नई दिल्ली: किसानों को मनाने के लिए सरकार को अपनी रणनीति बदलने पर ध्यान देना होगा. किसान आंदोलन के पीछे अंतरराष्ट्रीय फंडिग जैसे मुद्दों पर बहस करने और इसे तूल देने की बजाय सरकार को सोचना होगा कि आखिर ऐसा कौन सा रास्ता निकाला जाए जिस पर एक कदम पीछे हटने को किसान नेता भी तैयार हो जाएं और सरकार भी इसके लिए पूरी ईमानदारी से एक कदम पीछे हटती हुई नजर आए.


हालांकि यह दावा नहीं किया जा सकता कि सरकार की बदली हुई रणनीति पूरी तरह से कामयाब हो ही जाएगी लेकिन सरकार को इसका प्रयोग करने से परहेज नहीं करना चाहिए. एक फार्मूला यह भी हो सकता है कि अब किसान संगठनों के साथ होने वाली अगले दौर की बातचीत की कमान कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व पीयूष गोयल की बजाय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को सौंपी जाए. जनाधार वाले प्रमुख किसान संगठनों व उनके नेताओं से राजनाथ के रिश्तों का इतना फायदा तो सरकार को मिल ही सकता है कि किसान अपने अड़ियल रुख में थोड़ी नरमी दिखाने को शायद राजी हो जाएं.


सरकार किसानों की यह एक शर्त मानने को तैयार हो जाये कि Msp पर वह कानून बनाने को तैयार है. वैसे भी सरकार पूरी ताकत से यह बात दोहरा रही है कि नए कानून आने के बाद भी Msp की व्यवस्था लागू रहेगी,ऐसी हालत में अगर वह इसे कानूनी शक्ल दे देती है,तो उसका यह फैसला इस आंदोलन का गेम चेंजर बन सकता है. बदले में,सरकार किसानों को इस बात के लिये झुका सकती है कि इसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय समय-सीमा पूरी होते ही तीनों नए कानून बगैर किसी अड़चन के लागू कर दिए जाएंगे.


किसी भी आंदोलन को शान्तिपूर्ण तरीके से खत्म करने के लिए दोनों पक्षों को थोड़ा झुकना ही पड़ता है और अब यह बात किसान नेताओं को भी समझ आने लगी है. लिहाजा,सरकार को राजनाथ जैसे ताकतवर मोहरे के जरिये एक चाल जरूर चलनी चाहिए. हो सकता है कि यह चाल ही बाजी पलटकर रख दे.