नई दिल्ली: दलितों के मुद्दे पर लगातार आलोचना का शिकार हो रही मोदी सरकार अपनी छवि बदलने के लिए अब फटाफट कदम उठाने की योजना बना रही है. एबीपी न्यूज़ को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक़ सरकार ने एससी/एसटी क़ानून में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं.


कैबिनेट नोट तैयार
सरकार पहले ही कह चुकी है कि एससी एसटी क़ानून पर जो पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है उसपर फैसला अगर सरकार की इच्छा के खिलाफ आया तो अध्यादेश लाया जाएगा. इस मामले में 16 मई को अंतिम सुनवाई होनी है. सूत्रों ने एबीपी न्यूज़ को बताया कि सरकार ने अध्यादेश की तैयारी शुरू कर दी है. इसके लिए कैबिनेट नोट तैयार कर लिया गया है और उसे सुझावों के लिए सभी मंत्रालयों को भेज दिया गया है जो महज एक औपचारिकता है.


18 मई से पहले अध्यादेश होगा जारी
एबीपी न्यूज़ को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक मोदी सरकार ने ये फैसला कर लिया है कि 18 मई से पहले इस अध्यादेश पर मुहर लग जाएगी. दरअसल 18 मई को गर्मियों की छुट्टी से पहले सुप्रीम कोर्ट में कामकाज का आखिरी दिन है. ऐसे में अगर 16 मई को होने वाली सुनवाई के बाद अगर कोर्ट एससी - एसटी कानून में बदलाव के अपने पुराने दिशानिर्देश को नहीं बदलती है तो गर्मी की छुट्टियां शुरू होने से पहले सरकार अध्यादेश लाकर उन दिशानिर्देशों को पलट देगी जिससे पुराना कानून भल हो सके.


एससी - एसटी कानून में कोर्ट ने किए थे बदलाव
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए एससी - एसटी कानून के क्रियान्वयन में कुछ अहम बदलाव के निर्देश दिए थे . कोर्ट ने इस कानून के तहत तुरन्त एफआईआर करने और गिरफ्तार करने पर रोक लगाते हुए कहा था कि पहले हर मामले की जांच करने के बाद ही गिरफ्तार करने का फैसला किया जाना चाहिए.


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प्रोमोशन में आरक्षण पर भी अध्यादेश ?
एबीपी न्यूज़ को मिली एक और अहम जानकारी के मुताबिक अब सरकार दलितों को सरकारी नौकरियों में प्रोमोशन में आरक्षण पर लगी कोर्ट की रोक को भी हटाने पर विचार कर रही है और इसके लिए भी अध्यादेश का रास्ता चुना जा सकता है और अगर ऐसा होता है तो ये फैसला भी 18 मई से पहले जो सकता है.


दरअसल 2006 में नौकरियों में एससी - एसटी के कर्मचारियों की पदोन्नति में मिलने वाले आरक्षण में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी जो आज तक कायम है. यूपीय सरकार के दौरान इस फैसले को बदलने की कोशिश की गई लेकिन सपा और बसपा जैसी सहयोगियों के बीच एक राय नहीं होने के चलते इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. अब मोदी सरकार इस रोक को हटा कर अपनी छवि बदलना चाहती है.


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