नई दिल्ली: यमुना का जलस्तर खतरे के निशान के आसपास बना हुआ है और अब भी चेतावनी के निशान से यमुना ऊपर बह रही है. इसका असर उन किसानों पर भी पड़ रहा है जो यमुना के किनारे खेती करके अपना गुज़र बसर करते हैं. यमुना में पानी बढ़ने के चलते जमीन कट रही है जिसकी वजह से किसानों के खेत पानी के कटाव के साथ बह गए हैं. ज़मीन का कटना अभी भी जारी है.
यहां खेती करने वाले किसान ज़मीन किराए पर लेकर खेती करते हैं. खेत और फसल बह जाना इन लोगों पर दोहरी मार जैसा है. अब हालात ये हैं कि लोग बची हुई खेती में कच्ची सब्ज़ियां ही तोड़ ले रहे हैं ताकि बाकी फसल भी न बह जाए.
यमुना किनारे खेती करने वाले रमाशंकर ने बताया कि उनका करीब 2 बीघा खेत पानी मे बह गया है. मूली, घिया, मिर्च बोया हुआ था वो बह गया. मूली की फसल तैयार थी वो भी बह गई. आसपास के पेड़ सब खत्म हो रहे हैं और अगर कटाव इसी तरह से चलता रहेगा तो बहुत दिक्कत होगी. हम लोगों का कोई सहारा नहीं है बस इसी ज़मीन पर खेती करके हम खाते पीते हैं और जीते हैं.
रमाशंकर का कहना है कि कटाव के चलते काफी नुकसान भी हो गया है. उन्होंने बताया कि मूली का एक-डेढ़ किलो बीज लग गया था. खेत की जुताई में बहुत खर्च आता है. जुताई में एक चक्कर का 150-175 रूपया लगता है और कम से कम 9-10 चक्कर लगाने होते हैं. 10 बीघा में करीब 1500 रुपया के हिसाब से 10-12 हज़ार रुपए लग जाते हैं. ये ज़मीन एक साल के किराए पर हम लोग खेती के लिए लेते हैं. खेत खाली रहे या खेती हो या फिर फसल खराब हो किराया हर हाल में देना होता है. खेत कट गया तब भी उसमें कोई रियायत नहीं होगी. अब तो खाली ही बैठना पड़ेगा कोई और सहारा नहीं है. और पानी बढ़ा तो सरकार हम लोगों को सड़क पर भेज देगी.
खेती करने वाली मुन्नी देवी ने कहा कि कोई सावधान करने नहीं आया कि पानी इतना आ जायेगा. अगर पता होता तो कम से कम नया बीज नहीं डालते. उसका पैसा तो बच जाता. बीज का भी पैसा लगा, खेत तैयार करने की लागत लगी और मेहनत भी लगी और फिर खेत के मालिक को भी पैसा देना है. किसान थान सिंह का कहना है कि तैयार खड़ी मूली बह गई पानी के कटाव में. मंडी के हिसाब से 5-6 लाख का नुकसान हुआ है.
घिया और मूली के अपने खेत मे भरे पानी को देखते हुए किसान अतर सिंह काफी परेशान हैं. अतर सिंह ने बताया कि घिया और मूली लगाया था पहले खेत पानी मे डूब गया था. उसके बाद जब पानी उतरने लगा तो खेत की ज़मीन कटाव के साथ बह गई. कुल 4 बीघा का खेत था 2 बीघा बह गया बस 2 बीघा बाकी है. 30-35 हज़ार का नुकसान हो गया. अगर सरकार से कोई मदद मिली तो ठीक है वरना क्या करेंगे. खेती अब बहुत महंगी हो गई है बीज महंगा है जुताई महंगी है. पिछले 2 साल नहीं आई बाढ़, चेतावनी देने लोग सड़क पर आते हैं इधर अंदर नहीं आते. नुकसान हो भी गया तो भी खेत मालिक अपना पैसा लेंगे ही.
यहीं पर मिर्च की खेती करने वाले किसान नन्हें अपनी पत्नी और बेटी के साथ पौधों में लगी कच्ची मिर्च को ही तोड़ रहे हैं. नन्हें का कहना है कि मिर्च कच्ची है, तोड़ने लायक नहीं है अभी लेकिन क्या करें इसे बचाने के लिए तोड़ रहे हैं. जो खेत बह गए उनमें भी मिर्च के पौधे लगे हुए थे अब यही बाकी है. करीब 50-60 हज़ार का नुकसान हो गया. कच्ची मिर्च तोड़ रहे हैं इसलिए उसका भी कोई खास दाम नहीं मिलेगा. हमारी मदद के लिए यहां कोई नहीं आता. अगर सरकार से कुछ मदद मिल जाए यही उम्मीद है.