Mumbai Pollution News: आज के समय में वायु प्रदूषण की समस्या से हर कोई जूझ रहा है. समाज का कोई भी वर्ग हो वो इसकी चपेट में है. वायु प्रदूषण ने हमारी धरती को चारों ओर से घेर लिया है और अब इससे बचने के लिए लोगों को मास्क की सलाह दी जाती है. हालांकि, मुंबई स्थित हिंदुजा अस्पताल के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. लैंसलॉट पिंटो इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. उनका कहना है कि आज नागरिकों को मास्क की नहीं, बल्कि बेहतर हवा की जरूरत है.
प्रदूषण और स्वास्थ्य पर लांसेट आयोग ने बताया कि वायु प्रदूषण वैश्विक स्तर पर हर साल 6.5 मिलियन से अधिक मौतों का कारण बनता है. प्रदूषण से होने वाली 90% से अधिक मौतें भारत जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं. डॉ. लैंसलॉट ने HT को बताया कि मुंबई में रहने वालों ने पिछले एक महीने में निराशाजनक वायु गुणवत्ता का अनुभव किया है.
'ज्यादातर लोगों में अस्थमा जैसे लक्षण'
उन्होंने कहा, "हमने दोस्तों, परिवार और परिचितों को खांसी के बारे में बताते हुए सुना है जो इलाज के बावजूद ठीक नहीं हो रही है. उन्हें लगातार छींक आ रही है, वे सांस की तकलीफ से जूझ रहे हैं और छाती में जकड़न महसूस होती है." डॉ. लैंसलॉट ने कहा कि ऐसे लोगों के एनालिसिस से पता चलता है कि इनमें भी अस्थमा जैसे ही लक्षण है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) 50 से कम एक्यूआई और 12 μg/m3 से कम पीएम 2.5 को संतोषजनक मानता है. पिछले एक महीने के लिए मुंबई में सबसे अच्छा 24-एच AQI 92 रहा है और सबसे खराब 280 रहा है, जिसके अनुरूप पीएम 2.5 का स्तर क्रमशः 50 और 137 µg/m3 रहा है. बता दें कि पीएम 2.5 सूक्ष्म कणों से मेल खाता है, जो फेफड़ों के सबसे छोटे वायुमार्ग तक पहुंचते हैं और गंभीर स्वास्थ्य परिणाम पैदा करने की क्षमता रखते हैं.
मुंबई की स्थिति दिल्ली से बेहतर
डॉ. लैंसलॉट ने बताया कि विशेषज्ञ वायु प्रदूषण के कई कारण बताते हैं. इनमें से अधिकांश हवा की गुणवत्ता और हवा के असाधारण रूप से खराब होने की ओर इशारा करते हैं. उन्होंने कहा कि मुंबई, तटीय होने के नाते, पारंपरिक रूप से हवा की धाराओं से लाभान्वित हुआ है, जिसने शहर के लिए एक निकास पंखे के रूप में काम किया है. मुंबई की स्थिति इस मामले में दिल्ली से बेहतर है, क्योंकि वो हर तरफ से घिरा हुआ नहीं है.
इन वजहों से बढ़ रहा प्रदूषण?
उन्होंने कहा कि इस फायदे के बावजूद मुंबई में स्थिति चिंताजनक है. शहर के किसी भी हिस्से में टहलने से पता चलता है कि हम हवा में कितनी धूल और प्रदूषण मिला रहे हैं. निर्माण, मरम्मत और उत्खनन की मात्रा के आधार पर डॉ. लैंसलॉट को लगता है कि कुछ ऐसे तरीके हैं जिनका इस्तेमाल कर नागरिकों को ऐसे प्रदूषण से बचाया जा सकता है. उन्होंने कहा, "अगर कारखानों और कार्यस्थलों में कर्मचारियों को प्रदूषकों के अस्वीकार्य स्तर से बचाने के लिए नियम हो सकते हैं, तो इसे नागरिकों पर क्यों नहीं लागू किया जा सकता है?"
'सांस की समस्या वालों के लिए मास्क असुविधाजनक है'
पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. लैंसलॉट ने कहा कि उनके लिए इस तथ्य को स्वीकार करना बहुत निराशाजनक है कि हवा की गुणवत्ता के कारण नागरिकों को लंबे समय तक दवाओं का सेवन करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि नागरिकों को बहुत आसानी से "मास्क पहनने" की सलाह दी जाती है, लेकिन लोगों को ये नहीं मालूम कि सांस संबंधी समस्या वाले लोगों के लिए ये बेहद असुविधाजनक है.
'मास्क के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी'
उन्होंने कहा कि मास्क को बार-बार बदलने की आवश्यकता होती है और उच्च दक्षता वाले मास्क महंगे होते हैं. उन्होंने कहा, "एक मनुष्य के रूप में हमें मास्क के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी, क्योंकि मास्क हमारे चेहरे के भावों और भावनाओं की क्षमता को कवर करते हैं." डॉ. लैंसलॉट का कहना है कि मास्क की ओर ध्यान देने की बजाय, हमें हवा को स्वच्छ बनाने पर ध्यान देना चाहिए.
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