नई दिल्ली: देश में खाकी के बाद खादी पहनने का रिवाज कोई नया नहीं है, इस लिस्ट में अब एक नया नाम जुड़ने जा रहा है. प्रवर्तन निदेशालय में ज्वाइंट डायरेक्टर रहे राजेश्वर सिंह के राजनीति में आने को लेकर कयास तेज हो गए हैं. माना जा रहा है कि राजेश्वर सिंह उत्तर में सत्ताधारी पार्टी का दामन थाम सकते हैं.


राजेश्वर सिंह उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर के नौकरशाहों के एक प्रतिष्ठित परिवार से आते हैं. सिंह को लेकर कई लोगों का मानना ​​है कि उनके राजनीति में प्रवेश से एक अलग तरह का बदलाव आएगा. स्टेट पुलिस विभाग से अपनी नौकरी शुरू करने वाले राजेश्वर सिंह अपने काम के दम पर बेहद तेजी से कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते चले गए.


उन्हें ह्यूमन एंड टेक्नोलॉजी का एक्सपर्ट माना जाता है. अपने पुलिस करियर की शुरुआत में उनके पास गोमतीनगर सीओ (अपराध) और सीओ (यातायात) के सर्किल ऑफिसर का एक साथ चार्ज था. इसके लिए उनकी काफी चर्चा भी हुई. राजेश्वर सिंह के नाम 13 एनकाउंटर हैं, जिसके जरिए वह खूंखार और कट्टर अपराधियों को कटघरे तक पहुंचाने में सफल हुए. 


अपने 14 महीने के कार्यकाल में ही उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बना ली. इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि उन्हें उनके काम के दम पर एनकाउंटर स्पेशलिस्ट' और 'साइबर जेम्स बॉन्ड' की उपाधियों से नवाजा जाने लगा.


राजेश्वर सिंह को नियमों और सिद्धांतों के प्रति अडिग माना जा जाता है, लेकिन खाकी जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्होंने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन कई बार उन्होंने ऐसे कदम भी उठाए जो शायद तत्कालीन सत्ताधारी पक्ष को रास नहीं आए.


एक बूढ़ी महिला ने शिकायत दर्ज करवाई कि गैंगस्टर अतीक अहमद और उसके गिरोह के सदस्यों ने उसकी जमीन पर कब्जा कर लिया है. इस शिकायत के बाद राजेश्वर सिंह ने खूंखार माफिया अतीक अहमद को गिरफ्तार करने का कड़ा कदम उठाया. लेकिन इससे सत्ता में बैठे लोग नाराज हो गए.


अतीक को उस वक्त के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का करीबी माना जाता था. अतीक अहमद की गिरफ्तारी के माना जा रहा था कि राजेश्वर सिंह के करियर पर ब्रेक लगने वाला है. लेकिन अपने काम के प्रति उनकी लगन का प्रमाण है कि उन्हीं मुख्यमंत्री से राजेश्वर सिंह को वीरता पुरस्कार दिया गया, जिन्होंने कुछ समय पहले उन्हें लाइन हाजिर किया था.


हालांकि, जिस दिन उन्हें पुरस्कार मिला, उसी दिन सीएम ने इलाहाबाद से फैजाबाद ट्रांसफर करने का आदेश दिया. ट्रांसफर को लेकर तत्कालीन सरकार को हाई कोर्ट से उस वक्त झटका लगा जब कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया. कोर्ट ने इस मामल में डीजी पुलिस को तलब किया और उस पर रोक लगा दी.


एक इनवेस्टिगेटर के तौर पर सिंह की प्रोफाइल ने ईडी के तत्कालीन डायरेक्टर को प्रभावित किया. ईडी डारेक्टर ने उन्हें अपने विभाग में प्रतिनियुक्ति पर लाने के लिए नियमों में संशोधन किया. इसके बाद सिंह को लखनऊ में एजेंसी का नया जोनल ऑफिस बनाने का जिम्मा सौंपा गया. सिंह ने इसे सफलतापूर्वक किया और उनके काम को देखते हुए, उन्हें एक साल बाद दिल्ली बुलाया गया. यहां उन्हें ईडी के सबसे कठिन और संवेदनशील काम सौंपे गए. इसके बाद से उन्होंने कभी पलट कर नहीं देखा.


ईडी में वह एयरटेल-मैक्सिस, कॉमनवेल्थ गेम्स, कोल स्कैम, सहारा-सेबी केस, ऑगस्टा वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर डील जैसे देश के कुछ सबसे बड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामलों को एक साथ संभाल रहे थे. पी चिदंबरम के बेटों कार्ति, ओम प्रकाश चौटाला, मधु कोड़ा और जगन रेड्डी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच में भी वह शामिल रहे.


सिंह की अभी भी लगभग 12 साल की सेवा बाकी है, लेकिन खाकी में रहने वाली राजेश्वर सिंह को अब खादी ने आवाज लगाई है. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि एक प्रभावशाली ठाकुर परिवार से आने वाले राजेश्वर सिंह किसी भी पार्टी के लिए बेहद कीमती साबित होंगे.


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