नई दिल्ली: किसानों का आंदोलन तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर आज 48वें दिन जारी है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद नए किसान कानूनों के अमल पर रोक लगा दी और चार सदस्यों की कमेटी गठित की है. इस फैसले पर किसान संगठनों ने निराशा जताई है और कहा है कि आंदोलन जारी रखेंगे.
वहीं शीर्ष अदालत के फैसले पर केंद्रीय मंत्रियों ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला मान्य है. केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने न्यूज़ एजेंसी पीटीआई से कहा, ''सुप्रीम कोर्ट का आदेश हमारी इच्छा के विपरीत है क्योंकि हम कानून को लागू रखना चाहते हैं, लेकिन यह सर्वमान्य है.''
कैलाश चौधरी ने कहा कि एक निष्पक्ष समिति गठित की गई है, यह देश भर में सभी किसानों, विशेषज्ञों की राय लेने के बाद रिपोर्ट तैयार करेगी. उन्होंने 15 जनवरी को निर्धारित बैठक पर कहा कि सरकार बातचीत के लिये हमेशा तैयार है, किसान संघों को यह तय करना है कि वो क्या चाहते हैं.
वहीं केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने किसान संगठनों पर निशाना साधते हुए कहा, ''पहले संसद के फैसले से इन्कार. फिर सरकार से तर्कहीन तकरार. और अब सुप्रीम कोर्ट पर वार. भैय्या,ये कैसी ज़िद,कैसा अहंकार.''
किसान संगठनों का क्या कहना है?
किसान संगठनों ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की गठित कमेटी में जितने सदस्य हैं वे कृषि कानूनों के समर्थक हैं. वे कानून के समर्थन की सार्वजनिक वकालत कर चुके हैं. किसान नेताओं ने कहा कि वे इस कमेटी के सामने पेश नहीं होंगे. उनका आंदोलन जारी रहेगा और 26 जनवरी को शांतिपूर्ण प्रदर्शन होगा.
सुप्रीम कोर्ट की कमेटी में कौन हैं?
शीर्ष अदालत ने कमेटी में सदस्य के तौर पर भारतीय किसान यूनियन नेता भूपिंदर सिंह मान, महाराष्ट्र के शेतकरी संगठन के नेता अनिल घनवटे, कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी और खाद्य नीति विशेषज्ञ प्रमोद जोशी को शामिल किया है.
किसान आंदोलन: कौन हैं वह 4 लोग जिनको सुप्रीम कोर्ट ने शामिल किया है कमेटी में?