Farmers Protest: आज से 32 साल पहले महेंद्र सिंह टिकैत थे किसानों के असली 'चौधरी', जिनके नेतृत्व से थर्रा गई थी सरकार
भारत में किसानों और सरकार की तनातनी में जिस तरह आज की स्थिति नजर आ रही है ठीक 32 साल पहले दिल्ली में ऐसा ही नजारा था.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश राज के खिलाफ विरोध करने के लिए एक बार "दिल्ली चलो" का नारा दिया था और यह देश को स्वतंत्र कराने के लिए एक आंदोलन बन गया था. हालांकि, पंजाब-हरियाणा के किसानों द्वारा दिया जाने वाला यह नारा नेताजी के नारे से पूरी तरह से अलग रहा है. उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र के एक प्रसिद्ध किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों के इस नए नारे को पहली बार अंजाम दिया था. महेंद्र सिंह टिकैत, जो भारतीय किसान यूनियन, किसान आंदोलन के अध्यक्ष भी थे, और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बाद किसानों के 'दूसरे मसीहा' के रूप में जानें जाते रहे हैं.
भारत में किसानों और सरकार की तनातनी में जिस तरह आज की स्थिति नजर आ रही है ठीक 32 साल पहले दिल्ली में ऐसा ही नजारा था. ऐसा बताया जाता है कि दिल्ली कूच करने के लिए बेताब किसानों की तादात इससे भी बड़ी थी, ये किसान दिल्ली के बोट क्लब में इकट्ठा हुए थे. 5 लाख किसानों की भीड़ का नेतृत्व महेंद्र सिंह टिकैत कर रहे थे.
ऐसे में जब भी किसान और सरकार के बीच की रस्साकसी की बात आती है तब किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का जिक्र जरूरी हो जाता है. अपने तेवर और अंदाज़ में टिकैत ठेठ गंवई थे, वे अपने आंदोलन का नेतृत्व मंच से नहीं बल्कि किसानों के बीच हुक्का गुड़गुड़ाते हुए करते थे.
महेंद्र सिंह टिकैत को किसानों को किसानों को 'दूसरा मसीहा' यूं ही नहीं कहा जाता था, उनकी एक अवाज पर पर लाखों किसान अपनी लट्ठ के साथ तैयार रहते थे. आज से 32 साल पहले यानी साल 1988 में अपनी 35 मांगों के साथ किसान दिल्ली की तरफ कूच कर रहे थे. उन मांगों में सिचाई की दरें घटाने से लेकर फलस की उचित मूल्य को लेकर भी मांग रखी गई थी. इस भीड़ को रोकने के लिए पुलिस की तरफ से भायरिंग की गई जिसमें दो किसानों की मौत भी हो गई थी. किसानों की मांग पर इस तरह की कार्रवाई से पुलिस की काफी फजीहत भी हुई थी. मगर फिर भी सरकार किसानों के जुनून को नहीं रोक पाई. अंत में सरकार को किसानों की मांगो को मानना पड़ा जिसके कारण इस कृषि आंदोलन को विराम दिया जा सका.