नई दिल्ली: "कोई अपनी संपत्ति का स्रोत बता दे तब भी ये देखने की ज़रूरत है कि आखिर वो इस स्थिति में कैसे पहुंचा कि उसके पास ऐसे स्रोत आए." इस टिप्पणी के जरिए आज सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं के व्यापार और उनके रिश्तेदारों को मिलने वाले सरकारी ठेकों की तरफ इशारा किया.


कोर्ट में एनजीओ 'लोक प्रहरी' की याचिका पर सुनवाई हो रही थी. इस याचिका में मांग की गई है कि चुनाव के दौरान उम्मीदवारों से उनकी आमदनी का स्रोत भी पूछा जाए. 2015 में दाखिल हुई इस याचिका पर कोर्ट ने आज सुनवाई पूरी कर ली.


याचिका में कहा गया है कि उम्मीदवार हलफनामे में जो संपत्ति बताते हैं वो चुनाव जीतने के कुछ समय बाद अक्सर काफी बढ़ जाती है. इसलिए चुनावी हलफनामे में उम्मीदवार को ये भी बताना चाहिए कि उसकी संपत्ति और आमदनी का स्रोत क्या है.


सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने इस मांग का समर्थन किया. हालांकि, आयोग का कहना था कि उसे अपनी तरफ से ऐसा करने का हक नहीं है. इसके लिए या तो सुप्रीम कोर्ट आदेश दे या सरकार कानून बनाए.


याचिका में कहा गया था कि दो चुनावों के बीच जिन नेताओं की संपत्ति में बहुत ज़्यादा बढ़ोतरी होती है, उनके खिलाफ सही तरीके से जांच नहीं होती. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) से जवाब मांगा था.


आज CBDT ने कोर्ट को बताया कि वो 7 सांसदों और 98 विधायकों के खिलाफ जांच कर रहा है. इन नेताओं की संपत्ति में बहुत ज़्यादा इज़ाफ़ा हुआ. CBDT की तरफ से एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इन लोगों के नाम और जांच का ब्यौरा सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपा.


जस्टिस चेलमेश्वर और अब्दुल नज़ीर की कोर्ट ने रिपोर्ट को खोल कर देखा. दोनों जजों ने CBDT की कार्रवाई पर संतोष जताया. कोर्ट ने ये भी कहा कि नेताओं के आय से अधिक संपत्ति मामलों के तेज़ी से निपटारे के लिए विशेष अदालतों का गठन होना चाहिए.