नई दिल्ली: नए कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसान संगठनों के बीच गतिरोध बरक़रार है. सोमवार को दोनों के बीच हुई बैठक में भी कोई नतीजा नहीं निकल सका. दोनों पक्ष अपने अपने रुख़ पर क़ायम हैं. सरकार और किसान संगठनों के बीच 8 जनवरी को एक बार फिर बातचीत होगी. बातचीत की शुरुआत तीनों कृषि क़ानूनों के मुद्दे से हुई और सरकार ने इन क़ानूनों के फ़ायदे गिनाने शुरू किए. इसपर किसानों ने सरकार से पूछा कि क्या वो इन क़ानूनों को वापस लेने को तैयार है? सरकार ने सवाल का जवाब देते हुए कहा कि सरकार इन क़ानूनों पर खंडवार ( Clauses ) चर्चा करने को तैयार है. ज़ाहिर क़ानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े किसानों ने इसे ख़ारिज़ कर दिया.
कल की बैठक में तक़रार बढ़ने के ही संकेत मिले
इसके पहले 30 दिसम्बर को हुई बैठक में सरकार और इन संगठनों के बीच दो मुद्दों पर सहमति बन गई थी. इसके अलावा दोनों ने ही एक दूसरे के साथ खाना भी खाया जिससे माहौल थोड़ा खुशनुमा भी हुआ और दोनों के बीच जमी बर्फ़ थोड़ी पिघलती हुई नज़र आई. लेकिन सोमवार को जब सबसे प्रमुख दोनों मुद्दों पर बातचीत की बारी आई तो ऐसा कुछ नहीं हुआ. उल्टे सरकार और किसानों के बीच तक़रार बढ़ने के ही संकेत मिले जब बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि ताली दोनों हाथों से बजती है.
आंदोलन कर रहे किसानों को अन्य किसानों से बातचीत पर आपत्ति
इतना ही नहीं, सरकार ने ये भी कहा कि वो 8 जनवरी को होने वाली बैठक से पहले देश के दूसरे राज्यों के किसान संगठनों के साथ भी बातचीत करेगी. सरकार के इस क़दम से टकराव और बढ़ने की सम्भवना है. पिछले दिनों में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कई ऐसे किसान संगठनों से बात की जो इन क़ानूनों के समर्थन में हैं. आंदोलन कर रहे किसान संगठन पहले ही इन मुलाक़ातों पर आपत्ति जता चुके हैं.
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