इतिहास के पन्नों से: केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ देश में लगातार विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है. किसान पिछले कई दिनों से दिल्ली बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं और कृषि से जुड़े कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. किसान पिछले करीब 12 दिनों से दिल्ली बॉर्डर पर डटे हुए हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं किसान संगठनों ने भारत बंद का आह्वान भी किया है. हालांकि ये पहला ऐसा मौका नहीं है, जब किसान अपनी मांगों को लेकर सड़क पर इस कदर उतर आए हैं. इससे पहले भी कई बड़े किसान आंदोलन हुए हैं और सरकार से मांगे मनवाई है.


1988 के दौर में भी किसानों की क्रांति देश में देखने को मिली थी. उस दौर में न तो मोबाइल फोन थे, न दिल्ली में मेट्रो थी और न ही आज की तरह कोई संचार क्रांति थी. हालांकि आज से 32 साल पहले भी किसानों का एक बड़ा आंदोलन देखने को मिला था. इस आंदोलन में किसान अपनी मांगों को मनवाने के लिए सड़कों पर उतर आए थे. दिल्ली से पहली बार किसानों की ताकत देश में देखने को मिली थी. उस दौरान किसानों ने दिल्ली के बोट क्लब (इंडिया गेट) पर कब्जा कर लिया था. 1988 में हुए किसान आंदोलन के कारण पूरी दिल्ली एक तरह से रूक गई थी. लाखों किसान यहां मरने-मारने को भी तैयार थे. किसान देश के अलग-अलग कोनों से बस, रेल, बैल गाड़ियों में सवार होकर दिल्ली आए थे.


किसानों का आया सैलाब


1988 में लाखों किसान दिल्ली में बोट क्लब पर इकट्ठा हुए थे. उस दौरान दिल्ली में किसानों का एक तरह से सैलाब ही आ गया था. 25 अक्टूबर 1988 का दिन था. तब राजधानी दिल्ली के बोट क्लब में करीब 7 लाख से ज्यादा किसानों का जमावड़ा देखने को मिला था. तब भारतीय किसान यूनियन के नेता महेंद्र सिंह टिकैत के कहे शब्द आज भी किसानों की यादों में ताजा है. टिकैत ने क्लब में कहा था, 'खबरदार इंडिया वालों. दिल्ली में भारत आ गया है.' जैसे ही टिकैत ने ये लाइन कही, मानों दिल्ली में किसानों का एक सैलाब आ गया. तब बोट क्लब में किसान जम गए थे और सैंकड़ो सुरक्षाबलों की तैनाती भी की गई थी, तब दिल्ली पहली बार एक किसान नेता देख रही थी.


सरकार के आगे रखी थी मांगे


उस दौरान प्रधानमंत्री के पद पर राजीव गांधी थे. बोट क्लब पर किसान अपनी मांगों को मनवाने के लिए अड़ गए थे. उस दौरान विपक्षी नेता लगातार महेंद्र सिंह टिकैत से मुलाकात कर रहे थे. वहीं महाराष्ट्र के प्रभावशाली किसान नेता शरद जोशी का साथ भी उस दौरान टिकैत को मिला था. उस दौरान टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन ने केंद्र सरकार के आगे अपनी कुछ मांगे रखी थी, जिनको मनवाने के लिए ही किसान एकजुट हो उठे थे. उस दौर में किसानों की मांग थी कि गन्ने का ज्यादा समर्थन मूल्य मिले. इसके अलावा बिजली-पानी फ्री हो.


सरकार के फूले हाथ-पांव


वहीं दूसरी ओर दिल्ली में लाखों की संख्या में किसानों को देखकर सरकार के भी हाथ-पांव फूलने लगे थे. उस दौरान भी किसान अपना पूरा इंतजाम कर दिल्ली आए थे. तब भी किसान कई दिनों का राशन-पानी अपने साथ लाए थे. वहीं किसान और सरकार के बीच लगातार समाधान की तलाश की जा रही थी. दिन बीतते जा रहे थे लेकिन दोनों ही पक्ष किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे थे. किसान नेताओं की तरफ से केंद्रीय मंत्री रामनिवास मिर्धा बातचीत की कमान संभाले हुए थे. हालांकि आखिर में पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों के जज्बे के आगे राजीव गांधी सरकार झुकती हुई नजर आई. आखिर में करीब एक हफ्ते बाद सरकार ने किसानों की मांगे मान ली. मांगे मनवाने के साथ ही किसान अपने घरों को लौट गए.


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