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Exclusive: गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष में भारतीय सेना की वो ‘वीरगाथा’ जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाएंगे

जय बजरंग बली के उदघोष के साथ 'वीर-बिहारियों' ने चीनी कैंप में आग लगा दी थी. बिहार रेजीमेंट ने चीनी कैंप पर ऐसा हमला किया था जो इतिहास में दर्ज हो जाएगा.

नई दिल्ली: गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष की कहानी अब छन छन कर सामने आने लगी है. ये कहानी ऐसी है जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाएंगे. 'वीर बिहारियों' की वीर गाथा सुनकर आप भी दांतों तले उंगलियां दबा लेंगे. एबीपी न्यूज़ के पास इस संघर्ष की बेहद ही एक्सक्लूसिव जानकारी है.

प्रधानमंत्री ने बहादुर सैनिकों की प्रसंशा

बता दें कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस संघर्ष में वीरगति को प्राप्त हुए बहादुर सैनिकों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि मरते मरते वे दुश्मन को मार कर गए. सूत्रों ने एबीपी न्यूज को बताया कि 15/16 जून की रात गलवान घाटी में बिहार रेजीमेंट के चीनी सेना पर किए गए हमले को सैन्य इतिहास के सबसे 'साहसिक और घातक' के तौर पर जाने जाएगी.

सूत्रों के मुताबिक, बिहार रेजीमेंट की 16वीं बटालियन यानि 16 बिहार यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर‌(सीओ), कर्नल बी संतोष बाबू के चीन की गद्दारी के चलते वीरगति प्राप्त होने के बाद उनके सेकेंड इन कमांड (टूआईसी) और दो युवा अफसरों ने  यूनिट की जिम्मेदारी संभाली ली थी. इन तीनों ऑफिसर्स (एबीपी न्यूज़ सुरक्षा कारणों से इन तीनों के नाम का खुलासा नहीं कर रहा है) ने बिहार रेजीमेंट के घातक कमांडोज़ के साथ चीनी कैंप पर ऐसा हमला बोला कि चीनी सेना आज भी त्राहिमाम कर रही है. वो भी तब जबकि इन वीर बिहारियों ने दुश्मन पर एक भी गोली नहीं चलाई, क्योंकि दोनों देशों के बीच हुई संधि के मुताबिक एलएसी के दो किलोमीटर के दायरे में कोई फायरिंग या गोलाबारी नहीं होनी चाहिए.

बता दें कि किसी भी यूनिट में कमांडिंग ऑफिसर एक पिता-तुल्य होता है. यही वजह है कि सीओ की मौत की खबर सुनकर वीर बिहारी चीनी सेना पर टूट पड़े. इस मिशन में उनका साथ दिया फील्ड रेजीमेंट यानि तोपखाने के सैनिकों ने, जो उस वक्त वहां तैनात थे.

15 जून को दोनों देशों के सेनाओं की कर्नल स्तर पर हुई थी बैठक

दरअसल, 15 जून को भारत और चीन की सेनाओं के कर्नल स्तर के अधिकारियों की बैठक गलवान घाटी की पेट्रोलिंग पॉइंट नंबर 14 पर हुई थी. ये मीटिंग 6 जून को भारत और चीन के कोर कमांडर स्तर के अधिकारियों के एलएसी पर डिसइंगेजमेंट यानि विवादित इलाकों से अपनी अपनी सेना को पीछे करने के लिए हुई थी.

15 जून यानि सोमवार की बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व किया, कर्नल संतोष बाबू ने, क्योंकि उनकी यूनिट, 16 बिहार इसी पीपी-14 पर तैनात थी. मीटिंग में चीन के कर्नल (कमांडिंग ऑफिसर) ने पीपी-14 पर बने अपने एक टेंट को हटाने पर राजी हो गया था. ये दरअसल, ये चीन की पीएलए सेना की एक ऑबजर्वेशन पोस्ट थी, जहां से दुरबुक-श्योक-डीबीओ रोड की निगरानी की जा सकती थी. ये पोस्ट‌ एक ऊंचे पहाड़ पर थी और चीनी सेना के अधिकार-क्षेत्र में थी. लेकिन क्योंकि दोनों देश संधियों से बंधे थे कि विवादित क्षेत्र में पेट्रोलिंग तो की जा सकती है लेकिन सेनाएं यहां किसी तरह की स्थायी या अस्थायी पोस्ट नहीं बना सकती हैं. इसलिए भारतीय सेना ने इस अस्थायी पोस्ट का विरोध किया था.

क्योंकि जैसाकि मीटिंग में तय हुआ था भारतीय सैनिक भी टकराव वाली जगह से थोड़ा पीछे हट गए थे ऐसे में शाम के वक्त कर्नल संतोष ने एक मेजर रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में 12 सदस्य पेट्रोलिंग पार्टी को देखने के लिए भेजा कि चीनी सेना ने अपनी पोस्ट हटाई है या नहीं?

जब चीनी सेना ने टेंट-नुमा ऑबजर्वेशन-पोस्ट को नहीं हटाया...

लेकिन शाम तक भी जब चीनी सेना ने अपने इस टेंट-नुमा ऑबजर्वेशन-पोस्ट को नहीं हटाया तो भारतीय सेना की 12 सदस्य पेट्रोलिंग पार्टी को वहां भेजा गया ताकि वस्तु-स्थिति का पता लगाया जा सके. ये पेट्रोलिंग पार्टी ऐसा लगता है अपने साथ कोई हथियार लेकर नहीं गई थी. यही वजह है कि चीनी सैनिकों ने इस भारतीय सैनिकों को बंधरक्षक बना लिया.

जैसे ही ये खबर कर्नल संतोष को लगी वे अपने दो जवानों के साथ चीनी खेम में पहुंच गए. उन्हें उम्मीद दी थी कि क्योंकि दिन में उन्होनें चीन के सीओ से बैठक की थी, वो उनके सैनिकों को रिहा करने की बात मान लेगा. यही वजह है कि वे अपने दो जवानों के साथ पहाड़ पर बनी चीनी पोस्ट पर पहुंचे गए.

चीन के कैंप में हुई कहासुनी- सूत्र

खुद कर्नल संतोष कुछ सैनिकों के साथ चीन के कैंप चले गए ताकि चीन के कमांडिंग ऑफिसर से इसका विरोध दर्ज कराया जा सके. लेकिन सूत्रों की मानें तो चीन के कैंप में ही कर्नल संतोष और उनके जवानों की कहासुनी हो गई. इसके बाद ज्यादा संख्या में मौजूद चीनी सैनिकों ने कर्नल संतोष और उनके साथ गए कुछ सैनिकों को घेर लिया और लाठी, डंडों और कटीली तार लगे रॉड से उनपर हमला बोल दिया. अचानक हुए इस हमले में कर्नल संतोष ने दम तोड़ दिया.

अब तक आधी रात गुजर चुकी थी और मंगलवार लग चुका था लेकिन कर्नल संतोष की हत्या के बाद पूरी बिहारी-पलटन का खून खौल उठा. 16 बिहार के टूआईसी, जो लेफ्टिनेंट कर्नल रैंक के अधिकारी थे और दो कैप्टन स्तर के अधिकारियों के साथ करीब 300 सैनिकों ने चीनी कैंप पर रात में ही हमला बोल दिया. हालांकि पहाड़ पर बैठे चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर जमकर पत्थरबाजी की लेकिन वीर-बिहारी खेमे तक पहुंच गए. 'जय बजरंग बली' के उदघोष के साथ भारतीय सैनिकों ने चीन के कैंप में आग लगा दी. इस बार भारतीय सैनिकों भी लाठी-डंडे और बेयोनेट (यानि लंबे खंजर) से लैस थे. हमला राइफल की बट से भी किया गया. चीनी खेमें में हड़कंप मच गया. कई घंटे तक लड़ाई चली.

भारतीए सैनिकों ने तोड़ दी गर्दन

सूत्रों के मुताबिक घातक कमांडो ने कम से कम 15 चीनी सैनिकों की गर्दन तोड़ दीं जिससे उन्होनें मौके पर ही दम तोड़ दिया. कई चीनी सैनिकों के सिर पत्थर से कुचल दिए गए. सूत्रों की मानें तो चीनी सैनिक पहले से तैयार थे और हमले के दौरान वे खास रॉउटे्स-गियर यानी दंगे के दौरान सुरक्षाकर्मियों के पहने जाने वाले गियर में थे. यही वजह है कि भारतीय सैनिकों ने उनकी गर्दन तोड़ दी या फिर सिर पर पत्थर से वार किया.

सूत्रों के मुताबिक, जिस पहाड़ी पर चीनी कैंप लगा था वो भारत और चीन के सैनिकों के भार से टूटकर नीचे गिर गई और उसके साथ ही दोनों तरफ के सैनिक नीचे बहती बर्फ के समान ठंडी गलवान नदी में आ गिरे. इस नदीं में गिरने और ठंड लगने से दोनों तरफ के सैनिक बड़ी तादाद में हताहत हुए.

भारतीय सेना के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष में कर्नल संतोष बाबू सहित कुल 20 सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए. करीब 18 भारतीय सैनिक बुरी तरह घायल हुए. 58 सैनिकों को मामूली चोटें आईं.

चीनी सेना को हुआ जबरदस्त नुकसान

लेकिन वीर-बिहारियों के इस हमले में चीनी सेना को जबरदस्त नुकसान हुआ. चीन के कम से कम 40 सैनिकों की जान चली गई और 100-150 सैनिक घायल हुए हैं. कई चीनी सैनिकों के शव गलवान नदी की धारा को रोककर निकाली गए. क्योंकि ये गलवान नदी अक्साई चिन से भारत के पूर्वी लद्दाख में बहने वाली श्योक नदी में मिलती है.

घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए चीनी सेना को हेलीकॉप्टर लगाने पड़े. खुद भारत सरकार के मंत्री और पूर्व थलसेना प्रमुख जनरल वी के सिंह ने चीन की फौज को हुए बड़े नुकसान की तस्दीक की है. जनरल वी के सिंह ने यहां तक दावा किया है कि जिस तरह चीनी सेना ने दस भारतीय सैनिकों को बंधक बनाया था ठीक वैसे ही भारतीय सेना ने भी चीनी सैनिकों को बनाया था. हालांकि, भारतीय सेना ने अभी तक इस तथ्य की पुष्टि नहीं की है.

पराक्रम को सैल्यूट करने के लिए सेना की उत्तरी कमान वीडियो जारी किया

बिहार रेजीमेंट के शौर्य और पराक्रम को सैल्यूट करने के लिए सेना की उत्तरी कमान ने एक वीडियो जारी किया, 'करम ही धरम' नाम से जो बिहार रेजीमेंट का आर्दश-वाक्य है. इसमें सेना ने कहा है कि हर सोमवार के बाद मंगलवार जरूर आता है. क्योंकि मंगलवार को ही भारतीय सेना ने चीन के खेमे में आग लगाकर चीनी सेना की कमर तोड़ दी थी. मंगलवार का दिन बजरंग बली, हनुमान जी का होता है और 'जय बजरंग बली' बिहार रेजीमेंट का उदघोष भी है. इस वीडियो में बिहार रेजीमेंट द्वारा ठीक 21 साल पहले करगिल युद्ध में बहादुरी के कारनामों को भी सैल्यूट किया गया है.

बिहार रेजीमेंट की इस बहादुरी कारनामे को प्रथम विश्व युद्ध के कुछ लड़ाइयों से जोड़कर देखा जा रहा है. गलवान घाटी में चीनी सेना को बड़े तादाद में हुए नुकसान के बाद चीनी कमांडर भारत से जंग के बजाए बातचीत की गुहार लगा रहे हैं. चीन का विदेश मंत्रालय लगातार इस बात को उठा रहा है कि भारतीय सैनिकों ने एलएसी पार कर उनके इलाके में हिंसक संघर्ष किया. लेकिन भारतीय सेना के सूत्रों का कहना है कि भारतीय ‌सैनिकों ने अपनए कमांडिंग ऑफिसर की धोखे से हत्या करने का बदला लेने के इरादे से चीन की सीमा में दाखिल हुए थे और बदला पूरा होने के बाद वापस अपनी सीमा में लौट आए थे.

साफ है जिस चीनी सेना ने ताइवन और तिब्बत से लेकर अक्साई चिन और शिंचियांग तक में कब्जा किया वो गलवान घाटी में भारतीय सेना के जबरदस्त प्रहार के सदमे से बाहर नहीं आ पाई है. उसने अभी तक ना तो ये बताया कि उसके कितने सैनिक मारे गए और ना ही कितने घायल हुए. यहां तक कि भारतीय सैनिकों के बंधक बनाए जाने से भी साफ इंकार कर दिया.

विदेश मंत्रालय की चीन को दो टूक- गलवान घाटी भारत का हिस्सा है

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