साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता, हिंदी भाषा के प्रख्यात लेखक और कवि मंगलेश डबराल का बुधवार को निधन हो गया है. मंगलेश डबराल समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित नाम हैं. इनका जन्म 14 मई 1949 को टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड के काफलपानी गांव में हुआ था. उनकी इनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई थी. दिल्ली आकर हिन्दी पैट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद वे भोपाल में मध्यप्रदेश कला परिषद्, भारत भवन से प्रकाशित साहित्यिक त्रैमासिक पूर्वाग्रह में सहायक संपादक रहे.


कोरोना संक्रमण के बाद नाजुक हुई थी हालत


कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद उनकी हालत गंभीर हो गई थी. उन्हें इलाज के लिए Aiims में भर्ती कराया गया था. संक्रमण की पुष्टि होने के बाद उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी. वेंटिलेटर के बावजूद शरीर में आक्सीजन पर्याप्त मात्रा में जज़्ब नहीं हो पा रही थी. फेफड़ों की हालत पूर्ववत बनी हुई थी. ब्लड प्रैशर ऊपर नीचे हो रहा था. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उन्हें डायलिसिस के लिए ले जाया गया. लगभग तभी उन्हें दो बार दिल के दौरे पड़े थे.


बता दें कि मंगलेश डबराल जनसत्ता के साहित्य संपादक भी रह चुके हैं. इसके अलावा, उन्होंने कुछ समय तक लखनऊ से प्रकाशित होने वाले अमृत प्रभात में भी नौकरी की. इस समय वे नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हुए थे. मंगलेश डबराल की पांच काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. इनके नाम- पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु है. इसके अलावा, इनके दो गद्य संग्रह- लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन भी प्रकाशित हो चुका है.