नई दिल्ली: कुछ दिनों पहले कानपुर आईआईटी में छात्रों ने सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान फैज की नज्म 'हम देखेंगे' गाई थी. इस पर कुछ लोगों को आपत्ति हुई तो जांच के लिए एक कमेटी घोषित कर दी गई. अब फैज की बेटी सलीमा हाशमी ने मीडिया के साथ बात करते हुए इस मामले को अप्रासंगिक और फनी करार दिया है.
उन्होंने कहा- मेरे पिता उन लोगों की आवाज थे जो जुल्म के खिलाफ खड़े थे. उनकी कविताओं ने लोगों को आवाज दी, शब्द दिए और कविता का उद्देश्य ही ये होता है कि वो लोगों की आवाज बन जाए.
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पेंटर और सामाजिक कार्यकर्ता सलीमा हाशमी ने कहा कि ये बात केवल दुखी करने वाली ही नहीं है बल्कि ये मजाकिया भी है. रचनात्मक लोग तानाशाही प्रवृति के दुश्मन होते हैं और खुशी है कि मेरे पिता कब्र से निकल कर लोगों की बात कर रहे हैं.
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आपको बता दें कि कानपुर आईआईटी के कुछ छात्रों ने बीते 17 दिसंबर को सीएए का विरोध किया था. इस दौरान छात्रों ने कुछ कविताएं पढी थीं जिन पर विवाद हो रहा है. अब इस मामले में कमेटी का गठन कर दिया गया है जो पूरे वाकये की जांच करेगी.
फैज़ की शख्सियत का अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उनके ज़बरदस्त मुरीद थे. फैज़ की यह नज़्म खुद वाजपेयी जी को भी खूब पसंद थी. फैज़ अहमद फैज़ ने 1977 में यह नज़्म पाकिस्तान में तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल जिया उल हक़ द्वारा जुल्फिकार अली भुट्टो के तख्ता पलट की घटना पर लिखी थी.
कहा जा सकता है कि विवादों के बहाने ही सही, लेकिन फैज़ की यह नज़्म एक बार फ़िर चर्चा का सबब ज़रूर बन गई है. हालांकि उर्दू अदब के जानकारों के साथ ही दूसरे साहित्यकार भी इस विवाद से दुखी हैं और वह इसे गलत परम्परा की शुरुआत मान रहे हैं.