नई दिल्ली: केंद्र सरकार के कृषि कानूनों का लगातार विरोध किया जा रहा है. कृषि कानूनों के विरोध में किसान सड़कों पर उतर आए हैं और केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों की मांग है कि केंद्र सरकार कृषि कानूनों को वापस ले. हालांकि केंद्र सरकार किसानों के आगे झुकती हुई नजर नहीं आ रही है. इस बीच शिवसेना के मुखपत्र सामना में शिवसेना ने केंद्र सरकार पर निशानाा साधा है. शिवसेना का कहना है कि केंद्र सरकार सिर्फ टाइमपास कर रही है.
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में लिखा है, 'दिल्ली में किसान आंदोलन आज ऐसी अवस्था में पहुंच गया है कि आगे के मार्ग को लेकर भ्रम की ही स्थिति है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने हैदराबाद महानगरपालिका में अच्छी सफलता हासिल की. बीजेपी की सफलता के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने तेलंगना की जनता का आभार माना है. तेलंगना की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विश्वास दिखाया है, ऐसा शाह का मत है. सरकार चुनावी जीत-हार में संतुष्ट हो रही है और वहां दिल्ली की सीमा पर किसानों का घेरा उग्र होता जा रहा है. येन-केन-प्रकारेण समाज में जाति-धर्म के नाम पर फूट डालकर फिलहाल चुनाव जीतना आसान है लेकिन दिल्ली की दहलीज पर पहुंच चुके किसानों की एकजुटता में फूट डालने में असमर्थ सरकार मुश्किलों में घिर गई है.'
शिवसेना ने कहा, 'दिल्ली में आंदोलनकारी किसान और केंद्र सरकार के बीच पांच दौर की चर्चा बिना किसी परिणाम के रही है. किसानों को सरकार के साथ चर्चा में बिल्कुल भी दिलचस्पी नजर नहीं आ रही है. सरकार सिर्फ टाइमपास कर रही है और टाइमपास का उपयोग आंदोलन में फूट डालने के लिए किया जा रहा है. किसान आंदोलनकारियों ने स्पष्ट कहा है कि 'कृषि कानून रद्द करोगे या नहीं? हां या ना, इतना ही कहो!' सरकार ने इस पर मौन साध रखा है. किसान 10 दिनों से ठंड में बैठे हैं. सरकार ने किसानों के लिए चाय-पानी, भोजन का इंतजाम किया है. उसे नकारकर किसानों ने अपनी सख्ती को बरकरार रखा है.'
व्यर्थ भागदौड़
मुखपत्र सामना में शिवसेना ने कहा है, 'कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर कहते हैं, ‘मोदी सरकार सत्ता में किसानों के हित के लिए ही काम कर रही है. इस सरकार के कारण किसानों का उत्पन्न भी बढ़ गया है. एमएसपी जारी ही रहेगी. किसान चिंता न करें.’ हालांकि तोमर का बोलना निष्फल साबित हो रहा है. सरकार में चुनाव जीतने, जीताने, जीत खरीदने वाले लोग हैं लेकिन किसानों पर आए आसमानी-सुल्तान संकट, बेरोजगारी ऐसी चुनौतियों से दो-दो हाथ करने वाले विशेषज्ञों की सरकार में कमी है. मोदी और शाह इन दो मोहरों को छोड़ दें तो मंत्रिमंडल के अन्य सभी चेहरे सरल हैं. उनकी व्यर्थ भागदौड़ का महत्व नहीं है.'
किसानों को लाभ नहीं
शिवसेना ने कहा, 'एक समय सरकार में प्रमोद महाजन, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज ऐसे संकटमोचक थे. किसी संकटकाल में सरकार के प्रतिनिधि की हैसियत से इनमें से कोई भी आगे गया तो उनसे चर्चा होती थी और समस्या हल होती थी. आज सरकार में ऐसा एक भी चेहरा नजर नहीं आता है. इसलिए चर्चा का पांच-पांच दौर नाकाम साबित हो रहा है. जल्दबाजी में मंजूर कराए गए कृषि कानून को लेकर देश भर में संताप है. पंजाब, हरियाणा के किसानों में इस संताप को लेकर आक्रोश व्यक्त किया है. कृषि कानून का लाभ किसानों को बिल्कुल भी नहीं है. सरकार कृषि को उद्योगपतियों का निवाला बना रही है. हमें कार्पोरेट फॉर्मिंग नहीं करनी है इसीलिए ये कानून वापस लो, ऐसा किसान कहते हैं. मोदी सरकार आने के बाद से कार्पोरेट कल्चर बढ़ा है, ये सच ही है.'
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