नई दिल्ली: इधर कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जा रहे हैं और उधऱ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नेपाल में एक मंदिर से दूसरे मंदिर जा रहे हैं. बीते शुक्रवार को वो जनकपुर में सीताधाम में थे. आज सुबह वो मुक्तिनाथ धाम में पूजा-अर्चना करते नजर आए. धार्मिक और राजनीतिक पंडितों का मानना है कि मोदी के तीर्थयात्री का यह अवतार दरअसल कर्नाटक चुनाव को प्रभावित करने वाला है.


आपको बता दें कि कर्नाटक में करीब 80 फीसद हिंदू हैं और करीब 600 मठों के इर्द-गिर्द सारी राजनीति चलती है. हम देख चुके हैं कि कैसे लिंगायतों को अल्पसंख्यक का दर्जा देकर कांग्रेस ने धर्म आधारित राजनीति की शुरुआत की थी. उसके बाद राहुल गांधी ने कई मठों के दर्शन किये थे. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी एक मंदिर से दूसरे मंदिर जाना शुरु किया. वहीं मोदी चुनावी रैलियां तो करते रहे लेकिन मंदिर नहीं जा सके. कहते हैं कि सौ सुनार की और एक लुहार की. इसी को साबित करते हुए मोदी ने सीधे नेपाल की धरती से कर्नाटक के 80 फीसद हिंदुओं को प्रभावित करने की कोशिश की है. इसे लेकर कुछ लोगों का कहना है कि मोदी की टाइमिंग का कोई जवाब नहीं है.


कर्नाटक में शैव और वैष्णव संप्रदाय के लोग रहते हैं और नेपाल के जिस मुक्तिधाम मंदिर में मोदी गये थे वो भी शैव और वैष्णव संप्रदाय का तीर्थ माना जाता है. कर्नाटक में शंकराचार्य का श्रृंगेरी मठ है जिनके आदि अवतार का मुक्तिधाम से संबंध बताया जाता है. कहा जाता है कि नेपाल में यह दुर्गम स्थान पर हैं जहां जाने से 21 पीढियों को मोक्ष मिल जाता है. आज सुबह जब कर्नाटक के वोटरों ने टीवी सेट खोला होगा तो उन्हें मोदी मुक्तिधाम में पूजा अर्चना करते नजर आए होंगे. बहुत स्वाभाविक है कि घर बैठे किसी धाम के दर्शन करना अच्छा लगा होगा. बहुत संभव है कि मोदी का ये वीडिया ऐसे वोटर को कमल का बटन दबाने के लिए प्रेरित करे.


लोकनीति सीएसडीएस की एक स्टडी कहती है कि कर्नाटक में एक बड़ी संख्या में वोटर वोट डलने से 48 घंटे पहले ही वोट किसे देना है इसका फैसला कर लेते हैं. आमतौर पर कहा जाता है कि 90 फीसद से ज्यादा लोग पहले ही अपना फैसला ले लेते हैं और महज़ 6-7 फीसद लोग ही इस उधेड़बुन में रहते हैं और अंतिम समय में वोट देने का फैसला करते हैं. लेकिन कर्नाटक में यह आंकड़ा दिलचस्प है. अध्ययन बताता है कि 2013 के विधानसभा चुनाव में करीब इस 6-7 फीसद वोटरों में से 47 फीसद ने आखिरी 24 घंटों में किसी पार्टी के पक्ष में वोट देने का फैसला किया.


इस आंकड़े को ध्यान में रखकर हम अगर मोदी की नेपाल की धार्मिक यात्रा को फिर से देखें तो अंदाज लगाया जा सकता है कि इसका कर्नाटक की धर्मिक जनता पर कितना असर हो सकता है या असर की कितनी गुंजाइश है. कर्नाटक के तटीय इलाकों को तो आरएसएस और सहयोगियों ने हिंदुत्व की प्रयोगशाला बनाया है. यहां तक कि आगरा में तूफान के बाद भी यूपी के मुख्यमंत्री योगी को वहां घुमाया गया और मठ विशेष में ही उनका ठहरना भी हुआ. गोरखनाथ मठ से इस मठ का जुड़ाव है और बीजेपी इसे भुनाने की कोशिश कर रही है.


यहां मुस्लिम भी ठीक ठाक संख्या में हैं और पीएफआई की एसडीपीआई यहां से चुनाव भी लड़ रही है. वहीं अमित शाह कांग्रेस पर तंज कस रहे हैं कि वो पीएफआई से मिली हुई है. इस हिसाब से भी अगर मोदी के नेपाल के धार्मिक दौरे को देखा जाए तो आसानी से कहा जा सकता है कि वहां ढोल बजाकर वो सियासत साधने में लगे हैं. कर्नाटक का पूरा चुनाव मुद्दों से हटकर हिंदुत्व पर आ गया था. यहां कांग्रेस ने भी बीजेपी 6की रणनीति को अपनाकर बीजेपी की चिंता बढ़ा दी थी. चुनावी कैंपेन के दौरान सबसे बड़ा हिंदु कौन, चुनावी हिंदु कौन है जैसे मुद्दों पर भी जमकर राजनीति हुई.


इस हिसाब से भी देखा जाए तो मोदी का नेपाल में सीताधाम, मुक्तिनाथ धाम और पशुपतिनाथ धाम जाना कर्नाटक के वोटर को अंतिम समय में रिझाने की कोशिश मानी जा सकता है.