लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने पहली बार पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने को मंजूरी दे दी है. फिलहाल राज्य के दो जिलों के लिए पुलिस कमिश्नरी व्यवस्था लागू करने को मंजूरी दी गई है. लोगों का मानना है कि इस सिस्टम से कानून व्यवस्था काफी मजूबत होगी तो वहीं कई लोगों के मन में पुलिस कमिश्नरी व्यवस्था को लेकर कई तरह के सवाल भी हैं, जैसे इससे क्या फायदा होगा. इस तरह के सिस्टम में ऑफिसर्स की रैंकिग कैसे होगी, कैसे पावर का बंटवारा होगा. क्या इससे IAS- IPS की पॉवर में फर्क पड़ेगा और अगर हां तो कितना पड़ेगा? आइए इन सभी सवालों के जवाब एक-एक कर जानते हैं.


क्या है कमिश्नरी सिस्टम


कमिश्नर व्यवस्था में पुलिस कमिश्नर सर्वोच्च पद है. इस व्यवस्था के इतिहास की बात करें तो ये व्यवस्था अंग्रेजों के जमाने की है. तब ये सिस्टम कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में हुआ करता थी. इस सिस्टम में पूरी ज्यूडिशियल पावर कमिश्नर के पास होती है. यह व्यवस्था पुलिस प्रणाली अधिनियम, 1861 पर आधारित है.


तीन साल पुरानी योगी सरकार को पुलिस कमिश्नर सिस्टम क्यों लाना पड़ा ?


नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन और भड़की हिंसा के बाद ही योगी आदित्यनाथ को इसका विचार आया. प्रदर्शन के दौरान लखनऊ, मेरठ, बिजनौर और मुजफ्फरनगर समेत कई जिलों में आगजनी और तोड़फोड़ हुई. करोड़ों की सरकारी संपत्ति को नुकसान हुआ. जांच में ये बात सामने आई कि जिलों में डीएम और एसएसपी के बीच तालमेल नहीं था. जिसके कारण विरोध करने सड़क पर उतरी भीड़ को काबू करने में पुलिस नाकाम रही. ये भी बताया गया कि जिलों में तैनात कम अनुभव वाले आईपीएस अफसरों के कारण कुछ मामलों में हालात बिगड़े. यही सब सोच विचार कर पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने पर सहमति बनी. कई दौर की मीटिंग के बाद ब्लू प्रिंट तैयार हुआ. वैसे सबसे पहले इस तरह का प्रस्ताव मायावती सरकार में बना था. ये बात साल 2009 की है, लेकिन आईएएस अधिकारियों की पावरफुल लॉबी ने ऐसा नहीं होने दिया.


क्या कमिश्नरी व्यवस्था लागू होने से मजबूत होगी कानून व्यवस्था


दरअसल कमिश्नरी व्यवस्था लागू सामान्य पुलिसिंग व्यवस्था से कई मायनों में अलग है. इसमें सबसे खास और महत्वपूर्ण बात यह है कि पुलिस कमिश्नर प्रणाली में CRPC के सारे अधिकार पुलिस अधिकारी को मिल जाते हैं. ऐसे में कोई भी निर्णय पुलिस कमिश्नर तुरंत बिना किसी पर निर्भर रहे ले सकता है. जबकि सामान्य पुलिसिंग व्यवस्था में जिलाधिकारी (DM) के पास अधिकार होता है. यानी किसी भी फैसले जैसे तबादला, दंगे जैसी स्थिति में लाठी चार्ज या फायरिंग करने के लिए जिलाधिकारी से अनुमति लेनी पड़ती है. सामान्य पुलिसिंग व्यवस्था में CRPC जिलाधिकारी को कानून-व्यवस्था बरकरार रखने के लिए कई शक्तियां प्रदान करता है.


ऐसे में कमिश्नरी व्यवस्था में पुलिस तुरंत कार्रवाई कर सकती है क्योंकि इस व्यवस्था में जिले की बागडोर संभालने वाले आईएएस अफसर डीएम की जगह पॉवर कमिश्नर के पास चली जाती है. यानी धारा-144 लगाने, कर्फ्यू लगाने, 151 में गिरफ्तार करने, 107/16 में चालान करने जैसे कई अधिकार सीधे पुलिस के पास रहेंगे. ऐसी चीजों के लिए पुलिस अफसरों को बार बार प्रशासनिक अधिकारियों का मुंह नहीं देखना होगा.


कैसी होगी रैंकिंग

-पुलिस कमिश्नर (CP)
-पुलिस महानिरीक्षक (IG)
-पुलिस उप महानिरीक्षक (DIG)
-वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक या पुलिस अधीक्षक (SSP/SP)
-DSP/ASP


क्या बदलाव होगा यहां समझिए


पुलिस कमिश्नर प्रणाली में क्या बदलाव होगा इस सवाल का जवाब है कि पहले तो जिले को कई जोन में बांटा जाएगा. जोन का प्रभारी डीसीपी (SSP) रैंक का अधिकारी होगा. ये सभी एडीजी रैंक के अधिकारी यानी पुलिस कमिश्नर के अंदर काम करेंगे. अभी की बात करें तो गौतम बुद्ध नगर में एक एसएसपी रैंक का अधिकारी होता है. वहीं एडीजी रैंक का अधिकारी मेरठ में होता है.


कौन होंगे पहले पुलिस कमिश्नर
गौतमबुद्धनगर के पहले पुलिस कमिश्नर की जिम्मेदारी मेरठ जोन के एडीजी रहे आलोक सिंह को सौंपी गई है तो वहीं लखनऊ का पहला पुलिस कमिश्नर एडीजी सुजीत पांडेय को बनाया गया है