नई दिल्ली: मोदी सरकार और आंदोलनरत किसान संगठनों के बीच आज सातवें दौर की बातचीत होगी. इसके अलावा गृह मंत्री अमित शाह भी संगठन के नेताओं से एक बार वार्ता कर चुके हैं लेकिन अबतक गतिरोध ख़त्म नहीं हो सका है. आज की बैठक में किसानों की दो सबसे प्रमुख मांगों पर बातचीत होनी है. इनमें तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने और एमएसपी को क़ानूनी गारण्टी देने की मांग शामिल हैं. इसके पहले 30 दिसम्बर को हुई बैठक में सरकार ने किसानों की दो अन्य मांगों को मानने का ऐलान किया था. इन दोनों मांगों में पराली जलाने पर पेनाल्टी से जुड़े अध्यादेश बदलाव और प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल को स्थगित करना शामिल था.


तीनों कृषि क़ानूनों को ख़त्म करने से कम में नहीं मानेंगे किसान



किसानों ने पहले ही साफ़ कर दिया है कि तीनों कृषि क़ानूनों को ख़त्म करने से कम वो कुछ नहीं मानेंगे और अगर 26 जनवरी तक समस्या का हल नहीं निकला तो वे गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली के भीतर घुसकर ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे. 30 दिसम्बर को हुई बैठक में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसान संगठनों से कृषि क़ानूनों को वापस लेने की जगह कोई और विकल्प भी सुझाने को कहा था ताकि उसपर कमिटी बनाकर विचार किया जा सके.


सरकार की रणनीति को लेकर हुई राजनाथ और कृषि मंत्री के बीच चर्चा


आज की बातचीत से पहले रविवार को नरेंद्र सिंह तोमर ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाक़ात की. माना जा रहा है कि दोनों मंत्रियों के बीच आज की बैठक में सरकार की रणनीति को लेकर चर्चा हुई. राजनाथ सिंह लगातार पर्दे के पीछे से किसान आंदोलन का हल निकालने के प्रयास में लगे हुए हैं. 30 दिसम्बर की बैठक के दिन भी उन्होंने बयान देकर कहा था कि मोदी सरकार किसानों का नुकसान कभी नहीं करेगी.


सरकार लगातार ये साफ़ करती आई है कि तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेना नामुमकिन है. हालांकि एमएसपी के मुद्दे पर सरकार ने किसी अन्य विकल्प पर भी विचार करने का संकेत दिया है. 30 दिसम्बर को हुई बैठक में सरकार ने किसान संगठनों से कहा कि एमएसपी पर कमिटी बनाकर एमएसपी और बाज़ार मूल्य की खाई पाटने पर चर्चा की जा सकती है. ऐसे में अब कयास ये लगाए जा रहे हैं कि सरकार मध्य प्रदेश की तर्ज़ पर भावान्तर योजना पर विचार कर सकती है. इस योजना के तहत किसानों को एमएसपी और बाज़ार भाव के अंतर की भरपाई सरकार की ओर से की जाती है. इस योजना को लागू करने को लेकर मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी काफ़ी माथापच्ची हुई थी, लेकिन कोई फ़ैसला नहीं हो सका था.


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