भोपाल: मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को मैदान में उतारा है. लोकसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया, शिवराज सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ तीन दिन तक अलग-अलग शहरों में सत्याग्रह करेंगे.
14 जून से सत्याग्रह पर बैठेंगे ज्योतिरादित्य सिंधिया
मध्य प्रदेश सरकार की किसान विरोधी नीति के विरोध में ज्योतिरादित्य सिंधिया 14 जून से यहां 72 घंटे के सत्याग्रह पर बैठेंगे. अपना सत्याग्रह शुरू करने के एक दिन पहले सिंधिया 13 जून को मंदसौर जाएंगे और छह जून को किसान आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग में मंदसौर जिले में मारे गये पांच किसानों के परिजनों से मुलाकात भी करेंगे.
मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने बताया, ‘‘किसानों के समर्थन में सिंधिया 14 जून को दोपहर तीन बजे भोपाल शहर के टी टी नगर दशहरा मैदान में 72 घंटे के लिए सत्याग्रह पर बैठेंगे.’’ उन्होंने कहा कि सिंधिया 13 जून को मंदसौर भी जाएंगे और पुलिस फायरिंग में मारे गये पांच किसानों के परिजनों से वहां मुलाकात भी करेंगे.
कांग्रेस ने की मध्यप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर अपने संवैधानिक कर्तव्यों को निर्वहन न करने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस ने आज मांग की है कि प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया जाये.
मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने बताया, ‘‘चौहान को अपने पद पर बने रहने को कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि उन्होंने अपनी संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन नहीं किया है.’’ उन्होंने कहा कि मंदसौर जिले में छह जून को पुलिस की गोलीबारी में मारे गये किसानों के परिजन को सांत्वना देने की बजाय मुख्यमंत्री भोपाल में उपवास पर बैठ गये हैं.
मंदसौर हिंसा में पांच किसानों की मौत
अजय सिंह ने बताया, ‘‘इस फायरिंग में 40 दिन के शिशु के पिता भी मारा गया. चौहान को उसकी पत्नी और बच्चे को मिलने जाना चाहिए था. इसके अलावा, पुलिस फायरिंग में मारे गये अन्य किसानों के परिजनों को भी मिलना चाहिए था. मुख्यमंत्री संवैधानिक जिम्मेदारी से बच रहे है. इसलिए हम राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग करते हैं.’’
आपको बता दें कि छह जून को मंदसौर जिले में किसान आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा की गई फायरिंग में पांच किसानों की मौत हो गई थी और छह अन्य किसान घायल हो गये थे, जिसके बाद किसान भड़क गये थे और किसान आंदोलन समूचे मध्यप्रदेश में फैल गया और पहले से अधिक हिंसक हो गया.