दिल्ली के GTB अस्पताल की खराब सुविधाओं पर मरीजों के परिजनों ने उठाए गंभीर सवाल!
जीटीबी अस्पताल में सुविधाओं को लेकर मरीजों के परिजनों ने गंभीर आरोप लगाए हैं. ऐसे समय में जब दिल्ली में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर गंभीर सवाल खड़े रहो रहे हैं.
नई दिल्लीः राजधानी में कोरोना के मरीज़ों की संख्या जुलाई के अंत तक 5.5 लाख पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है. जहां एक ओर महामारी का खतरा लगातार देश पर मंडरा रहा है वहीं दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं नाकाम नज़र आ रही हैं. मरीज़ों के परिजनों की मानें तो दिल्ली के प्रमुख कोविड, GTB अस्पताल में भी हाल बेहाल ही हैं.
GTB अस्पताल में हाल कितना बेहाल है इस बात का पता मरीजों को हो रही दिक्कतों से चल जाएगा. कई मरीज अस्पताल में दिकत्तों का सामना कर रहे हैं. ऐसी ही कहानी है जीटीबी नगर के रहने वाले धरम की भी. दरअसल धरम अपने 45 वर्षीय पिता (राजेश) को 1 जून से दिल्ली के अलग-अलग असपतालों में दाखिले के लिए ले जाते रहे. एम्बुलेंस को कॉल करने पर भी उनके पास एंबुलेंस नहीं पहुंची. बीमार पिता को अपने ही ऑटो में लेकर वह दिल्ली की सड़कों पर फिरते रहे और तो और पांच दिन पहले RML में कराए गए टेस्ट की रिपोर्ट अभी तक नही मिली है. 9 जून को आखिर में उन्हें GTB अस्पताल में दाखिला मिला.
GTB अस्पताल में भी धरम ने अपने पिता का टेस्ट कराया तो उन्हें 3 से 4 दिन रुकने को कहा गया. रिपोर्ट का रिजल्ट अभी तक न आने की वजह से अब तक यह पता नही चल पाया है कि पिता को कोरोना है या नही, लेकिन वार्ड में भर्ती करा दिया गया है. जहां उनका कहना है कि सीरियस पेशंट्स को भी लाया जा रहा है. यदि कोई बीमार न भी हो तो बीमार हो जाए. सैनिटाइजेशन का भी कुछ काम नही किया जा रहा है. व्हील चेयर से लेकर स्ट्रेचर को भी सैनिटाइज नहीं किया जा रहा. अस्पताल में हैंड सैनिटाइजर्स भी नही रखे गए हैं. उन्होंने बताया कि अस्पताल में रात जब एक व्यक्ति की मृत्यु हो गयी तो अस्पताल के पैसेज में ही उसका शव पड़ा रहा कोई देखने वाला या हटाने वाला नही.
नंदनगरी के रहने वाले भूपेंद्र तोमर की भी ऐसी ही कहानी है. वह कल रात अपने पिता को सांस लेने में दिक्कत होने की वजह से GTB अस्पताल लेकर आए. दाखिला तो मिल गया, जिसके लिए वो शुक्रगुज़ार हैं, लेकिन उनका कहना है कि अस्पताल में कोई भी प्रंबंध नही किए गए हैं.
सरकार के वह लिए कहते हैं कि, दिल्ली सरकार इमरजेंसी नंबर की बात करती है, पोस्टरों पर कोविड वार्ड की तसवीरें चिपकाती है लेकिन जमीनी सच्चाई तो यह है कि 14 से 15 मरीजों को एक वार्ड में रखा जा रहा है. कई वार्डस में पंखे तक नही हैं तो AC तो दूर की बात है. पेशंट को देखने के लिए डॉक्टर ही नही है, कई समय इंतजार करने पर ही इलाज मिल पा रहा है और यह भी कहा कि अस्पताल की तमाम नर्स और वार्ड बॉयज के लिए भी व्यवस्थाएं कम हैं.
GTB अस्पताल पर खड़े हो रहे सवालों को देखते हुए हमने जब अस्पताल प्रसाशन से उनका पक्ष जानना चाहा तो अस्पताल प्रशासन ने कैमरे पर बात करने से साफ इनकार कर दिया. वही GTB के मेडिकर डॉयरेक्टर ने अस्पताल की बदइंतजामियों पर जवाबदेही तय करने के बजाए, मरीज़ों के परिजनों की तमाम शिकायतों की सत्यता पर ही सवाल खड़े कर दिए. सबसे बड़ा प्रश्न यही खड़ा होता है की इन मरीज़ों की परेशानियों की सुनवाई आखिर कौन करेगा?
हाल ही में केजरीवाल सरकार के आदेश को उलट कर दिल्ली के उपराज्यपाल ने दिल्ली के तमाम असपतालों में दिल्ली से बाहर के मरीज़ों के इलाज को जी मंजूरी दे दी थी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का इस पर यह कहना था कि ऐसा होना दिल्ली वालों के लिए चिंता का विषय हो सकता है और यदि दिल्ली में दिल्ली से बाहर के लोग आकर इलाज करवाते हैं तो दिल्ली के लोग कहा जाएंगे? लेकिन ज़मीनी सच्चाई तो यह है कि दिल्ली के लोग भी इलाज कराने के लिए भटक रहे हैं. दिल्ली के लोग भी डरे हुए हैं कि यदि वह या उनके परिवार में से कोई कोरोना पॉजिटिव हो जाता है तो दिल्ली में इलाज के लिए वो आखिर कहां जाएंगे?