(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Exclusive: ऑक्सीजन ऑडिट रिपोर्ट में अपना नाम देख दिल्ली के 3 अस्पताल हैरान, कहा- कमेटी के दावे गलत
ऑक्सीजन ऑडिट कमेटी की रिपोर्ट में दिल्ली के चार अस्पतालों का जिक्र है. इसमें से तीन अस्पतालों ने रिपोर्ट में अपना नाम देख हैरानी जताई. साथ ही रिपोर्ट में किए गए दावों को गलत बताया. ये तीन अस्पताल रोहिणी स्थित ईएसआईसी मॉडल हॉस्पिटल, सिविल लाइंस स्थित अरुणा आसफ अली अस्पताल, पालम कॉलोनी स्थित सिंघल हॉस्पिटल और तुलगलकबाद का लाइफरेज़ अस्पताल हैं.
नई दिल्ली: दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई ऑक्सीजन ऑडिट कमेटी की एक रिपोर्ट को लेकर विवाद उठ खड़ा हो गया है. कमेटी की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दिल्ली सरकार ने अपनी ज़रूरत से 4 गुना ज़्यादा ऑक्सीजन की डिमांड की. इसी रिपोर्ट में चार अस्पतालों के भी ज़िक्र किया गया है जिन्हें लेकर कहा गया है कि इन अस्पतालों में कम बेड होने के बावजूद अत्यधिक ऑक्सीजन इस्तेमाल की जो कि गलत प्रतीत होता है. ये चार अस्पताल सिविल लाइंस स्थित अरुणा आसफ अली अस्पताल, तुलगलकबाद का लाइफरेज़ अस्पताल, रोहिणी स्थिति ESIC मॉडल हॉस्पिटल और पालम कॉलोनी स्थित सिंघल हॉस्पिटल हैं. एबीपी न्यूज़ की टीम ने इन 4 में से 3 अस्पतालों से बात की. तीनों ही अस्पतालों ने रिपोर्ट में अपना नाम आने पर हैरानी जताई और रिपोर्ट में कही गई बात को गलत बताया.
अरुणा आसफ अली अस्पताल-सिविल लाइंस
दिल्ली के सिविल लाइंस स्थित अरुणा आसफ अली अस्पताल ने ऑक्सीजन ऑडिट कमेटी रिपोर्ट में नाम आने पर हैरानी जताई है. अस्पताल की मेडिकल सुपरिटेंडेंट सुनीता मीणा से मिली जानकारी के मुताबिक अरुणा आसिफ अली अस्पताल एक नॉन कोविड अस्पताल है और रिपोर्ट में जिस एमएमओ (लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन) की बात की जा रही है वो सिस्टम अस्पताल में है ही नहीं.
एबीपी न्यूज़ को अस्पताल की एमएस सुनीता मीणा ने फोन पर बताया, "ये रिपोर्ट गलत है. हमारा अस्पताल नॉन-कोविड है, कभी भी कोविड हॉस्पिटल नहीं था. जो आम पेशेंट एडमिट होते हैं बस उनकी ऑक्सीजन डिमांड थी. रिपोर्ट में हमारे अस्पताल का नाम होना हमारे लिए भी आश्चर्य की बात है. मुझे नहीं पता कि इसका आधार क्या है. इसलिये हम इस पर अभी कुछ नहीं कहना चाहते. इस रिपोर्ट में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (LMO) की जो बात की गई है और जिस पर ये सारा मुद्दा आधारित है वो सिस्टम हमारे यहां है ही नहीं. न कोई प्लांट है न कोई स्टोरेज फैसिलिटी है. हम उस ऑक्सीजन की श्रेणी में आते ही नहीं हैं. हमें नहीं पता कि हमारे अस्पताल का नाम कैसे आ गया. हमने कभी कोई ऑक्सीजन डिमांड नहीं की."
लाइफरेज़ हॉस्पिटल- तुगलकाबाद
इन 4 अस्पतालों में से एक तुगलकाबाद का लाइफरेज़ हॉस्पिटल भी है. हॉस्पिटल के मालिक गौरव इस समय दिल्ली में नहीं हैं लेकिन फोन पर उन्होंने हमसे बात की और अपना पक्ष सामने रखा. गौरव के मुताबिक "हमारा हॉस्पिटल 27 अप्रैल को कोविड के लिए अप्रूव हुआ था उस समय हमें 12 बेड को इजाज़त मिली थी. 10 मई को हमें हॉस्पिटल का रजिस्ट्रेशन नम्बर मिला है. इस दौरान 5 और 6 तारीख को हमने SDM से गुहार लगाई थी कि किसी तरह से हमें ऑक्सीजन दी जाए. हमने उनको अपने लेटर हेड पर लेटर दिया, जिसके बाद उन्होंने हमें वैभव नाम के डीलर का नम्बर दिया उनसे कांटेक्ट कराया. उसके बाद वहां से हमारा कुछ ऑक्सीजन का प्रबंध हुआ. हमने 12-14 मई तक ऑक्सीजन वहां से ली, उसके बाद पेशेंट बिल्कुल कम हो गए. हमने जितनी भी ऑक्सीजन ली है वो सारी डिटेल हमारे पोर्टल पर मौजूद हैं.
गौरव ने कहा, "रिपोर्ट में कही गई बात बेबुनियाद है. पूरे हॉस्पिटल में 12 बेड थे, उस समय किल्लत थी बहुत ज़्यादा. तब तक हमारे पास रजिस्ट्रेशन नहीं था तो हमने ही गुहार लगाई थी कि कोविड का इलाज हमें करने दे. जो भी ऑक्सीजन हमने ली है वो ऑन-रिकॉर्ड है. प्रति पेशेंट के लिए फ्लो के हिसाब से ऑक्सीजन डिमांड अलग अलग थी. जितनी डिमांड हमने रखी थी उतनी ही नहीं मिली तो एक्स्ट्रा हम कहां से रखेंगे. क्राइसिस में हमने ऑक्सीजन कन्संट्रेटर खुद से अरेंज किए थे."
सिंघल हॉस्पिटल- पालम कॉलोनी
रिपोर्ट में जिस सिंघल हॉस्पिटल का जिक्र किया गया है उसके मैनेजर रवि वार्ष्णेय के कहा कि रिपोर्ट में जिस लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की बात की जा रही है वो सिस्टम हमारे अस्पताल में मौजूद ही नहीं है. गौरव वार्ष्णेय ने कहा, "ऑक्सिजन ऑडिट कमेटी की रिपोर्ट में जो कहा जा रहा है वो पूरी तरह से गलत है क्योंकि LMO (लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन) टैंक को कोई व्यवस्था नहीं है और न ही कोई ऑक्सिजन प्लांट है. हमारा हॉस्पिटल स्टाफ खुद जाकर ऑक्सीजन प्लांट में सिलेंडर लेकर आ रहा था. वो भी 2 या 3 सिलेंडर ही मिलते थे उससे ज़्यादा नहीं मिल पाते थे क्योंकि वो कहते थे कि कोविड हॉस्पिटल पोर्टल में हमारा नाम नहीं है. जब 1 मई 2021 से हमारा नाम आया उसके बाद कुछ सिलेंडर हमें मिलने लगे. उस समय अप्रैल में हमारे पास 12-13 मरीज़ एडमिट थे जिसमें 5-7 मरीज़ हाई फ्लो ऑक्सीजन पर थे जिसके चलते ऑक्सीजन की डिमांड ज़्यादा थी और 1-2 सिलेंडर से हमारा मैनेज नहीं हो पा रहा था तो मरीज़ों के अटेंडेंट हमें सिलेंडर लाकर दे रहे थे. ये जो आरोप हैं वो गलत हैं."