विपक्षी INDIA गठबंधन की तीसरी बैठक में सीट शेयरिंग का मुद्दा छाया रहा. सूत्रों के मुताबिक बैठक में शामिल 2 दलों के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने 30 सितंबर तक सीट समझौते के विवाद को सुलझाने की मांग की. दोनों नेताओं का तर्क था कि कभी भी चुनाव की घोषणा हो सकती है, इसलिए सबसे कठिन काम को पहले सुलझा लें.


इंडिया गठबंधन ने पहली बार अपने रेजोल्यूशन में सीट बंटवारे को प्राथमिकता दी है. प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी सभी नेताओं ने दोहराया कि जल्द ही सीट बंटवारे का काम फाइनल कर लिया जाएगा. दिल्ली में इसके लिए जल्द ही कॉर्डिनेशन कमेटी की मीटिंग रखी जाएगी.


इंडिया गठबंधन में कुल 28 दल अब तक शामिल हुए हैं. इनमें कांग्रेस, तृणमूल, जेडीयू, आरजेडी, डीएमके, आरजेडी, सपा और आप प्रमुख हैं. गठबंधन के दलों में सीटों का बंटवारा उत्तर प्रदेश, महराष्ट्र और तमिलनाडु समेत 10 राज्यों में होना है. 


सीट बंटवारे को लेकर 3 फॉर्मूला अधिक चर्चा में है. हालांकि, मीटिंग में आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अलग मैकेनिज्म बनाने की मांग की. इस स्टोरी मे आइए समझते हैं, इंडिया गठबंधन में सीटों का बंटवारा कैसे हो सकता है?


सीट बंटवारे का 3 फॉर्मूला क्या है?


1. सीटिंग सीटों पर संबंधित पार्टियों की दावेदारी मजबूत मानी जाएगी. यानी जो जहां से अभी जीता है, वहां टिकट की पहली दावेदारी उसी पार्टी की है. 2014 में जीतकर 2019 में हारने वाले उम्मीदवारों को भी उक्त सीटों पर तरजीह दी जाएगी. सीट सिलेक्शन का पहला फॉर्मूला जिताऊ कैंडिडेट ही है.


2. तमिलनाडु, झारखंड में सीट शेयरिंग का पुराना फॉर्मूला ही चलेगा. यहां कांग्रेस 2019 से ही सहयोगी दलों के साथ गठबंधन में है. हालांकि, झारखंड में जेएमएम की इच्छा लोकसभा में अधिक सीटों पर लड़ने की है.


3. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, बिहार, पश्चिम बंगाल और केरल में सीट बंटवारे का नया फॉर्मूला बनेगा. कहीं विधानसभा चुनाव के डेटा तो कहीं लोकसभा चुनाव के डेटा के आधार पर सीट का वितरण किया जाएगा.


अब राज्यावार समझिए कैसे हो सकता है सीटों का बंटवारा?


उत्तर प्रदेश- यहां गठबंधन में शामिल कांग्रेस, सपा, आरएलडी और अपना दल कमेरावादी का मुख्य रूप से जनाधार है. नीतीश कुमार और शरद पवार मायावती को भी गठबंधन के पाले में लाना चाहते हैं. मायावती अगर आती हैं, तो सीट शेयरिंग का फॉर्मूला बदल सकता है.


वरना सीट शेयरिंग की कमान समाजवादी पार्टी के हाथों में रहेगी. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की मांग है कि सीट शेयरिंग में 2009 के फॉर्मूले को अपनाया जाए. 2009 में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की 21 सीटों पर जीत हासिल की थी. 2014 में 2 और 2019 में 1 सीट ही कांग्रेस जीत पाई.


2019 का आंकड़ा को आधार बनाया जाएगा, तो 2019 में कांग्रेस ने रायबरेली सीट पर जीत हासिल की थी, जबकि अमेठी, कानपुर और फतेहपुर सीकरी में दूसरे नंबर पर रही थी. कहा जा रहा है कि सपा गठबंधन में अगर बीएसपी नहीं आती है, तो कांग्रेस को 12-15 सीटें मिल सकती है.


आरएलडी का दावा 8 सीटों पर है, लेकिन 5-6 सीट जयंत चौधरी को भी अखिलेश दे सकते हैं. इसी तरह अपना दल कमेरावादी लोकसभा की 1 सीट पर अपना उम्मीदवार उतार सकती हैं.


महाराष्ट्र- लोकसभा में 48 सीटों के साथ महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है. यहां इंडिया गठबंधन में शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी (शरद), कांग्रेस और प्रकाश अंबेडकर की पार्टी है. राजू शेट्टी की शेतकारी संगठन को भी गठबंधन में लाने की कवायद चल रही है.


शिवसेना की डिमांड 18 सीटों पर है, जबकि कांग्रेस छोटी पार्टियों को सीट देकर बाकी बचे सीटों में इक्वल डिवाइड करना चाहती है. अगर कांग्रेस की चलती है, तो शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी (शरद) और कांग्रेस 15-15-15 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. 


2019 में यहां शिवसेना (संयुक्त) को 18 और एनसीपी को 4 और कांग्रेस को 1 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस 21 सीटों पर तो एनसीपी 16 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. शिवसेना को भी 5 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था. 


पश्चिम बंगाल- इंडिया गठबंधन में शामिल तृणमूल, कांग्रेस और सीपीएम बंगाल की राजनीति में सक्रिय है. बंगाल में तृणमूल सीपीएम को एक भी सीट नहीं देना चाहती है. हालांकि, नीतीश और तेजस्वी लगातार ममता को मनाने की कवायद में जुटे हुए हैं.


सीपीएम अलीपुरद्वार, बांकुड़ा, बोलपुर, आसनसोल, मेदिनीपुर और बर्दवान सीटों पर दावा कर रही है.


बंगाल में कांग्रेस 2009 के डेटा के हिसाब से सीट शेयरिंग की मांग कर रही है. कांग्रेस 2009 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी. इस चुनाव में कांग्रेस को 6 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस उस चुनाव में 14 सीटों पर चुनाव लड़ी थी.


हालांकि, टीएमसी का कहना है कि 14 सीटों पर लड़ने के लिए कांग्रेस के पास नेता ही नहीं है. तृणमूल इस बार बंगाल की मुर्शिदाबाद, ब्रह्मपुर, मालदा उत्तर, मालदा दक्षिण, रायगंज और जंगीपुर सीट देने को तैयार है. 


बिहार- इंडिया गठबंधन की शुरुआत बिहार से हुई थी, लेकिन यहां भी सीट शेयरिंग का विवाद फंसा है. बिहार में जेडीयू, माले, कांग्रेस, आरजेडी और सीपीआई गठबंधन का हिस्सा है. वर्तमान में सीटों का हिसाब देखा जाए तो जेडीयू के पास 16 और कांग्रेस के पास 1 सांसद हैं.


कांग्रेस 2019 की तरह ही 9 सीटों पर दावा ठोक रही है. सीपीआई और माले भी 5-5 सीटों पर दावा कर रही है. जानकारों का कहना है कि सीपीआई को शायद ही लोकसभा की एक भी सीटें मिले. माले के खाते में आरा की सीट जा सकती है.


वहीं जेडीयू 17 और आरजेडी 16 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. नए समीकरण के लिहाज से जेडीयू कुछ सीटिंग सीट भी सहयोगी दलों को दे सकती है. इनमें कटिहार, मधेपुरा और सुपौल की सीट प्रमुख हैं.


तमिलनाडु और झारखंड- इन दोनों राज्यों में गठबंधन का स्ट्रक्चर पहले से फाइनल है. 2019 में तमिलनाडु में ही कांग्रेस का गठबंधन सबसे सफल रहा था. 2019 में डीएमके 20, कांग्रेस 8, सीपीआई-सीपीएम-वीसीके 2-2-2 और अन्य दल 4 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. 


डीएमके गठबंधन को 38 सीटों पर जीत मिली. इस बार भी सीट बंटवारे का यही फॉर्मूला यहां पर रहने वाला है. इसी तरह झारखंड में कांग्रेस 7, जेएमएम 4, जेवीएमपी 2 और आरजेडी 1 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. हालांकि, गठबंधन को सिर्फ 2 सीटों पर जीत मिली.


जेएमएम इस बार खुद 7 सीटों पर लड़ना चाहती है. कांग्रेस को 5 सीट और जेडीयू-आरजेडी को 1-1 सीट देना चाह रही है. 


केरल- सीट शेयरिंग का विवाद यहां भी फंसा हुआ है. पिछले चुनाव में आमने-सामने रही लेफ्ट और कांग्रेस इस बार गठबंधन में है. पिछली बार 20 में से 18 सीटें कांग्रेस गठबंधन को मिली थी, जबकि 2 सीटों पर लेफ्ट गठबंधन ने जीत दर्ज की थी.


लेफ्ट 50-50 फॉर्मूले के तहत सीट शेयरिंग की मांग कर रही है. ऐसा होता है, तो कांग्रेस को अपनी 8 जीती हुई सीट खोनी पड़ सकती है. हालांकि,कहा जा रहा है कि कांग्रेस सीपीएम के लिए वो 4 सीटें छोड़ सकती है, जिस पर पिछले चुनाव में 50 हजार के कम मार्जिन से जीत मिली थी. 


पंजाब- 2019 में पंजाब की 13 में से 7 सीटें अभी कांग्रेस के पास है. आम आदमी पार्टी को 1 सीट पर हाल ही में जीत मिली है. पंजाब से शिरोमणि अकाली दल को भी साथ लाने की कवायद की जा रही है. शिअद के पास भी 2 सीटें हैं.


पंजाब में शिअद अगर साथ नहीं आती है, तो पंजाब में 7 पर कांग्रेस और 6 पर आप चुनाव लड़ सकती है. वहीं चंडीगढ़ की सीट भी कांग्रेस के खाते में जा सकती है. 


दिल्ली- राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सभी 7 सीटों पर अभी बीजेपी को जीत मिली है. यहां की 4 सीटों पर 2019 में आप और 3 सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी. कहा जा रहा है कि इसी फॉर्मूले से यहां सीटों का बंटवारा हो सकता है.


आप दिल्ली और पंजाब के साथ-साथ गुजरात की भी 5 सीटें कांग्रेस से मांग रही है.