Exclusive: पूर्व डिप्टी एनएसए बोले- अफगानिस्तान में स्थिति बेहद नाजुक, भारत के लिए चिंता के कई विषय लेकिन अभी इंतजार करे
डॉ. अरविंद गुप्ता का कहना है कि अफगानिस्तान में स्थिति अभी बेहद नाजुक है, ऐसे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी. भारत को भी अभी स्थिति का आंकलन करना चाहिए.
नई दिल्ली: अफगानिस्तान में सियासत की घड़ी एक बार फिर दो दशक पीछे खड़ी नजर आ रही है जब काबुल के किले पर तालिबान का परचम लहरा रहा है. जिस तरह से काबुल का किला ढहा, जिस तरह से सत्ता ने करवट ली उसने बहुत से सवाल खड़े कर दिए हैं. इसके साथ ही दक्षिण एशिया और पूरी दुनिया के लिहाज से सियासी समीकरण भी बदले हैं. इसके मायने क्या है, यह समझने के लिए एबीपी न्यूज़ संवाददाता प्रणय उपाध्याय ने भारत के पूर्व डिप्टी एनएसए (उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) और विदेशी मामलों के जानकार डॉ. अरविंद गुप्ता से बात की.
डॉ. अरविंद गुप्ता का कहना है कि अफगानिस्तान में स्थिति अभी बेहद नाजुक है, ऐसे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी. भारत को भी अभी स्थिति का आंकलन करना चाहिए. तालिबान अपना रुख बदलेगा इसे लेकर संभावना बेहद कम है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत को तालिबान, तीन और पाकिस्तान के गठजोड़ से भी सावधान रहने की जरूरत है. पढ़ें डॉ. अरविंद गुप्ता से पूरी बातचीत
सवाल- अफगानिस्तान में जो मौजूदा हालात हैं उन्हें कैसे पढ़ा जाए और भारत के लिहाज से चिंता के सवाल क्या हैं?
डॉ. अरविंद गुप्ता- अभी तक हम 9/11 की बात करते थे लेकिन अब हम 15 अगस्त की बात करेंगे. अफगानिस्तान में कल जिस तरह से बदलाव आया, जिस प्रकार से अमेरिका वहां से निकला यह अमेरिका के लिए ठीक नहीं है. यह दिखाता है कि हम नए वर्ल्ड ऑर्डर में आ गए हैं. इसमें नए प्लेयर्स आ गए हैं. स्थिति इस वक्त इतनी तरल है कि कुछ भी निश्तित रूप से कहना मुश्किल है. लेकिन दो तीन बातें जो सामने नजर आती हैं उनमें पहली है- अमेरिका का घटता प्रभाव. अफगानिस्तान में वह बीस साल रहे और अरबों रुपये कर्च किए, वो उसको बचा नहीं पाए. दूसरी बात है- इस इलाके में पाकिस्तान और चीन का बढ़ता प्रभाव, यह भी एक चिंता का विषय हो सकता है. इसके साथ ही रूस का प्रभाव वापस बढ़ रहा है. अमेरिका ने अपने दूतावास को खाली कर दिया है लेकिन रूस ने ऐसा नहीं किया है. इसका मतलब साफ है कि वो तालिबान के साथ अपना जोड़ तोड़ जारी रखेंगे. यह सब नए समीकरण बनेंगे और इनमें भारत के लिए कुछ ज्यादा अच्छे विकल्प नजर नहीं आते.
सवाल- भारत ने अभी तक अपने दूतावास को खाली नहीं किया है, मिशन स्टाफ को हटाया नहीं है. वरिष्ठ दूतावास अधिकारी अभी भी काबुल में मौजूद हैं. तो क्या ऐसा माना जाए कि भारत ने फिलहाल यह संकेत दिए हैं कि वो हालात को तौलना चाहता है और पश्चिमी देशों की तरह छोड़ कर नहीं जाना चाहता. लेकिन स्थिति इस बात पर निर्भर करेगी कि हालात किस करवट रहेंगे.
डॉ. अरविंद गुप्ता- भारत के लिए सबसे जरूरी है आंकलन करना कि क्या हो रहा है. कुछ वीडियो और तस्वीरें आयी हैं, जिनमें दिख रहा है कि तालिबान राष्ट्रपति भवन में घुस गया है. अभी वहां आतंकरिक सरकार होगी या फिर सीधे तालिबान कब्जा करेगा. यह भी खबर आ रही है कि कुछ नेता जैसे हामिक करजई, अब्दु्ल्ला अब्दुल्ला तालिबान के साथ बातचीत करने की कोशिश कर रहे हैं. ताबिलान इतनी अच्छी स्थिति में है कि जो भी वो बात कहेंगे सबको माननी पड़ेगी. उन्होंने साफ कर दिया है कि शरिया लागू होगा और अमीरात बनेगा. लेकिन नीतियां क्या होंगी, यह स्पष्ट नहीं है. इसलिए भारत को अभी फिलहाल स्थिति का आंकलन करना चाहिए. भारत अपना दूतावास खुला रखे और अपने अधिकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करे. लेकिन अगर वहां हिंसा होती है तो भारत को भई बाकी देशों की तरह कदम उठना होगा.
सवाल- आज शाम को सुरक्षा परिषद की एक बैठक होने वाली है, विदेश मंत्री एस जयशंकर इसकी अध्यक्षता करेंगे. भारत की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक में क्या स्थितियां होंगी. संयुक्त राष्ट्र के पास इस स्थिति को लेकर क्या क्या विकल्प हैं?
डॉ. अरविंद गुप्ता- सुरक्षा परिषद की यह बैठक बेहद महत्वपूर्ण होगी. हो सकता है कि इस बैठक के लिए भी कोई संकेत निकले. इसके साथ ही यह भी साफ होगा कि अगर तालिबान सत्ता में आते हैं तो उन्हें मान्यता मिलेगी या नहीं. लेकिन सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में भी मतभेद हैं. रूस और चीन जो तालिबान के करीबी थे, वो बहुत खुश हैं और वो चाहेंगे कि कुछ प्रतिबंध लगाकर ताबिलान को मान्यता दे दी जाए. दूसरी ओर अमेरिका, जिसने तालिबान के साथ डील की, उनका ताबिलान के प्रति क्या व्यवहार होगा यह देखना पड़ेगा. लेकिन एक बात साफ है कि पश्चिम के देशों का इस बात पर जरूर जोर है कि तालिबान का लोकतंत्र, महिलाओं और मानवाधिकार के प्रति जो बर्ताव है उसे लेकर कुछ संदेश दिया जाए.
सवाल- ताबिलान का भारत के हितों के लिए किस प्रकार से चिंता है? और भारत अपने इन हितों की रक्षा किस प्रकार कर सकता है? अगर अफगानिस्तान में लंबे गृहयुद्ध जैसे हालात बनते हैं तो भारत की चिंताएं क्या होंगी?
डॉ. अरविंद गुप्ता- भारत की सुरक्षा चिंताएं वही हैं जो आज से बीस साल पहले थीं. नंबर एक- तालिबान-पाकिस्तान का जो गठजोड़ है वो भारत के प्रति क्या रुख अपनाता है. इस समय भारत और पाकिस्तान के संबंध बेहत खराब हैं. ऐसे में पाकिस्तान चाहेगा कि भारत के जो भी प्रोजेक्ट अफगानिस्तान में चल रहे हैं, उन्हें नेस्तानाबूत कर दिया जाए. अफगानिस्तान में पाकिस्तान का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए अच्छी बात नहीं है. हो सकता है कि पाकिस्तान, चीन और तालिबान मिल जाएं और फिर यह जो करेंगे, उसके लिए भी भारत को चिंतित होना पड़ेगा.
दूसरा जो चिंता का विषय है- तालिबान के पहले शासन में वहां पर आतंकवादी गुट फल फूल रहे थे. तो अभी कई आतंकी ग्रुप वहां पर हैं. ऐसे में उन्हें शक्ति मिल सकती है और वे पनप सकते हैं. तालिबान का ऐसे गुटों के लिए क्या बर्ताव रहेगा. और यह ग्रुप भारत के लिए चिंता बढ़ा सकते हैं. हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए. जहां इन मामलों के हल की बात है तो इस पर निर्भर करेगा कि वहां कैसी सरकार आती है.
अगर वहां तालिबान की सरकार आती और उसे भारत समेत कुछ और देश भी मान्यता देते हैं. तो फिर हमारे सामने एक चैनल खुला रहेगा जिसमें हम उनके सुरक्षा और बाकी मुद्दों पर बात कर सकते हैं. लेकिन हमें इस पर ज्यादा निर्भर नहीं रहना होगा. हमें वहां से आने वाली किसी भी गलत प्रतिक्रिया के लिए तैयार रहना पड़ेगा.
सवाल- भारत के लिए सुरक्षा की चिंताएं बढ़ी हैं, क्योंकि अफगानिस्तान में हो हुआ उसका असर भारत तक आने की संभावना है?
डॉ. अरविंद गुप्ता- अफगानिस्तान में हुआ उसका असर भारत पर आएगा, सेंट्रल एशिया पर आएगा और पूरी दुनिया पर आएगा. ऐसी चिंताएं जिसे सब मानते हैं. लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि तालिबान का आचरण कैसा रहेगा. बहुत चर्चा हो रही है कि यह नया तालिबान है. क्या यह अपना स्वरूप बदलेंगे. इसके प्रवक्ता ने अभी इंटरव्यू के जरिए विश्व मंच पर आश्वासन देने का काम किया है. लेकिन यह आश्वासन देने का टाइम नहीं है. हमें देखना पड़ेगा कि जमीनी हकीकत क्या है? मेरा मनना है कि अफगानिस्तन इतनी जल्दी बदलने वाला नहीं.
सवाल- जमीनी हकीकत और ताबिलान के आश्वासन लेकिन क्या तालिबान के लड़ाके कंट्रोल में हैं? क्या इसे लेकर सवाल नहीं उठते?
डॉ. अरविंद गुप्ता- तालिबान में भी कई सारी शाखाएं हैं, दोहा में जो बैठे हैं वो अंतरराष्ट्रीय राजनीति को जानते हैं. लेकिन जिन्होंने इसके लिए लड़ाई हम जानते हैं कि वे ही सत्ता में आएंगे. तालिबान की ओर से कौन लोग सत्ता में आएंगे वो और जो दोहा में बैठकर टीवी इंटरव्यू दे रहे हैं, वो अलग अलग बातें है, हमें इसमें नहीं जाना चाहिए.
सवाल- अमेरिका अफगानिस्तान में बहुत से हथियार छोड़कर गया है, जो अब तालिबान के पास आ गए हैं. जिससे वो पहले से और भी ज्यादा ताकतवर हो गया है. ऐसे में Rouge State के तौर पर यह पूरे क्षेत्र को कैसे अस्थिर कर सकता है?
डॉ. अरविंद गुप्ता- यह स्वाभाविक चिंता है, अमेरिका भारी मात्रा में हथियार छोड़कर चला गया और अफगानिस्तान की सरकार गिर गयी. यह हथियार अब तालिबान के हाथ में भी आ सकते हैं, इसलिए यह वास्तव में एक बड़ा खतरा है. यह हमारे लिए भी सुरक्षा की एक चुनौती बन सकती है. दक्षिण एशिया के देशों को यह चिंता है कि यह अस्थिर कर सकते हैं, अमेरिकी हथियारों के दम पर.
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