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Explained: क्यों इतनी तेजी से फैल रहा है डेल्टा वेरिएंट, क्या इसके खिलाफ बेअसर हैं वैक्सीन ?

नेचर जर्नल में पब्लिश एक रिसर्च के मुताबिक डेल्टा वेरिएंट दूसरे वेरिएंट्स के मुकाबले ज्यादा तेजी से फैलता है. इसके साथ ही यह वैक्सीन और पिछले संक्रमण से मिली इम्यूनिटी को भी धोखा दे सकता है.

नई दिल्ली: देश में कोरोना दूसरी लहर के कहर को अभी शायद ही कोई भूला हो, इस बीच एक बार फिर से कोरोना की तीसरी लहर खतरा मंडरा रहा है. केरल और महाराष्ट्र में कोरोना के केस में बढ़ोतरी देखी जा रही है. कोरोना के इन बढ़ते मामलों के पीछे इसके डेल्टा वेरिएंट को एक बड़ी वजह माना जा रहा है. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक डेल्टा वेरिएंट दूसरे वेरिएंट्स के मुकाबले ज्यादा तेजी से फैलता है.

यह रिपोर्ट नेचर जर्नल में पब्लिश एक रिसर्च के आधार पर छपी है. इस रिसर्च में पया गया है कि डेल्टा वेरिएंट दूसरे वेरिएंट्स के मुकाबले ज्यादा तेजी से फैलता है. इसके साथ ही यह वैक्सीन और पिछले संक्रमण से मिली इम्यूनिटी को भी धोखा दे सकता है. यानी वैक्सीन के दोनों डोज़ लगवा लेने के बाद भी आप डेल्टा वेरिएंट की चपेट में आ सकते हैं. 

डेल्टा वेरिएंट जिसे B.1.617.2 के नाम से भी जाना है, देश में यह सबसे महाराष्ट्र में ही पाया गया था लेकिन यह अब दुनिया के अलग अलग देशों में देखा जा रहा है. WHO के मुताबिक डेल्टा वेरिएंट इस वक्त दुनिया के 170 देशों में मौजूद है. 

नेचर जर्नल में जो रिसर्च छपी है उसे कई अंतरराष्ट्रीय रिसर्चर और भारतीय रिसर्चर्स ने मिलकर किया है. इसके लिए भारत से मई के आखिर तक का डाटा लिया गया. इसके परिणाम सबसे पहले जून में देखने को मिले थे जब इसका डिटिजल वर्जन लॉन्च हुआ था. 

रिसर्च में क्या सामने आया?
नेचर जर्नल में छपी रिसर्च के मुताबिक डेल्टा वैरिएंट से कोरोना से ठीक हुए व्यक्तियों के दोबारा संक्रमित होने की संभावना छह गुना थी. वहीं वैक्सीन लगवा चुके लोगों को डेल्टा से संक्रमित होने की संभावना आठ गुना ज्यादा थी. इस रिसर्च के लिए जिन वैक्सीन को शामिल किया गया उनमें एस्ट्रेजेनका-ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और फाइजर और बायो एंड टेक हैं. 

अध्ययन में यह भी पता चला कि B.1.617.1 के मुकाबले डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित होने का खतरा तो ज्यादा है ही इसके साथ ही शरीर के अंदर भी यह बहुत तेजी से फैलता है. रिसर्च में दिल्ली के तीन अस्पतालों में पूरी तरह से टीका लगाए गए स्वास्थ्य कर्मियों के बीच संक्रमण के 130 मामलों को भी देखा गया. इसमें पता चला कि डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ वैक्सीन कम कारगर है.

दिल्ली स्थित CSIR-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के डायरेक्टर और अध्ययन के संयुक्त लेखक अनुराग अग्रवाल ने कहा, "अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि डेल्टा संस्करण तेजी से फैलता है और पिछले संक्रमण या टीकों से प्राप्त सुरक्षा को कम करता है.". उन्होंने कहा कि अच्छी खबर यह है कि टीकाकरण से बीमारी की गंभीरता कम हो जाती है, और अगर आपको पहले कोविड हो चुका है तो भी ऐसा होता है.

अलग अलग रिसर्च में सामने आया डेल्टा वेरिएंट है ज्यादा खतरनाक
हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चार रिसर्च की थीं, दो संयुक्त राज्य अमेरिका में, एक यूके में, और दूसरी कतर में. इस सभी रिसर्च में डेल्टा संस्करण के खिलाफ टीकों की प्रभावशीलता होने के सबूत मिले हैं. उदाहरण के लिए, यूके में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन उस समय कम असरदार साबित हुई जब देश में डेल्टा वेरिएंट पूरी तरह से हावी थी. इसके मुकाबले अल्फा वेरिएंट के प्रभावी होने के दौरान वैक्सीन की प्रभावशीलता पर कम असर देखा गया.

ऐसे में वैक्सीन कितनी कारगर हैं ? 
पुणे में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) की इम्यूनोलॉजिस्ट विनीता बल ने बताया कि रिसर्च के आधार पर लोगों को यह नहीं मान लेना चाहिए कि वैक्सीन बेकार हैं या असरदार नहीं हैं. उन्होंने बताया कि यह अध्ययन प्रयोगशाला के वातावरण में विशेष नमूनों पर किया गया था. विनीता बल के मुताबिक लैब में किए गए अध्ययन और शरीर के अंदर होने वाले बदलाव अलग अलग होते हैं. शरीर के अंदर जो एंटीबॉडी बनती है उसका लैब में सही नतीजा नहीं मिल पाता. 

उन्होंने कहा कि कोरोना के खिलाफ इम्यूनिटी सिस्टम तब काम करता है जब एंटीबॉडी के साथ साथ  T-cell भी काम करती हैं. वैक्सीन ले चुके शख्स में या फिर पहले से संक्रमित व्यक्ति दोनों एंटीबॉडी के साथ साथ  T-cell मिलकर इम्यूनिटी बनाते हैं. नेचर में जो रिसर्च छपी है वो T-cells का डाटा नहीं दिखाती है, यह इम्यूनिटी सिस्टम का एक बड़ा फैक्टर है. 

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अध्ययन के परिणाम चौंकाने वाले नहीं हैं. वर्तमान में, ज्यादातक कोरोना केस डेल्टा वेरिएंट के कारण हो रहे हैं. ऐसे में यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि यह दोबारा संक्रमित होने मामलों में या वैक्सीन लगने के बाद के मामलों में पाया जाने वाला सबसे आम वायरस है.

नए नए वेरिएंट्स से कैसे निपटा जाए?
सबसे पहले वुहान में जो वायरस मिला था वो म्यूटेट होकर अल्फा, बीटा, कप्पा और डेल्टा वेरिएंट में बदला. ऐसा माना जा रहा है कि वायरस लगातार म्यूटेट होता रहेगा. लेकिन जरूरी नहीं कि सभी म्यूटेशन का मतलब यह हो कि वे ज्यादा हानिकारक हों.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि नए नए वेरिएंट् से निपटने का सबसे कारगर तरीका है, ज्यादा से ज्यादा टीकाकरण. इसके साथ ही कोरोना से जुड़े आम नियमों का पालन भी नए वेरिएंट के प्रसार को रोक सकता है. 

पुणे में राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला के वैज्ञानिक अनु रघुनाथन के मुताबिक इस रिसर्च की तरह हमें वेरिएंट्स से वैक्सीन के असर पर नजर बनाकर रखनी होगी. इसके साथ ही हमें यह भी देखना होगा कि बूस्टर टीके की जरूरत है या नहीं. इसके साथ ही नए वेरिएंट्स की निगरानी करने लगातार जीनोम सीक्वेंसिंग करनी होगी. 

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