29 अक्टूबर को फ्रांस के नीस शहर में एक आतंकी हमला हुआ जिसमें तीन लोगों की हत्या हुई. इससे कुछ दिनों पहले पेरिस में एक शिक्षक की हत्या हुई. वह अपने छात्रों को पैगंबर मोहम्मद का एक कार्टून दिखा रहे थे. इसी के साथ दुनिया भर में धार्मिक आजादी, बोलने की आजादी, इस्लामिक आतंकवाद और कट्टरवाद पर बहस शुरू हो हो गई है. इन सब के बीच एबीपी न्यूज़ ने मशहूर बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन से तमाम मुद्दों पर खास बातचीत की. तस्लीमा नसरीन खुद 25 सालों से अपने देश से निर्वासित हैं.


सवाल: जब आपको हमले की खबर पता चली तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?


जवाब: देखिए, फ्रांस में  पहले भी आतंकी हमले हुए हैं. लेकिन एक बार फिर अटैक होने से मैं बहुत हैरान हुई हूं क्योंकि फ्रांस की सरकार का यह वादा था कि वह आतंकवाद को नियंत्रित करेगी. हम क्या कह सकते हैं? हमारे कानून  7वीं सदी के हैं. हम उन्हीं विश्वासों, कर्मकांडों को मानते चलते आ रहे हैं जो 1400 साल पुराने हैं.  मैं समझती हूं कि इस्लाम में सुधार होना चाहिए. कानूनों में बदलाव होना चाहिए. बच्चों में के दिमाग में कट्टरता भरे जाने का विरोध होना चाहिए.



सवाल: तो आप यह कह रही हैं कि इस्लाम में सुधार होना चाहिए?


जवाब: दूसरे धर्मों में भी सुधार हुए हैं. बहुत से धर्म हैं जो हिंसा की बात करते थे. क्रिश्चिनिटि बहुत हिंसक रही है. मध्यकाल में ईसाई धर्म के कई आलोचकों को मार दिया गया, जिन्होंने भी ईसाई धर्म पर सवाल उठाया वह मार दिए गए लेकिन अब ईसाई समाज एक धर्मनिरपेक्ष समाज है. उन्होंने धर्म और राज्य को अलग कर दिया. आपके कानून धर्म पर आधारित नहीं होने चाहिए बल्कि समानता पर आधारित होने चाहिए. दूसरी तरफ मुस्लिम देशों में हमें सातवीं सदी के नियम मिलते हैं. मुस्लिम देशों में शरिया कानून लागू हैं जिन्हें अब खत्म हो जाना चाहिए. इन देशों में महिला-पुरुष बराबरी, फ्री स्पीच, और डेमोक्रेसी, मानवाधिकार को जगह मिलनी चाहिए लेकिन समस्या यह है कि इस्लाम में कोई सुधार नहीं हुआ है.


सवाल: बांग्लादेश की बात करें जो आपका देश है,  वहां जो भी रिफॉर्म की बात करते हैं, जैसे बहुत सारे ब्लॉगर्स हैं, उनकी हत्या हो जाती है?


जवाब: देखिए ब्लॉगर्स के बारे में आप बात करते हैं… मैं 26 सालों से अपने देश से दूर हूं. मेरी सरकार मुझे अपने ही देश में आने की इजाजत नहीं देती है क्योंकि मैं इस्लाम की आलोचना करती हूं, हमें बाकी धर्मों की आलोचना करने की आजादी थी लेकिन इस्लाम की नहीं.


सवाल: क्या फ्रीडम ऑफ स्पीच में यह हो सकता है कि आप किसी की धर्म को चोट पहुंचाएं? किसी की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाएं?


जवाब: रोज हजारों भावनाएं आहत होती हैं लेकिन हम सह लेते हैं लेकिन धार्मिक लोग कैसे यह मांग कर सकते हैं कि उनकी धार्मिक भावना को चोट नहीं पहुंचाई जाए.  यह मांग सही नहीं है क्योंकि फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन में धर्म को चोट पहुंचेगी. दूसरे धर्मों में बहुत सी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंची लेकिन तभी उन समाजों में सुधार हुआ. इसका कारण था आलोचनात्मक कसौटी. सभी धर्म महिला विरोधी, मानवाधिकार विरोधी हैं और सभी धर्म हिंसा का समर्थन करते हैं लेकिन इसे बंद करने के लिए फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन बहुत जरूरी है, आलोचनात्मक नजरिया बहुत जरूरी है तभी समाज सेक्युलर होगा, तभी राज्य और धर्म अलग-अलग हो पाएगा. राजा राम मोहन राय और ईश्वर चंद्र विधासागर बंगाल के सुधारक थे, वे अब महापुरुष माने जाते हैं. जो भी ईसाई और यहूदी धर्म में सुधार लाए उन्हें महापुरुष कहा गया लेकिन जिन्होंने भी इस्लाम में सुधार लाने की कोशिश की उन्हें गलत नामों से पुकारा गया.


सवाल: जो फ्रांस के राष्ट्रपति ने कहा क्या आप उससे सहमत हैं?


जवाब: सारे मुस्लिम एक जैसे नहीं हैं. देखिए मैं मुस्लिम कम्युनिटी से आई हूं मैं एक फ्री थिंकर हूं. मुस्लिम कम्युनिटी में ऐसे फ्री थिंकर बहुत हैं, बहुत लोग हैं जो हिंसा में विश्वास नहीं करते हैं लेकिन जब कोई इस्लाम के नाम पर हत्या करता है  तो उसकी आलोचना मॉडरेट मुस्लिम जोर से नहीं करते उनकी चुप्पी बहुत बड़ी समस्या है. मुस्लिम पर अटैक होता है तो आप विरोध करते हो लेकिन जब मुस्लिम निर्दोष लोगों को मारते हैं तो आप क्यों नहीं विरोध करते हैं?


सवाल: आप बोल रही हैं कि मॉडरेट मुस्लिमों की भी बहुत बड़ी परीक्षा है क्योंकि बार-बार उनको आगे आकर प्रोटेस्ट करना पड़ेगा नहीं तो उनको जिहादियों का साथी माना लिया जाएगा. वो घर में आराम से बैठ नहीं सकते.


जवाब: विरोध करना पड़ेगा, नहीं तो लगेगा कि सभी जिहादियों के समर्थक हैं. जब भी कोई जिहादी हमला करता है तो मुस्लिमों को बोलना पड़ेगा नहीं तो उन्हें भी जेहादी समर्थक मान लिया जाएगा.


सवाल: ये बात इतनी सरल भी नहीं है. एक तरफ फ्रांस हैं. वहीं कई मुस्लिम देश हैं जैसे तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन जिन्होंने बायकॉट फ्रांस की बात की. मलेशिया में महातिर मोहम्मद हैं जो फ्रांस के खिलाफ बोले. हम इमरान खान की भी आवाज सुन रहे हैं.


जवाब: यह बहुत गलत है कि वे अपने राजनीतिक हितों के लिए ऐसा कर रहे हैं. मुस्लिम देशों के नेताओं को बहुत मजबूत बनकर जिहादी गतिविधियों का विरोध करना होगा. नहीं तो इस्लाम का भविष्य बहुत खराब है. कई लोग जिहादी बनने के लिए प्रोत्साहित होते हैं. मैं भारत को अच्छा बोलती हूं क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री ने फ्रांस का साथ दिया. सभी मुस्लिम देशों को भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हिस्सा लेना चाहिए बल्कि दुनिया के सभी देशों को आतंकवाद के खिलाफ जंग में साथ आना चाहिए.


सवाल: आपको क्या लगता है कि भविष्य में चीजें सुलझेंगी या और खराब होंगी?


जवाब: मुस्लिम देशों के नेता अगर आतंकवादियों का समर्थक होंगे तो यह बहुत खराब होगा. 26 साल पहले जब मुझे बांग्लदेश छोड़ना पड़ा था तब भी वहां इतना हिजाब, इतना कट्टरवाद नहीं था लेकिन 26 साल में यह सब बदल गया है. यह बहुत चिंताजनक बात हैं. 80 के दशक में इस्लामीकरण शुरू हुआ और सरकार ने विरोध नहीं किया.


सवाल: आप यह कह रही हैं बांग्लादेश में हिजाब और बुर्का पिछले सालों में बढ़ा है?


जवाब: जब मैं थोड़ी छोटी थी, हर मोहल्ले में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे. मुशायरा आदि होते थे लेकिन वह सब खत्म हो गया है. अब धार्मिक नेता आते हैं, वे बहुत जिहादी बाते करते हैं जिसे सुनकर मुस्लिम युवा पूरी तरह भ्रमित हो जाता है. नॉन मुस्लिम को मार डालने के लिए प्रेरित करते हैं, वे एंटी वुमेन बात करते हैं, जिहादी बनने के लिए प्रेरित करते हैं. सरकार इस सब पर रोक नहीं लगाती है.


सवाल: एक तरफ फ्रांस का स्टैंड है दूसरी तरफ बांग्लादेश जैस देशों में कट्टरवाद बढ़ रहा है फिर तो टकराव होगा रास्ता कहां से निकलेगा?


जवाब: फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेंशस देना ही होगा. मैं सब धर्मों की आलोचना करती हूं, जहां भी हिंसा की बात होती है मैं उसकी आलोचना करती हूं.


सवाल: भविष्य को लेकर आप आशावान है या आपको भविष्य बहुत मुश्किल लगाता है?


जवाब: मुझे तो आशा ही लगती है. मेरे जैसे बहुत लोग हैं, लड़ना लड़ेगा. मध्यकाल में ईसाईयत बहुत खराब थी, अभी देखो ईसाई देश सबसे आधुनिक देश बन गए. उम्मीद है कि  इस्लामिक देश भी ऐसे ही आधुनिक देश बन जाएंगे.


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