खुलासा: आरे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने से पहले ही कट गए थे पेड़, जंगल बन चुका था मैदान
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को झटका देते हुए पेड़ों की कटाई रोकने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब कोई पेड़ नहीं काटे जाएंगे । केस की अगली सुनवाई 21 अक्टूबर को फॉरेस्ट बेंच के सामने होगी.
नई दिल्ली: मुंबई में मेट्रो रेल का डिपो बनाने के लिए पेड़ों की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक तो लगा दी, लेकिन कोर्ट का आदेश आने से पहले ही लगभग सभी पेड़ काटे जा चुके थे. सुप्रीम कोर्ट मुंबई के आरे में पेडों की कटाई को रोकने का फैसला सुना रहा था, तब तक 2600 में से करीब 2000 तक पेड़ कट चुके थे. आरे जंगल का हिस्सा पूरी तरह से मैदान बन चुका था. इस मुद्दे को लेकर मुंबई में शनिवार रात से खूब हंगामा हुआ और मुंबई पुलिस को धारा 144 लगानी पडी. शिवसेना ने इस डिपो का विरोध करके इसे राजनीतिक रंग भी देने की कोशिश की.
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, मुंबई के आरे कॉलोनी में पेड़ की कटाई पर रोक लगाई
जब महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई मेट्रो रेल लाइन नंबर 3 बनाने के लिए ये जगह तय की तब से ही यहां के आदिवासियों और पर्यावरण प्रेमी संस्थाओं ने विरोध शुरू कर दिया. इस विरोध के पीछे की वजह 2600 पेड़ों का काटा जाना ही था. सरकार ने दलील दी कि आरे के पेडों को काटने के बदले कई गुना ज्यादा पेड़ वो लगाएगी. सरकार की इस दलील को अस्वीकार करते हुए उन्होने अदालत का धरवाजा खटखटाया और मांग की कि आरे को जंगल घोषित करके पेड़ों की कटाई रोकी जाए. शुक्रवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने जैसे ही उनकी याचिका खारिज की, मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने रात में ही पेड़ों को काटना शुरू कर दिया. ये काम रविवार की रात तक चलता रहा. पर्यावरण प्रेमियों ने काम रूकवाने के लिये प्रदर्शन किया लेकिन पुलिस ने धारा 370 लगाकर उनको हिरासत में ले लिया. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट का आदेश आते आते कॉरपोर्शन को जितने पेड काटने थे, उसने काट लिये.
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मुंबई में इस वक्त 6 मेट्रो लाईन बनाने का काम एक साथ चल रहा है, मेट्रो लाईन नंबर 3 इनमें सबसे बडी है. 34 किलोमीटर लंबी ये लाईन पूरी तरह से अंडरग्राउंड होगी और पश्चिमी उपनगर सीप्झ से लेकर दक्षिण मुंबई के कोलाबा तक जाएगी. सरकार का दावा है कि इस लाइन के बनने से निजी कारों के कारण सडक पर होने वाला प्रदूषण कम होगा. इसी लाइन के लिए डिपो बनाने की खातिर आरे को चुना गया था. स्थानीय आदिवासियों और पर्यावरण के लिये काम करने वाली संस्थाओं के अलावा राजनीतिक पार्टी शिवसेना ने भी इसका विरोध शुरू किया.
शुक्रवार की शाम जब बीजेपी से देवेंद्र फडणवीस और शिव सेना के उद्धव ठाकरे गलबहियां लगकर अपने गठबंधन का ऐलान कर रहे थे उसी वक्त आरे में पेड़ों का कटना शुरू हो चुका था. अगले दिन उद्धव ठाकरे ने ये कहा कि पेड़ काटने वालों को बख्शा नहीं जाएगा. यहां सवाल ये उठाया जा रहा है कि शिव सेना पेड़ कटाई को लेकर क्या वाकई गंभीर थी. अगर वो वाकई गंभीर थी तो फिर उसने बीजेपी के साथ गठबंधन क्यों किया जिसकी सरकार के आदेश पर आरे के पेड़ काटे गए. लेकिन शिवसेना के लिये शायद ये इतना बडा मुद्दा नहीं था कि इसके लिये वो बीजेपी से अपने सियासी रिश्ते तोड़े.
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