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Farmers Protest: पीछे हटने को तैयार नहीं किसान, आंदोलन तेज, MSP पर क्यों नहीं बन रही बात? समझें पूरा गणित

Delhi Chalo Protest: एमएसपी पर कानून समेत कई मांगों को लेकर किसानों का आंदोलन जारी है. प्रदर्शनकारी पीछे हटने को तैयार नहीं है.

Farmers Delhi Chalo Protest: लोकसभा चुनाव की घोषणा में अब ज्यादा समय नहीं बचा है और तेज होती चुनावी सरगर्मियों के बीच किसान अपनी मांगों को लेकर सड़क पर हैं. पंजाब और हरियाणा की सीमा पर बैठे किसानों का आंदोलन हर गुजरते दिन के साथ तेज होता जा रहा है. गुरुवार (15 फरवरी) को पंजाब में 16 अलग-अलग इलाकों में रेल रोकी गई. हजारों किसान पटरियों पर बैठ गए और ट्रैक जाम कर दिया. किसानों को समझाने-बुझाने की काफी कोशिश की गई, लेकिन वो नहीं माने. 

किसानों का रेल रोको आंदोलन दोपहर 12 बजे शुरू हुआ और शाम 4 बजे तक चलता रहा. इस दौरान किसान पटरियों पर बैठे रहे. जिसका नुकसान रेलवे और आम लोगों को उठाना पड़ा. 

जानकारी के मुताबिक, किसान आंदोलन के चलते 7 रेलगाड़ियां कैंसिल कर दी गईं, इनके अलावा 13 रेलगाड़ियों को शॉर्ट टर्मिनेट किया गया यानी मंजिल से पहले ही रोक दिया गया और 12 रेलगाड़ियों का रूट बदल दिया गया. पंजाब और जम्मू-कश्मीर जाने वाली मालगाड़ियों पर भी असर पड़ा

रेलवे के नुकसान का आंकड़ा करोड़ों में जाने का अनुमान है. रेलगाड़ियां रुकने से आम लोगों के लिए मंजिल तक पहुंचना मुश्किल हो गया. एबीपी न्यूज के संवाददाता ने कुछ लोगों से बात की. जिन किसान नेताओं के कहने पर पंजाब में रेल रोकी गई वो अपने कदम को जस्टिफाई करने की कोशिश कर रहे हैं. उनका कहना है कि हरियाणा सरकार किसानों पर जुल्म कर रही है. रेल रोककर उसी का जवाब दिया गया है. 

हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर जमें हैं किसान

किसानों के जत्थों ने गुरुवार को बरनाला, लुधियाना और पटियाला जैसे शहरों में टोल गेट भी खुलवा दिए. माना जा रहा है कि इससे भी राजस्व का बड़ा नुकसान हुआ. दिल्ली कूच के लिए निकले पंजाब के किसान अब तक हरियाणा में भले ही दाखिल नहीं हो सके लेकिन वो हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर जमे हैं और वहां से हटने को तैयार नहीं हैं. 

किसान अपने कदम पीछे खींचने को तैयार नहीं हैं और जिस तरह से इस बार किसान 6 महीने का राशन लेकर निकले हैं, उससे लग रहा है कि मामला जल्दी सुलझने वाला भी नहीं है. किसानों का सपोर्ट बेस भी बढ़ता दिखाई दे रहा है. इससे आंदोलन का दायरा बड़ा हो सकता है. 

ये संगठन कर रहे हैं आंदोलन

इस बार आंदोलन की शुरुआत पंजाब से हुई. इसकी कमान 2 संगठनों ने संभाली. इनमें से एक किसान मजदूर मोर्चा है, जिसके संयोजक सरवन सिंह पंढ़ेर हैं. दूसरा संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) है, जिसके अध्यक्ष जगजीत डल्लेवाल हैं. इन्हीं संगठनों से जुड़े किसानों ने दिल्ली कूच का नारा दिया था. अब भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) और भारतीय किसान यूनियन के चढ़ूनी गुट ने भी इसका समर्थन कर दिया है. 

पंजाब के किसानों के समर्थन में भारतीय किसान यूनियन के चढ़ूनी गुट ने गुरुवार को बड़ी बात कही. संगठन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने तीन दिन के एक्शन प्लान का ऐलान किया, जिसमें हरियाणा में ट्रैक्टर परेड से लेकर सड़कों को टोल फ्री तक करने की योजना शामिल है. 

गुरनाम सिंह चढ़ूनी क्या बोले?

गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा, ''तीन फैसले लिए गए, पहला ये कि हम कल 3 घंटे के लिए हरियाणा को टोल फ्री रखेंगे, दोपहर 12 बजे से शाम 3 बजे तक. परसों हर तहसील में दोपहर 12 बजे से ट्रैक्टर परेड होगी. 18 फरवरी को सभी किसान और मजदूर संगठनों की संयुक्त बैठक होगी. उसी बैठक में आगे के फैसले लिए जाएंगे.''

गुरनाम सिंह चढ़ूनी का हरियाणा और पंजाब के किसानों पर असर माना जाता है. उनकी बातों को नजरअंदाज नहीं  किया जा सकता, इसलिए सरकार भी मुस्तैद है. 

हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने ये कहा

उधर, गुरुवार को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर किसानों के तौर तरीकों से काफी नाराज दिखे. मुख्यमंत्री ने कहा कि जैसे सेना आक्रमण करती है उस तरह का माहौल बनाया जा रहा है. उन्होंने किसानों की मंशा पर सवाल उठाया और किसानों के तरीके पर आपत्ति जताई. सीएम ने कहा कि बातचीत लोकतांत्रिक तरीके से होना चाहिए.

सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि मसला बातचीत से ही सुलझ सकता है. बातचीत हो भी रही है लेकिन मामला जहां का तहां दिखाई दे रहा है. इसीलिए आशंका जताई जा रही है कि इस बार का किसान आंदोलन भी कहीं पिछले आंदोलन की राह पर तो नहीं चला जाएगा? अभी इस सवाल का जवाब देना थोड़ी जल्दबाजी होगी लेकिन लोगों को वैसी ही परेशानी हो रही है जैसी तीन साल पहले हुई थी.

दिल्ली के बॉर्डर से गुजरने वालों को हो रही दिक्कत

सिंघु बॉर्डर को और ज्यादा मजबूत कर दिया गया है. पहले पैदल जाने वालों के लिए रास्ता खुला था अब वो भी बंद कर दिया गया है, इसलिए दिल्ली से हरियाणा या हरियाणा से दिल्ली में नौकरी करने जाने वालों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है.

ऐसा ही हाल दिल्ली की दूसरी सीमाओं का भी है. किसानों को दिल्ली में घुसने से रोकने के लिए बॉर्डर पर सुरक्षा बलों ने किलेबंदी कर दी है. किसान अभी दिल्ली के बॉर्डर से दूर हैं लेकिन बैरिकेडिंग ने आम लोगों की परेशानी बढ़ा दी है. रोजी-रोटी के लिए हर रोज लाखों लोग दिल्ली से दूसरे राज्यों में जाते भी हैं और आते भी हैं, जिन्हें रास्ते सील होने के चलते काफी परेशानी हो रही है.

पंजाब और राजस्थान की सीमाओं पर भी है यही हाल

यह समस्या सिर्फ दिल्ली बॉर्डर पर नहीं है, पंजाब और राजस्थान की सीमा पर भी यही हाल है. फाजिल्का जिले से सटे पंजाब-राजस्थान बॉर्डर को भी बंद कर दिया गया है. यहां राजस्थान सरकार ने बैरिकेड्स लगाकर पुलिस फोर्स तैनात कर दी है. एंबुलेंस तक को एंट्री नहीं मिल रही. लोग बैरिकेड्स पैदल ही पार कर रहे हैं.

किसान आंदोलन की वजह से लोगों को हो रही परेशानियां कब खत्म होंगी, ये सरकार और किसानों की बाचतीत के नतीजे से तय होगा. वैसे एक सवाल है जो आपके मन में भी उठ रहा होगा कि सरकार आखिर एमएसपी पर कानून वाली डिमांड मान क्यों नहीं लेती? जवाब आंकड़ों से समझिए

  • न्यूतम समर्थन मूल्य यानी MSP पर सरकार अब भी अनाज खरीदती है. 2022-23 में सरकार ने इस पर 2.28 लाख करोड़ की रकम खर्च की.
  • अगर किसानों की मांग के मुताबिक, एमएसपी गारंटी वाला कानून बन जाए तो सरकार को इस पर 17 लाख करोड़ रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं. जो पहले के मुकाबले करीब साढ़े चौदह लाख करोड़ ज्यादा होगा. 
  • 2024-25 के लिए देश का कुल बजट 47 लाख करोड़ निर्धारित किया गया है. 
  • अगर MSP गारंटी कानून बना दिया जाए तो कुल बजट का 36 फीसदी इसी पर खर्च हो जाएगा.

खजाने पर इतना बोझ उठाने के लिए सरकार तैयार नहीं है. जब कांग्रेस सत्ता में थी तब उसने भी एमएसपी गारंटी कानून बनाने से इनकार कर दिया था, लेकिन अब वह मोदी सरकार पर किसानों की मांग पूरी करने का दबाव बना रही है और बीजेपी की ओर से जवाब दिया जा रहा है.

कांग्रेस-बीजेपी में वार-पलटवार

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा, ''हमारा सीधा आरोप है कि केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुद्दे पर किसानों से झूठ बोला और वादाखिलाफी की, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश से माफी मांगनी चाहिए.  केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने पलटवार में कहा, ''वह 10 साल तक सत्ता में थे लेकिन उन्होंने किसानों के लिए कुछ नहीं किया.''

यह भी पढ़ें- Farmer Protest: सबसे पहले दिल्ली कूच को लेकर बवाल, फिर रोकी रेल, अब क्या है किसानों का अगला प्लान

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