किसान आंदोलन के छह महीने; जानें कहां अटकी है बात, सरकार और किसानों का क्या स्टैंड?
सरकार और किसान नेताओं के बीच 22 जनवरी को आखिरी बैठक हुई थी. इसके बाद 26 जनवरी को किसानों के प्रदर्शन के नाम पर काफी बवाल हुआ. लालकिला पर हिंसा तक हुई थी जिसकी जांच दिल्ली पुलिस कर रही है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के अलग अलग बॉर्डर पर धरन दे रहे किसानों के आंदोलन को आज छह महीने पूरे हो गए हैं. आंदोलनकारी किसान आज काला दिवस मना रहे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले हो रहे इस आंदोलन के नेताओं ने किसानों से आज अपने घरों के बाहर विरोध के तौर पर काले झंडे लगाने की अपील की है.
किसान विरोध के तौर पर प्रधानमंत्री का पुतले भी जलाएं जाएंगे. मोर्चा ने जन संगठनों, कारोबारी संगठनों से किसानों की मांग के समर्थन में काला झंडा लेकर प्रदर्शन करने की अपील की है. उधर किसानों के इस काला दिवस को 14 विपक्षी पार्टियों ने भी समर्थन दिया है. कांग्रेस, जद-एस, एनसीपी, टीएमसी, शिवसेना, डीएमके, झामुमो, जेकेपीए, सपा, बसपा, राजद, सीपीआई, सीपीएम और आम आदमी पार्टी भी है. साथ ही केंद्र सरकार को किसानों से वार्ता करने की मांग की है.
छह महीने बाद भी किसानों और सरकार के बीच कहां अटकी है बात?
छह महीने में किसान आंदोलन कई उतार चढ़ाव देख चुका है, फिर चाहे वो लाल किले की हिंसा हो या फिर किसान नेता राकेश टिकैत के आंसू. बता दें कि किसान आंदोलन के इतना लंबा खिंचने के पीछे सिर्फ वजह है और वो है दोनों पक्षों का अपनी अपनी बात पर अड़े रहना. किसान जहां तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने मांग पर अड़े हैं तो वहीं सरकार क्लॉज़ दर क्लॉज कानून पर बात कर उसमें संशोधन को तैयार है.
किसानों के साथ केंद्र सरकार ने 11 दौर की बातचीत में कानूनों को स्थगित कर आगे की चर्चा के लिए कमिटी बनाने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन कानून रद्द करने की मांग कर रहे किसान नेताओं ने सरकार का प्रस्ताव ठुकरा दिया. सरकार और किसान नेताओं के बीच 22 जनवरी को आखिरी बैठक हुई थी. इसके बाद 26 जनवरी को किसानों के प्रदर्शन के नाम पर काफी बवाल हुआ. लालकिला पर हिंसा तक हुई थी जिसकी जांच दिल्ली पुलिस कर रही है.
बता दें कि संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने 21 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर तीन कृषि कानूनों पर बातचीत फिर से शुरू करने का आग्रह किया. फिलहाल सरकार की ओर से किसानों के साथ बातचीत को स्थिति स्पष्ट नहीं है. ऐसे में यह साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि किसानों का कृषि कानून विरोधी आंदोलन कितना लंबा चलेगा.