डील में बेहद उन्नत और अगली पीढ़ी के विमान हैं. इसमें हवा से हवा में मार करने वाली पैट्रियट मिसाइलें लग सकती हैं. परमाणु हथियार, सोनार, मल्टीपल गन्स लोड हो सकती हैं.
राहुल गांधी का पहला सवाल- क्या आपने पेरिस जाकर कॉन्ट्रैक्ट बदला ? पहले सवाल का जवाब- सरकार के सूत्रों का जवाब है कि अप्रैल 2015 पीएम मोदी पेरिस यात्रा पर गए थे. उस वक्त पहली बार वायुसेना की जरूरत को देखते हुए प्रधानमंत्री ने सीधे दोनों सरकारों के बीच राफेल डील का प्रस्ताव रखा था.
दोनों देशों के बीच उस समय इस डील पर सहमति बनी तो MOU या MOI पर हस्ताक्षर हुए थे. उस दौरान ना कीमत तय हुई थी और न ही हथियारों को लेकर बात हुई थी, सिर्फ 36 एयरक्राफ्ट पर सहमति बनी थी. पेरिस में एमओयू पर हस्ताक्षर होने के बाद भी सौदेबाजी में तकरीबन डेढ़ साल का वक्त लगा, दोनों सरकारों के अधिकारियों और मंत्री स्तर पर लगातार बातचीत होती रही.
राहुल गांधी का दूसरा सवाल- क्या आपने कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी से पूछा था हां या ना ? दूसरे सवाल का जवाब- सरकारी सूत्रों का जवाब है कि सितंबर 2016 में इस डील पर तब के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और फ्रांस के रक्षा मंत्री जीन दरिण ने हस्ताक्षर किए. उससे पहले CCS की बैठक में बाकायदा इस डील को हरी झंडी दी गयी.
राहुल गांधी का तीसरा सवाल- एक राफेल की कीमत कितनी है ? तीसरे सवाल का जवाब- सरकार के सूत्रों का कहना है कि भारत सरकार और फ्रांस सरकार 2008 के समझौते के तहत इस डील की गोपनीय जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकती है. इस गोपनीयता के पीछे दोनों देशों के सामरिक हित छिपे हुए है. एक राफेल फाइटर जेट की कीमत 610 करोड़ है जो कि यूपी के वक्त की कीमत से करीब 75 से 100 करोड़ कम है.
सरकार ने जिन 36 राफेल एयरक्राफ्ट फ्रांस से खरीदने की डील की है वो 2012 यूपीए सरकार में हुई राफेल की डील से बेहद उच्च क्षमता के हैं यानी की ये राफेल अगली पीढ़ी के हैं.
राफेल यूपीए की डील से सस्ता क्यों है? सरकार के सूत्रों का दावा है कि राफेल की डील यूपीए में की गयी डील से सस्ती है. सूत्रों का कहना है कि यूपीए की डील में पुरानी पीढ़ी के विमान थे. जबकि मोदी सरकार की डील में बेहद उन्नत और अगली पीढ़ी के विमान हैं. इसमें हवा से हवा में मार करने वाली पैट्रियट मिसाइलें लग सकती हैं. परमाणु हथियार, सोनार, मल्टीपल गन्स लोड हो सकती हैं.
सरकार के सूत्रों का कहना है कि यूपीए के वक्त सौदा पूरा नहीं हुआ था. अगर 2012 में डील होती तब भी 2017 में पहली खेप मिलती. कीमत 570 करोड़ थी लेकिन हर साल 4 फीसदी मुद्रा स्फीति जुड़ती तो 2017 में एक विमान 684 करोड़ का पड़ता. इसमें चक्रवृद्धि ब्याज जोड़ने पर एक विमान की कीमत 700 करोड़ से ज्यादा हो जाती.
जबकि मोदी सरकार की डील में मुद्रास्फीति की दर 1% रखी गयी है. फ्रांस में मुद्रास्फीति की दर 1% के हिसाब से घटती-बढ़ती है. मुद्रास्फीति 1% होने की वजह से रक्षा बजट पर बोझ नहीं पड़ेगा. इसलिए मोदी सरकार की डील में एक विमान की कीमत 610 करोड़ रूपए पड़ रही है.
वित्तमंत्री ने कहा- कीमत बताना देश के दुश्मनों की मदद करने जैसा वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज लोकसभा में कहा कि जिस राफेल विमान की कीमत को लेकर राहुल इतना हंगामा कर रहे हैं उसकी सही कीमत बताना देश के दुश्मनों की मदद करने जैसा है. जेटली ने कहा ये पहला मौका नहीं है जब सरकार किसी रक्षा सौदे की पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं कर रही है, यूपीए के समय में रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी भी ऐसा कर चुके हैं. पूरी डिटेल खबर यहां पढ़ें
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