Dirty Picture of Indian Politics: झारखंड (Jharkhand) में लाभ के पद पर रहते हुए अपने और भाई के नाम खनन पट्टा करने के मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई है. चुनाव आयोग (Election Commission) की सिफारिश पर राज्यपाल रमेश बैस (Governor Ramesh Bais) ने यह कार्रवाई की. इससे राज्य में सियासी संकट (Political Crisis) पैदा हो गया है और कहा जा रहा है कि किसी भी वक्त हेमंत सोरेन का सीएम पद जा सकता है. राजनीतिक उथल-पुथल के बीच शनिवार को हेमंत सोरेन तीन बसों में 43 विधायकों (Jharkhand MLAs) को लेकर खूंटी के लतरातू बांध पहुंचे और फिर शाम को वापस रांची लौट आए. इस दौरान छह विधायक नदारद रहे. 


खूंटी में हेमंत सोरेन अपने और कांग्रेस के विधायकों के साथ पिकनिक मनाते हुए नजर आए. वह नाव की सवारी करते देखे गए. कहा गया कि हेमंत सोरेन दरअसल, सीएम की कुर्सी बचाने की संभावना के मद्देनजर विधायकों को रिजॉर्ट में शिफ्ट करने की कोशिश कर रहे थे. विधायकों को छत्तीसगढ़ या पश्चिम बंगाल में रोकने की तैयारी चल रही थी क्योंकि यहां बीजेपी की सरकारें नहीं हैं लेकिन हेमंत सोरेन खूंटी से ही विधायकों को लेकर वापस आ गए. झारखंड के सियासी संकट से पहले भी कई बार भारतीय राजनीति की 'डर्टी पिक्चर' सामने आ चुकी है जब विधायकों को अनाप-शनाप खर्च करते हुए फाइव स्टार होटलों में ठहराया गया और पिकनिक मनाई गई. 


महाराष्ट्र का सियासी संकट


इसी साल जून में महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार में से शिवसेना के विधायकों के एक गुट ने बगावत कर दी और राज्य में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई थी. बागी विधायकों की अगुवाई एकनाथ शिंद कर रहे थे. ये विधायक तत्कालीन सरकार के खिलाफ यह आरोप लगाते हुए बगावत कर रहे थे कि शिवसेना बाला साहब ठाकरे के सिद्धांतों से इतर काम कर रही है और हिंदुओं की भावनाएं आहत कर रही है. शिंदे गुट कह रहा था कि शिवसेना को बीजेपी से साथ गठबंधन करना चाहिए.


महाराष्ट्र का हनुमान चालीसा विवाद आरोपों की पृष्ठभूमि में था. एकनाथ शिंद गुट काफी दिनों तक असम के गुवाहाटी में पांच सितारा होटल में ठहरा रहा. मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि शिंदे गुट के 46 विधायकों के लिए होटल के 70 कमरे बुक किए गए थे, जिनका सात दिन का किराया 56 लाख रुपये था. वहीं, एक दिन के लिए अन्य खर्च आठ लाख रुपये बताया गया था. वहीं, रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया कि विधायकों को सूरत से गुवाहाटी लाने के लिए चार्टर्ड प्लेन का इस्तेमाल किया गया था, जिसके लिए भी लाखों रुपये खर्च किए गए. 


हार्स ट्रेडिंग से बचाने के लिए आलीशान रिजॉर्ट में रुके विधायक


2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद शिवसेना सीएम पद के लिए बीजेपी से बिदक गई थी और सूबे की सियासत के घाघ कहे जाने वाले शरद पवार की सलाह पर शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी को मिलाकर महाविकास अघाड़ी नाम का नया गठजोड़ जन्मा. इससे पहले राज्य में राष्ट्रपति शासन मे लगा और कांग्रेस ने विधायकों को हॉर्स ट्रेडिंग से बचाने के लिए अलीशान रिजॉर्ट में ठहराया था. जयपुर के फाइव स्टार ब्यूना विस्ता रिजॉर्ट में विधायक ठहरे थे. 44 विधायकों के लिए 52 कमरे बुक कराए गए थे, एक दिन के लिए एक का किराया 19 हजार रुपये था. 


मध्य प्रदेश में सिंधिया की बगावत


मार्च 2020 में मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के खिलाफ बगावत कर दी थी. सिंधिया के रूठने के कारण कमलनाथ को सत्ता खोनी पड़ी. सिंधिया ने अपने गुट के विधायकों को तब एमपी से बहुत दूर कर्नाटक में ठहराया था. सिंधिया समर्थक विधायक बेंगलुरु के रमाडा होटल में ठहरे थे. 22 विधायकों ने सिंधिया के साथ पार्टी से बगावत कर दी थी. इस बारे में तो जानकारी नहीं आई थी कि विधायकों को इतनी दूर होटल में ठहराने पर कितना खर्चा हुआ था लेकिन इतना तय है कि खर्चा अच्छा खासा हुआ होगा. सिंधिया गुट की बगावत से कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई थी. सिंधिया ने बीजेपी ज्वाइन कर ली. शक्ति परीक्षण में कमलनाथ सरकार हार गई और राज्य की सत्ता में बीजेपी काबिज हो गई. 


राजस्थान में जब सचिन पायलट ने की बगावत


जुलाई 2020 में राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता सचिन पायलट के समर्थक विधायकों को दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में ठहराया गया था. पायलट समर्थक 19 मंत्रियों ने उनके साथ बगावत कर दी थी. इससे पहले उन्हें गुरुग्राम के मानेसर में ठहराया गया था. एक तरफ पायलट समर्थक विधायकों को महंगे होटल में ठहराया गया तो वहीं, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक विधायकों को भी जैसलमेर के प्रसिद्ध किले नुमा सूर्यगढ़ होटल में रुकाया गया था. होटल में स्विमिंग पूल से लेकर हेलीपैड तक की सुविधा है. होटल के सामान्य कमरे का किराया आम दिनों में सात-आठ हजार रुपये होता है.


पायलट की बगावत से अशोक गहलोत सरकार खतरे में आ गई थी और अगस्त में उसे सदन में बहुमत परीक्षण से गुजरना पड़ा था. बगावत के चलते सचिन पायलट से उपमुख्यमंत्री पद छिन गया था लेकिन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पायलट को मना लिया था. 


छत्तीसगढ़ में ढाई साल के सीएम का फॉर्मूला


सितंबर 2021 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के 25-27 विधायक फाइव स्टार होटल में ठहरे थे और दिल्ली में शीर्ष नेताओं से मुलाकात करने के लिए योजना बना रहे थे. यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि वे भूपेश बघेल खेमे के थे या राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव के गुट के. दरअसल, ऐसा बताया गया था कि टीएस सिंह देव ने पार्टी में दबाव डाला था कि राज्य में ढाई साल के सीएम के फॉर्मूले पर काम किया जाना चाहिए, मतलब ढाई साल भूपेश बघेल सीएम बनाए जाएं और ढाई साल टीएस सिंह देव. वहीं, बघेल ने कहा था कि अगर अतंरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी उनसे ढाई साल के फॉर्मूले पर इस्तीफा मांगेगे तो वह पीछे नहीं हटेंगे. बघेल ने टीएस सिंह देव का नाम लिए बिना उन पर राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने का आरोप लगाया था. टीएस सिंह देव ने कहा था कि अगर कोई एक टीम में खेलता है तो क्या कप्तान बनने के बारे में नहीं सोचता?


जब राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के डर से होटल में रुके कांग्रेस विधायक


इसी साल हरियाणा में राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग की आशंका के मद्देनगर कांग्रेस ने अपने विधायकों को छत्तीगढ़ के रायपुर में होटल में शिफ्ट कर दिया था. हरियाणा कांग्रेस समिति के साथ 28 विधायक रायपुर के रिजॉर्ट में ठहरे थे. कांग्रेस विधायकों को नवा रायपुर क्षेत्र के पांच सितारा होटल और एक रिसॉर्ट में ठहराने की खबरें आई थीं. हरियाणा में राज्यसभा चुनाव में एक सीट के लिए 31 विधायकों के मत की जरूरत थी, कांग्रेस के पास ठीक 31 विधायक ही थे लेकिन क्रॉस वोटिंग का खतरे को देखते हुए उन्हें पहले दिल्ली और फिर निजी विमान से छत्तीसगढ़ भेजा गया था. 


ऐसी और भी कई घटनाएं है जब सियासी संकट के बीच नेताओं को भारी खर्च करते हुए आलीशान होटलों या रिजॉर्ट में ठहराया गया. इन घटनाओं के लिए पॉलिटिक्स की 'डर्टी पिक्चर' का जिक्र इसलिए किया गया है क्योंकि सरकार या जनप्रतिनिधि जो भी धन खर्च करते हैं, वो जनता की कमाई से टैक्स के रूप में प्राप्त होता है. जब देश की ज्यादातर जनता अपर्याप्त संसाधनों के साथ सुख सुविधाओं के अभाव में जी रही हो, ऐसे में सियासी हितों को साधने के लिए नेताओं का अनाप शनाप खर्च सवालों के घेरे में आना लाजमी है.


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