नई दिल्ली: चुनाव के दौरान कैश और शराब जैसी चीजों के जब्त होने के कई मामले होते हैं. लेकिन इनमें दोषी को सज़ा मिलने की बात आपने कम ही सुनी होगी. ये मसला अब सुप्रीम कोर्ट की नजर में आ गया है. कोर्ट ने चुनाव के बाद चुनाव आयोग की तरफ से मामलों पर ध्यान न देने पर सवाल उठाए हैं.


कैसे शुरू हुआ मामला


2014 में कर्नाटक के बेल्लारी लोकसभा सीट के चुनाव में चुनाव आयोग ने प्रतीक परसरामपुरिया नाम के शख्स के घर से करीब 21 लाख रुपए कैश ज़ब्त किए. कहा गया कि मतदाताओं को बांटने के लिए ये पैसे जमा किए गए थे.


चुनाव आयोग की शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की. लेकिन फरवरी 2015 में कर्नाटक हाई कोर्ट ने एफआईआर रद्द कर दी. हाई कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग की शिकायत में इस बात का ज़िक्र ही नहीं है कि पैसे किसे दिए जाने थे, उसके लिए क्या तरीका अपनाया जाने वाला था.


इस आदेश से परेशान कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. 5 सितंबर 2017 को जस्टिस एन वी रमना और डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया. बेंच ने नोटिस जारी करते वक्त इस बात को नोट किया कि चुनाव आयोग चुनाव के बाद मामलों में दिलचस्पी नहीं दिखाता है.


आज क्या हुआ


आज ये मामला जस्टिस रमना और अब्दुल नज़ीर की बेंच के सामने लगा. चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि चुनाव के दौरान दर्ज होने वाले मुकदमों की पैरवी के लिए उसके अपने नियम हैं. कोर्ट ने आयोग के वकील से इस बारे में हलफनामा दाखिल करने को कहा.


कोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीर बताते हुए आज केंद्र सरकार से भी जवाब दाखिल करने को कहा. कोर्ट ये जानना चाहता है कि चुनावी मुकदमों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए किस तरह के कदम उठाने की ज़रूरत है.


EVM चोरी का भी मसला उठा


कर्नाटक सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश वकील देवदत्त कामत ने कोर्ट को बताया कि चुनाव के दौरान दर्ज होने वाले मुकदमों में से ज़्यादातर में आरोपी आखिरकार छूट जाते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि न तो चुनाव आयोग, न पुलिस बाद में इन मामलों में दिलचस्पी लेती है.


कामत ने ईवीएम चोरी के कई मामलों का भी उदाहरण दिया. उन्होंने बताया कि ईवीएम चुनाव आयोग की संपत्ति है. लेकिन इसकी चोरी के मामलों की जांच में भी आयोग उदासीन बना रहता है. इस तरह के दर्जनों मामले अब तक अनसुलझे हैं.