Tamil Nadu Tamizhagam Name Controversy: तमिलनाडु में डीएमके की सरकार और राज्यपाल आरएन रवि के बीच सियासी गतिरोध एक नए स्तर पर पहुंचता नजर आ रहा है. राज्य के 'तमिलनाडु' नाम और द्रविड़ियन राजनीति को लेकर राज्यपाल और मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बीच विवाद गहराता गया है. दरअसल, तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने 4 जनवरी को एक कार्यक्रम में कहा था कि तमिलनाडु के लिए तमिझगम नाम ज्यादा सटीक है.
राज्यपाल के इस बयान पर अब विवाद मचा हुआ है. डीएमके के कई नेताओं ने आरएन रवि पर बीजेपी का एजेंडा चलाने का आरोप लगाया है. डीएमके के वरिष्ठ नेता टीआर बालू ने कहा कि राज्यपाल इस तरह के तथ्यात्मक रूप से गलत और भेदभाव बढ़ाने वाले बयान देते रहते हैं. आइए जानते हैं कि तमिलनाडु बनाम तमिझगम का विवाद क्या है और किसने इस विवाद को जन्म दिया था?
तमिलनाडु के राज्यपाल ने क्या कहा था?
न्यूज एजेंसी पीटीआई की खबर के अनुसार, राज्यपाल आरएन रवि ने कहा था कि तमिलनाडु में एक अलग ही तरह का नैरेटिव चल रहा है. पूरे देश में जो चीजें लागू होती हैं, तमिलनाडु उन पर इनकार कर देता है. ये आदत बन गई है. इस पर झूठ और गलत कल्पना के सहारे ढेर सारा साहित्य लिखा जा चुका है. इसे खत्म होना चाहिए और सत्य की जीत होनी चाहिए.
क्या तमिलनाडु शब्द में कुछ विवादित है?
तमिल भाषा में नाडु शब्द का इस्तेमाल जमीन के तौर पर होता है, लेकिन तमिल राष्ट्रवाद के नजरिये से ये शब्द राष्ट्र या देश के रूप में देखा जाता है. आसान शब्दों में कहें, तो डीएमके के हिसाब से तमिलनाडु का अर्थ तमिलों का देश है. वहीं, तमिझगम का मतलब तमिलों का निवास होता है.
डीएमके उठाती रही है अलग देश बनाने की मांग
बीते साल नीलगिरी के डीएमके सांसद अंदिमुथु राजा, जो ए राजा के नाम से जाने जाते हैं, ने एक कार्यक्रम में सीएम एमके स्टालिन की मौजूदगी में कहा था कि अगर केंद्र सरकार ने तमिलनाडु को अधिक स्वायत्तता नहीं दी, तो डीएमके 'अलग' राज्य की मांग को पुनर्जीवित करने के लिए 'मजबूर' हो सकती है.
ए राजा ने उस दौरान ट्विटर पर लिखा था कि मुख्यमंत्री अभी अन्नादुरई के रास्ते पर चल रहे हैं, हमें पेरियार का रास्ता अपनाने पर मजबूर मत कीजिए. हमें अपना देश मांगने के लिए मजबूर न करें, हमें राज्य की स्वायत्तता दें. हालांकि, ए राजा ने देश की अखंडता और लोकतंत्र को जरूरी बताया था.
किसने दिया था अलग देश द्रविड़नाडु के विवाद को जन्म?
ब्रिटिश राज के दौरान 1917 में साउथ इंडियन लिबरल फेडरेशन नाम की एक पार्टी बनाई गई, जिसे जस्टिस पार्टी के नाम से भी जाना जाता है. इस पार्टी ने ही अलग देश द्रविड़नाडु की मांग को जन्म दिया. उस दौरान द्रविड़नाडु में तमिलनाडु के इतर आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल के भी कुछ हिस्सों को जोड़ा गया था. जस्टिस पार्टी मुख्य रूप से ब्राह्मण विरोधी, जाति विरोधी और उत्तर भारत विरोधी विचारों के लिए जानी जाती थी.
1938 में जस्टिस पार्टी और पेरियार ईवी रामासामी के आत्मसम्मान आंदोलन का विलय हुआ. इसके बाद 1944 में अलग देश द्रविड़नाडु की मांग को लेकर एक नए राजनीतिक दल द्रविड़ार कषगम का उदय हुआ. द्रविड़ार कषगम भी जस्टिस पार्टी की तरह ही ब्राह्मण विरोधी, कांग्रेस विरोधी और आर्यन विरोधी (उत्तर भारत विरोधी) विचारों पर चलने वाली पार्टी थी. भारत के आजाद होने के बाद भी द्रविड़ार कषगम अलग द्रविड़नाडु राज्य बनाने की मांग उठाती रही और पेरियार ने चुनावों में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया.
द्रविड़ार कषगम के वरिष्ठ नेता अन्नादुरई ने बाद में पेरियार के साथ वैचारिक मतभेदों के चलते अपनी अलग पार्टी बना ली. इस पार्टी को डीएमके नाम दिया गया. आजादी के बाद मद्रास प्रेसीडेंसी को तमिलनाडु नाम दिए जाने पर अन्नादुरई ने अलग देश द्रविड़नाडु की मांग को छोड़ दिया था. 1967 में अन्नादुरई तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने थे. हालांकि, आज भी डीएमके द्रविड़नाडु की मांग को अपने सियासी हित साधने के लिए दोहराती रहती है.
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