नई दिल्ली: देशभर में कोरोना के खतरे के बीच कई और बीमारियों का खतरा भी बढ़ता जा रहा है. कोरोना होने के बाद शरीर की इम्युनिटी कमजोर होने का कारण कई बीमारियां हमला करती हैं. इन्हीं बीमारियाों में से एक है, ब्लैक फंगस, कोरोना की दूसरी लहर में मई महीने ब्लैक फंगस के केस सामने आने लगे. इसके बाद व्हाइट फंगस सामने आया और फिर कुछ इलाकों से येलो फंगस फैलेन की भी खबरें आयीं. 


कोरोना की तरह अब देश में ब्लैक फंगज की दवाइयों को भी कमी हो गई है. उस पर मुश्किल यह है कि अगर टाइम पर सही इलाज नहीं मिला तो फिर जान तक जा सकती है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर यब ब्लैक फंगस, व्हाइट फंगस क्या है? कोरोना के बीच यह कितना खतरनाक है और इससे बचने के उपाय क्या हैं.


क्या है ब्लैक फंगस और इसके क्या लक्षण हैं?


दिल्ली के एम्स अस्पताल में न्यूरोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉक्टर पद्मा श्रीवास्तव ने बताया, ''ब्लैक फंगस कई नया इंफेक्शन नहीं है. यह पहले भी हम बहुत बार देख चुके हैं. जो भी मरीज जिनकी इम्युनिटी बहुत कमजोर है, खासतौर पर जिनकी डायबटीज़ बहुत ज्यादा है, कैंसर के मरीज़ हैं या फिर इम्यूट सिस्टम कमजोर हैं उनमें यह फंगल इन्फैक्शन पाया जाता है. खास बात यह है कि कोरोना की इस दूसरी लहर में हम अचानक से ब्लैक फंगस के बहुत ज्यादा मरीज देख रहे हैं. यह संक्रमण की ऐसी लहर है, जिसे पहले कभी नहीं देखा गया.''


उन्होंने बताया, ''यह फंगस इन्फेशन ऑपरचुनिस्टिक है, यानी सामान्य तौर पर यह हमारे आस पास ही रहती है. यह हवा में, मिट्टी में या फिर किसी भी नमी वाली जगह में पायी जाती है लेकिन हमारे पास इम्युनिटी का एक कवच होता है, जिससे यह हमारे ऊपर असर नहीं डालती है. लेकिन जब इम्युनिटी कम होती है तो यह हमला करता है. कोरोना होने के बाद इम्युनिटी वैसे कमजोर हो जाती है. इसके साथ ही कोरोना के मरीज को स्टेरॉयड भी दिए जाते हैं, जिससे इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है. इसके साथ ही अगर शुगर भी कंट्रोल में नहीं आया तो फिर ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ सकता है?


ब्लैक फंगस कितना बड़ा खतरा है? लोगों को इससे बचने की कितनी जरूरत?
 डॉक्टर पद्मा श्रीवास्तव ने बताया, ''खतरा तो है, क्योंकि  ब्लैक फंगस पहले भी खतरनाक बीमारी थी. अब भी जो केस आ रहे हैं, इन केस में अगर सही इलाज नहीं मिला तो इसमें मौत की संभावना 80 % तक है. इसलिए खतरा तो बहुत ज्यादा है. अगर यह संक्रमण सिर्फ नाइनेस से हुआ तो हल्का है लेकिन हम जो देख रहे हैं कि कोरोना होने के बाद इसमें साइनेस, ब्रेन और आंख भी शामिल हो जा रही है. जब इसमें ब्रेन शामिल हो जाता है तो फिर सर्जरी के बाद भी इसमें बचना बेहद मुश्किल हो जाता है.''


क्या कोविड की तरह एक मरीज से दूसरे मरीज को भी हो सकता है ब्लैक फंगस?
 डॉक्टर पद्मा श्रीवास्तव ने बताया, ''यह छूत की बामारी नहीं है, यह एक श्ख्स से दूसरे शख्श में ट्रांसफर नहीं होता है. अगर किसी को कोरोना से ठीक होने के बाद ब्लैक फंगस की बीमारी हो जाती है तो उन्हें छूने से या उनके आसपास रहने यह बीमारी नहीं फैलती है.''


ब्लैक फंगस के शुरुआती लक्षण क्या हैं?
डॉक्टर पद्मा श्रीवास्तव ने बताया, ''इसके शुरुआती लक्षणों की बात करें तो अगर आप कोरोना से ठीक हुए हैं उसके बाद आपको अचानक सिर दर्द होता है, आंखों के पास या आंखों के पीछे की तरफ दर्द होता है या फिर नाक बंद हो जाती है, नाक से खून आने लगना, काले रंग का पानी आना, चेहरे पर सूजन आना, पलकें गिरना ऐसा कुछ होता है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. ऐसे लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें, बीमारी बढ़ने का इंतजार ना करें.''


ब्लैक फंगस से बचने के तरीके क्या हैं?
डॉक्टर पद्मा श्रीवास्तव ने बताया, ''अगर आपको डायबटीज़ है तो अपनी शुगर कंट्रोल में रखें. लगातार डॉक्टर के संपर्क में रहें, खुद से इलाज करने की कोशिश बिल्कुल ना करें. शुगर पर नियंत्रण बहुत जरूरी है. इसके साथ ही साफ सफाई भी बहुत जरूरी है. आप जो मास्क लगा रहे हैं, उसमें लगातार साफ सफाई रखें.''


क्या है व्हाइट फंगस?
व्हाइट फंगस को लेकर डॉक्टर पद्मा श्रीवास्तव ने बताया, ''व्हाइट फंगस, ब्लैक फंगस से अलग तरीके की बीमारी है. इसका असली नाम, कैंडिडियासिस है. यह ज्यादातर आईसीयू मे दाखिल मरीजों में पाया जाता है. कहीं दिनों से एंटी बायोटिक दवाइयां ले रहे हैं. ऐसे में एंटीबायोटिक के साथ यह फंगल इंफेक्शन भी फैल जाता है. यह आईसीयू में अक्सर पाया जाता है.''


डॉक्टर पद्मा ने बताया, ''यह एक गंभीर बीमारी है, यह आईसीयू में मौजूद मरीज को होती है जो पहले से ही बहुत कमजोर होतता है. व्हाइट फंगस सीधे फेफड़े पर असर करता है. यह पहले फेफड़े को संक्रमित करता है और फिर दूसरे अंगों को प्रभावित करता है. इन दूसरे अंगों में नाखून, किडनी, पेट दिमाग और मुंह के अंदर इसका असर हो सकता है. अच्छी बात यह है कि ब्लैक फंगस की तरह इसका भी इलाज मौजूद है."


क्या है येलो फंगस: जानें इसके लक्षण और बचाव के तरीके
ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. बीपी त्यागी ने एबीपी न्यूज़ को बताया, ''मेरा तीस साल का डॉक्टरी का करियर है लेकिन मैं पहली बार येलो फंगस देख रहा हूं. इस फंगस का डॉक्टरी नाम म्यूकर सैप्टिकस है. यह अभी तक इंसानों में नहीं पाया जाता था. मैंने इसके बारे में काफी पढ़ा, लेकिन कहीं भी इसे लेकर ज्यादा जानकारी नहीं है. लेकिन जो जानकारी सामने आयी है उसके मुताबिक अगर हम नाक साफ करते हैं और घाव जो जाता है तो यह उसे भरने नहीं देता है. इस घाव से खून और पस रिसता रहता है. इसे ब्लैक और व्हाइस फंगस से भी खतरनाक माना जा सकता है,''


यलो फंगस का खतरा कोरोना के मरीजों को ही ज्यादा बताया जाा रहा है. इसके लक्षणों की बात करें तो आलस आना, तेजी से वजन गिरना, भूख ना लगना यह सब सामान्य लक्षण हैं. लेकिन इसके अलावा आंख में पस जम जाना इसके गंभीर लक्षणों में शामिल है. इसके साथ ही येलो फंगस शरीर के घाव को भरने नहीं देता है. 


व्हाइट, ब्लैक और येलो फंगस का पता सामान्य तौर पर एक्सरे या फिर सीटी स्कैन के जरिए लगाया जाता है. इसके सााथ ही शरीर के जिस हिस्से पर इसका असर है, उसक सैंपल लेकर भी टेस्टिंग की जाती है. येलो फंगस से बचाव के तरीकों की बात करें तो अपने आसपास सफाई रखें. पुराना खाना स्टोर ना होने दें, चेहरे पर लगाने वाले मास्क का सही से इस्तेमाल करें. इसके साथ ही यह कोई फंगस नमी वाली जगह पर ही पनपता है, इसलिए अपने घर या दफ्तर को हवा दार बनाएं. इसके साथ ही इसके इलाज के लिए एम्फोटेरेसिन नाम का इंजेक्शन भी दिया जाता है. लेकिन यह इंजेक्शन पूरी तरह से डॉक्टरी परामर्श और डॉक्टरी देखरेख में ही लेना चाहिए.


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