Citizenship Amendment Bill: नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 आज लोकसभा में पेश होगा. इस बिल का लगातार विपक्ष विरोध कर रहा है. विपक्ष का कहना है कि ह बिल मुसलमानों के खिलाफ है. वहीं इसके अलावा इस बिल का विरोध करने के कई अन्य वजह भी हैं. आइए आज बात करते हैं उन्हीं वजहों के बारे में जिसपर विपक्ष को आपत्ति है.


1- मुसलमानों के खिलाफ है बिल


इस विधेयक में बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) से ताल्लुक़ रखने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है. इसमें मुसलमानों की बात नहीं कही गई है. विपक्ष का कहना है कि यह भारत के मूलभूत संवैधानिक सिद्धांत के विरुद्ध है.


विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह विधेयक मुसलमानों के ख़िलाफ़ है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 जो कि एक मौलिक अधिकार है उसका (समानता का अधिकार) उल्लंघन करता है. विपक्ष का कहना है कि इस बिल में मुस्लिम धर्म के साथ भेदभाव किया जा रहा है.


पुर्वोत्तर राज्यों में आएंगे बांग्लादेश से हिन्दू


पुर्वोत्तर राज्यों में भी इस बिल का विरोध हो रहा है. असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा में इस बिल का जोरदार विरोध हो रहा है. दरअसल ये राज्य बांग्लादेश की सीमा के पास हैं और ऐसे में अगर नागरिकता संशोधन बिल लागू हो जाता है तो बड़ी संख्या में वहां से हिन्दू आकर इन पूर्वोत्तर क्षेत्रों में बस जाएंगे. इस वजह से यहां के मूल स्थानीय निवासी इसका विरोध कर रहे हैं.


श्रीलंका, म्यांमार और तिब्बत विधेयक से बाहर क्यों


जो विपक्षी पार्टियां इस बिल का विरोध कर रही है उनका सवाल यह भी है कि अगर इस बिल में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के प्रताड़ना की बात कही गई है तो फिर श्रीलंका, म्यांमार और तिब्बत विधेयक से बाहर क्यों हैं जबकि इन देशों में भी हिंदुओं, मुसलमानों और बौद्धों पर प्रताड़ना के आरोप हैं.


विपक्ष का आरोप-हिन्दू वोट बैंक है सरकार कता मुद्दा


विपक्ष ने इस बिल का विरोध करते हुए कहा है कि इस बिल को लाने के पीछे सरकार का मकसद हिन्दू वोट बैंक को लुभाने का है.


क्या है नागरिकता संशोधन बिल 2016?


भारत देश का नागरिक कौन है, इसकी परिभाषा के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया जिसे 'नागरिकता अधिनियम 1955' नाम दिया गया. मोदी सरकार ने इसी कानून में संशोधन किया है जिसे 'नागरिकता संशोधन बिल 2016' नाम दिया गया है. संशोधन के बाद ये बिल देश में छह साल गुजारने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह धर्मों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई) के लोगों को बिना उचित दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का रास्ता तैयार करेगा. पहले'नागरिकता अधिनियम 1955' के मुताबिक, वैध दस्तावेज होने पर ही ऐसे लोगों को 12 साल के बाद भारत की नागरिकता मिल सकती थी.


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