Farmers Protest: किसानों के प्रदर्शन पर सुप्रीम कोर्ट में आज की सुनवाई पूरी, जानिए मुख्य न्यायधीश ने क्या-क्या कहा
सरकार ने नए कृषि कानूनों में संशोधन करने और किसानों की अन्य मांगों पर विचार करने के आश्वासन के साथ किसानों को 9 दिसंबर को ही प्रस्ताव भेजा था जिसे प्रदर्शनकारी किसान संगठनों ने नकार दिया था. किसान नेताओं का कहना है कि सरकार के जिस प्रस्ताव को उन्होंने ठुकरा दिया है उस पर बातचीत नहीं हो सकती है.
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नई दिल्ली: कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन पर सुप्रीम कोर्ट में आज की सुनवाई पूरी हो गई है. कोर्ट ने आगे की सुनवाई पर कुछ स्पष्टता नहीं दी. भारत के मुख्य न्यायधीश ने कहा कि सभी प्रदर्शनकारी किसान संगठनों को नोटिस जाना है और सुझाव दिया है कि इस मामले को शीतकालीन अवकाश के लिए अदालत की अवकाश पीठ के समक्ष रखा जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि किसान पूरे शहर को बंधक नहीं बना सकते. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि हम कानून पर रोक की बात नहीं कह रहे. सिर्फ वार्ता का माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. सभी पक्षों को नोटिस सर्व किया जाए. ज़रूरत पड़ने पर आप लोग वैकेशन बेंच के सामने मामला रखें.आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा तीन कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि वो फिलहाल कानूनों की वैधता तय नहीं करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आज हम जो पहली और एकमात्र चीज तय करेंगे, वो किसानों के विरोध प्रदर्शन और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर है. कानूनों की वैधता का सवाल इंतजार कर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायधीश ने कहा कि दिल्ली को ब्लॉक करने से यहां के लोग भूखे रह सकते हैं. आपका (किसानों) मकसद बात करके पूरा हो सकता है. सिर्फ विरोध प्रदर्शन पर बैठने से कोई फायदा नहीं होगा.
वहीं अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि 'आंदोलन में मौजूद कोई भी किसान फेस मास्क नहीं पहनता है, वे बड़ी संख्या में एक साथ बैठते हैं. कोविड-19 एक चिंता का विषय है, वे गांव जाएंगे और वहां कोरोना फैलाएंगे.' अटॉर्नी जनरल ने कहा, किसान दूसरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते.सुप्रीम कोर्ट ने कल क्या कहा था
एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर अभी जरूरी कदम नहीं उठाए गए, तो किसानों का चल रहा विरोध राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा बन जाएगा और यह मामला फिर सरकार के हाथ से निकल सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने आठ किसान यूनियनों को पक्ष (पार्टी) बनाने का भी आदेश दिया था. तीन किसान अधिनियमों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को हटाने की मांग वाली जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया था और मामले की आगे की सुनवाई गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दी थी.
बता दें कि सरकार ने नए कृषि कानूनों में संशोधन करने और किसानों की अन्य मांगों पर विचार करने के आश्वासन के साथ किसानों को 9 दिसंबर को ही प्रस्ताव भेजा था जिसे प्रदर्शनकारी किसान संगठनों ने नकार दिया था. उसके बाद से सरकार की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि किसान संगठनों के नेताओं से सरकार किसानों के मसले पर बातचीत के लिए हमेशा तैयार है. मगर, किसान नेताओं का कहना है कि सरकार के जिस प्रस्ताव को उन्होंने ठुकरा दिया है उस पर बातचीत नहीं हो सकती है.
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