Freebies Culture: मुफ्त की रेवड़ी पड़ी महंगी! चुनावों से पहले इस राज्य में दिखा असर, समझें- कैसे प्रदेशों को कर रही कंगाल
Freebies Culture: जनता का वोट पाने के लिए फ्री की रेवड़ियां देने का वादा किया जाता है और फिर जब इनको पूरा करने की बारी आती है तो कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं. ऐसा ही कुछ हिमाचल प्रदेश में हुआ.
Freebies Politics: लगभग दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आज हमारे देश में मुफ्त रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने की कोशिश की जा रही है. रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए बहुत खतरनाक है. देश के लोगों, खासकर युवाओं को इस रेवड़ी संस्कृति से सावधान रहने की जरूरत है. आज यही फ्री की रेवड़ियां राज्यों के लिए पैरों की बेड़ियां बनती दिख रही हैं.
दरअसल, यहां बात हो रही है हिमाचल प्रदेश की. इस राज्य के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि प्रदेश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और इसलिए वो और उनके मंत्री दो महीने की सैलरी और भत्ता छोड़ रहे हैं. हिमाचल प्रदेश के आर्थिक संकट की वजह सरकार की तरफ से बांटी जा रही फ्री की रेवड़ियों को माना जा रहा है. ढाई साल पहले चुनाव के समय कांग्रेस ने मुफ्त की कई योजनाओं का वादा किया था. जब इन वादों को पूरा करने की कोशिश की गई तो कर्ज और बढ़ गया.
हिमाचल प्रदेश को लेकर क्या कहते हैं रिजर्व बैंक के आंकड़े?
रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता आने से पहले मार्च 2022 तक 69 हजार करोड़ रुपये से कम का कर्ज था. कांग्रेस के राज्य में सत्ता संभालने के बाद मार्च 2024 तक 86 हजार 600 करोड़ रुपये का कर्ज हो गया. इतना ही नहीं मार्च 2025 तक हिमाचल प्रदेश का कर्ज बढ़कर लगभग 95 हजार करोड़ रुपये हो जाएगा.
मुफ्त की रेवड़ियां बन गईं पैरों की बेड़ियां!
2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने कई चुनावी गारंटियां दी थीं. मसलन, 300 यूनिट फ्री बिजली, 19 साल से 60 साल की उम्र की महिलाओं के लिए हर महीने 1500 रुपये और ओल्ड पेंशन स्कीम जैसे लोकलुभावन वादे किए और चुनाव जीत लिया. इसके बाद जब इनको पूरा करने की बारी आई तो राज्य पर कर्ज लद गया. इन वादों को पूरा करने के लिए बेतहाशा खर्च किया जा रहा है.
इसको ऐसे समझते हैं कांग्रेस सरकार ने महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये देने का वादा किया जिसको पूरा करने में सालाना 800 करोड़ रुपये का खर्च का अनुमान लगाया गया है. फ्री की बिजली देने के लिए सरकार पर 18 हजार करोड़ रुपये का भार पड़ता है और इसी तरह ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू कर दिया गया जिस पर 1000 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं.
आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश पर हर पांच साल में 30 हजार करोड़ रुपये का कर्ज बढ़ा है. मौजूदा समय में राज्य पर 86 हाजर करोड़ रुपये का कर्ज है. पहाड़ी राज्य में हर शख्स पर 1.17 लाख रुपये का कर्ज है. राज्यों के अंदर इंफ्रास्ट्रक्टर, शिक्षा, रोजगार और बाकी के विकास के कार्यों को कैसे किया जाएगा. ऐसे में इन क्षेत्रों में काम बहुत कम हो पाता है.
फ्री की रेवड़ियां क्यों पड़ जाती हैं फीकी?
हिमाचल प्रदेश का सालाना बजट 58, 444 करोड़ रुपये है. इसमें से करीब 42 हजार करोड़ रुपये तो सैलरी, पेंशन और पुराने कर्ज चुकाने में ही खर्च हो जाता है. ऊपर से राज्य पर इतना कर्ज हो गया कि केंद्र सरकार को इसके कर्ज की लिमिट को भी घटाना पड़ा. इसको समझना इतना बड़ा रॉकेट साइंस नहीं है, ये आम इंसान को भी पता है कि कमाई कम है और खर्च ज्यादा तो कर्ज लेना ही पड़ता है. वहीं, अगर खर्च और कर्ज को सही से मैनेज नहीं किया गया तो हालात ऐसे हो जाते हैं कि न तो कमाई का कोई जरिया बचता है और न ही कर्जदार कर्ज देने को तैयार होते हैं.
सिर्फ हिमाचल ही नहीं हमाम में सब नंगे
इस रेवड़ी कल्चर के चक्कर में सिर्फ हिमाचल प्रदेश ही खस्ताहाल नहीं हुआ है या फिर सिर्फ कांग्रेस ने इसे चुनावी हथियार बनाया है. इस देश में सभी बड़ी पार्टियां इसकी जद में हैं. फिर वो बीजेपी ही क्यों न हो. महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में बीजेपी ने भी महिलाओं हर महीने रुपये देने की स्कीम चल रही है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी फ्री बिजली पानी पर चुनाव जीता और अन्य राज्यों की तरह महिलाओं को रुपये देने की स्कीम पर काम किया जा रहा है. इसी तरह दक्षिण भारत में भी कई पार्टियां इसी तरह की स्कीम चल रहा रही हैं.
किस राज्य में कितना कर्ज?
रिजर्व बैंक के मुताबिक, मार्च 2024 तक सभी राज्य सरकारों पर कुल 75 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था जो मार्च 2025 तक बढ़कर 83.31 लाख करोड़ से भी ज्यादा हो जाएगा. देश में सबसे ज्यादा कर्ज तमिलनाडु पर है.
तमिलनाडु पर 8.34 लाख करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश पर 7.69 लाख करोड़ रुपये, महाराष्ट्र पर 7.22 लाख करोड़, पश्चिम बंगाल पर 6.58 लाख करोड़ रुपये, कर्नाटक पर 5.97 लाख करोड़ रुपये, राजस्थान पर 5.62 लाख करोड़ रुपये, आंध्र प्रदेश पर 4.85 करोड़ रुपये, गुजरात पर 4.67 लाख करोड़ रुपये, केरल पर 4.29 लाख करोड़ रुपये, मध्य प्रदेश पर 4.18 लाख करोड़ रुपये, तेलंगाना पर 3.89 लाख करोड़ रुपये, पंजाब पर 3.51 लाख करोड़ रुपये, हरियाणा पर 3.36 लाख करोड़ रुपये, बिहार पर 3.19 लाख करोड़ रुपये और असम पर 1.51 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है.