देशभर के किसान संगठन कल यानी 11 अप्रैल से संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले एमएसपी गारंटी सप्ताह मनाएंगे. इस कार्यक्रम के तहत अलग-अलग जगहों पर धरना, प्रदर्शन और गोष्ठी के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को किसान का कानूनी अधिकार बनाने की मांग पर जागृति अभियान चलाया जाएगा. इस कार्यक्रम की घोषणा संयुक्त किसान मोर्चा की दिल्ली में 14 मार्च की बैठक में की गई थी.


ज्ञात हो कि नवंबर 2020 में दिल्ली में मोर्चे की शुरुआत के पहले से ही संयुक्त किसान मोर्चा ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी की मांग उठाई थी. इस मांग का अर्थ यह है कि:-


 • एमएसपी केवल 23 फसलों के लिए नहीं, बल्कि फल, सब्जी, वनोपज और दूध, अंडा जैसे समस्त कृषि उत्पाद के लिए तय की जाए.


 • एमएसपी तय करते समय आंशिक लागत (A2+FL) की जगह संपूर्ण लागत (C2) के डेढ़ गुणा को न्यूनतम स्तर रखा जाए.


 • एमएसपी की सिर्फ घोषणा न हो, बल्कि यह सुनिश्चित किया जाए कि हर किसान को अपने पूरे उत्पाद का कम से कम एमएसपी के बराबर भाव मिले.


 • यह सरकार के आश्वासन और योजनाओं पर निर्भर न रहे, बल्कि इसे मनरेगा और न्यूनतम मजदूरी की तरह कानूनी गारंटी की शक्ल दी जाए, ताकि एमएसपी न मिलने पर किसान कोर्ट कचहरी में जाकर मुआवजा वसूल कर सके.


सरकार के साथ 11 दौर की वार्ता की हर चर्चा में इस मांग को दोहराया गया था. यह मांग भारत सरकार के किसान आयोग (स्वामीनाथन कमीशन) की सिफारिश, स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री होते हुए दी गई रिपोर्ट और वर्तमान सरकार के दौरान कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश के मुताबिक है. वर्ष 2014 के चुनाव में किसान को लागत का डेढ़ गुना दाम दिलवाने का वादा करने के बावजूद मोदी सरकार मुकर चुकी है.


एमएसपी और अन्य मुद्दों पर विचार करने के लिए एक समिति बनाने की घोषणा


संयुक्त किसान मोर्चा यह याद दिलाना चाहता है कि किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने की घोषणा करते हुए 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एमएसपी और अन्य मुद्दों पर विचार करने के लिए एक समिति बनाने की घोषणा की थी. सरकार के 9 दिसंबर के आश्वासन पत्र में भी इसका जिक्र था, लेकिन आज 4 महीने बीतने के बावजूद भी सरकार ने इस समिति का गठन नहीं किया है. इसी 22 मार्च को सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा को समिति में कुछ नाम देने का मौखिक संदेशा भेजा था, लेकिन मोर्चे की ओर से समिति के गठन, इसकी अध्यक्षता, इसके TOR (टर्म्स ऑफ रेफरेंस)और कार्यावधि आदि के बारे में लिखित स्पष्टीकरण की मांग करने के बाद से सरकार ने फिर चुप्पी साध ली है. जाहिर है इस सवाल पर सरकार की नीयत साफ नहीं है.


छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की कई मंडियों में गेहूं एमएसपी से कम दाम पर बिक रहा है


संयुक्त किसान मोर्चा ने इस भ्रांति का भी खंडन किया है कि इस सीजन में किसान को सभी फसलों पर एमएसपी से ऊपर दाम मिल रहे हैं. यूक्रेन युद्ध की वजह से गेहूं के दाम बढ़े, फिर भी अप्रैल के प्रथम सप्ताह में देश की अधिकांश मंडियों में गेहूं का दाम सरकारी एमएसपी 2,015 रुपये से अधिक नहीं था. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की कई मंडियों में गेहूं इससे कम दाम पर बिक रहा है. आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में चना एमएसपी 5,230 रुपये से बहुत नीचे बिक रहा है. कर्नाटक की प्रमुख फसल रागी एमएसपी 3,377 रुपये से बहुत नीचे 2,500 रुपये या और भी कम दाम पर बिक रही है. यही हाल कुसुम (safflower) का है. अरहर, उड़द और शीतकालीन धान की फसल भी एमएसपी से नीचे बिक रही है. (यह सभी आंकड़े सरकार की अपनी वेबसाइट Agrimarknet से अप्रैल के पहले सप्ताह में लिए गए हैं)


संयुक्त किसान मोर्चा देशभर के किसानों और किसान संगठनों से अपील करता है कि 11 से 17 अप्रैल के बीच अपने-अपने जिले में कम से कम एक कार्यक्रम का आयोजन अवश्य करें, ताकि एमएसपी के सवाल पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन की तैयारी शुरू की जा सके. मोर्चे ने यह विश्वास व्यक्त किया है कि जैसे तीन काले कानूनों के खिलाफ लड़ाई जीती गई थी, उसी तरह हम एमएसपी की कानूनी गारंटी का संघर्ष भी जीतेंगे.


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